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अमीर नेता गरीब जनता

शब्दस्वर
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कैसी विडंबना है कि स्वतँत्र भारत मेँ शासन करने वाले गठबंधन यूपीए की अध्यक्षा , सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठी सोनिया गाँधी 45 हजार करोड़ रुपये की संपति की मालकिन है । वह दुनिया की चौथे नंबर की सबसे रईस राजनेता है । आज देश मेँ करोड़पति राजनेताओँ की तो भरमार है । चीन के बाद भारत दूसरा सर्वाधिक जनसँख्या वाला देश है । यहाँ के किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैँ । करोड़ों लोग भयंकर गरीबी में पशुओँ से बदतर जिन्दगी जीने को विवश हैं । बच्चे कुपोषण के शिकार हैं । राजनीतिक , मंत्री , साँसद , विधायक , नौकरशाह तो अरबपति तथा करोड़पति हैं ही अन्य छोटे कर्मचारी भी करोड़ोँ के वारे न्यारे करने मेँ पीछे नहीँ हैँ । यह कैसी देशसेवा है । जिसका दाव लगता है वही दोनोँ हाथोँ से देश को लूट रहा है । जीवन का एकमात्र लक्ष्य अकूत धनसंपदा का संग्रह करना बन गया है । जिस देश के तथाकथित जनता के सेवक सबसे अमीर हो और जनता भूखी मरे तो लानत है जनसेवकोँ की ऐसी अमीरी पर । राजनीतिक दलोँ में एक पदाधिकारी से लेकर सरकार चलाने वाले मंत्री तक सभी अपनी विश्वसनीयता खोते चले जा रहे हैं । अश्लील वीडियो देखने वाले तथा दागी मंत्रियोँ की टीम लेकर तो अनैतिकता और भ्रष्टाचार के अध्याय ही लिखे जा सकते हैं । विकास का अर्थ केवल भौतिक विकास ही नहीँ होता । प्रकृति तथा पर्यावरण को तहस नहस कर विनाश को बढ़ावा दिया जा रहा है । मनुष्य का भी सर्वाँगीण विकास होना चाहिए । नेतृत्व का काम होता है स्वयं को आदर्श के रूप मेँ स्थापित करके देशवासियोँ का स्वाभिमान जागृत करना । लेकिन आज देश की सभी व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है । शिक्षा का अवमूल्यन कर संस्कार शून्य , देशभक्ति तथा स्वाभिमान रहित नई पीढ़ी का निर्माण किया जा रहा है । पहले विदेशियोँ ने लूटा , अब लुटेरे डाकू अपने ही देश मेँ पैदा हो रहे हैँ । लोकतंत्र के नाम पर यह सब खूब मजे से सुरक्षा के आवरण मेँ रहकर किया जा रहा है । एक ऐसे कुत्सित संवैधानिक ताने बाने मेँ देश को उलझाया जा रहा है जिसमेँ इस देश का बहुसंख्य समाज मजबूर होकर केवल अपनी बरबादी का तमाशा देखे । यह देश विदेशी षड्यंत्रकारियोँ का अखाड़ा बनता जा रहा है जहां ग्लोबलाईजेशन के नाम पर बाजार में विदेशी उत्पादोँ को खपाकर उद्योगोँ को चौपट कर बेरोजगारी को बढ़ाया जा रहा है ।
खुदरा बाजार को भी विदेशी कंपनीयोँ के हवाले करने का देशद्रोही काम किया जा रहा है । देश भयानक समस्याओँ के घिरकर असुरक्षा के दौर में है । ऐसे विकट समय मेँ एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले राष्ट्रवादी नेतृत्व की आवश्यकता होती है । लेकिन दुर्भाग्यवश आज हमारे देश मेँ कोई भी राजनैतिक दल इस कसौटी पर खरा नहीँ उतरा है । सत्तालिप्सा , जातिवाद, अल्पसँख्यक तुष्टिकरण तथा छद्म धर्मनिरपेक्षता की आड़ मेँ वोट बैंक का खेल बदस्तूर जारी है । भ्रमित मतदाता अपना वोट दे तो किसे । हाल ही मेँ हुए विधानसभा चुनावोँ में बड़े राष्ट्रीय दलोँ की हार ने देश के सामने उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है । बिना मजबूत राजनैतिक नेतृत्व के कोई भी देश अपने स्वाभिमान की रक्षा नहीँ कर सकता । मतदाताओँ को भी क्षेत्रवाद से उपर उठकर राष्ट्रीय दलोँ के उम्मीदवारों का चुनाव करना चाहिए ।
अपनी प्राचीन संस्कृति , दर्शन व विचार पर आधारित जीवन मूल्योँ को स्थापित किए बिना हम आगे नहीँ बढ़ सकते । यह विचार जिस दिन भारतीय राजनीति का मूलाधार बनेगा उसी समय यह देश अपने प्राचीन गौरव को प्राप्त करते हुए विकास पथ पर आगे बढ़ना प्रारंभ कर देगा । इसी मेँ ही भारत के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व तथा मानवता की भी भलाई है ।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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