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भारत की सत्ता का प्रतीक
अशोक चक्र
धंसता ही जा रहा है
भ्रष्टाचार की दलदल मेँ
क्योँ… करो विचार …?
कभी कभी
नेताजी के मिथ्या अहंकार को भी
संतुष्ट करता है यही चक्र
जब होता है चित्रित
उसकी कार पर लगे तिरंगे मेँ ।
बढ़ाता है देश का गौरव
सीमा पर शहीद हुआ जवान
आता है जब
इसी अशोक चक्र से सुशोभित तिरँगे मेँ लिपटकर ।
कश्मीर मेँ जब
जलाया जाता है
तिरँगे के मध्य यही चक्र
तब अपमानित होता है राष्ट्र विश्व पटल पर
देश भक्त और देश की सत्ता
करे विचार …।
स्वदेशी का प्रतीक
चरखे का चक्र
पिस रहा है आज
विदेशोँ से आयातित वस्तुओँ के
अनेक पाटोँ के बीच ।
स्वदेशी संगीत का स्वर
खो गया है आज
विदेशी आदम सँगीत के बीच जिसे यारोँ ने
इंडिया बुला लिया है ।
रंगोँ को आतंकी
घोषित करने वाले
भूल जाते हैँ .. या जानते नहीँ..! धर्मचक्र प्रवर्तनाय की प्रतीक भारतीय संस्कृति का मर्म ।
– सुरेन्द्र पाल वैद्य
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