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आन्दोलन और अस्पष्ट अवधारणाएँ

शब्दस्वर
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सैंकड़ों वर्षोँ की गुलामी के पश्चात जब हमारा देश स्वतन्त्र हुआ तो इसकी बागडोर स्वदेशी हाथों में आई । यह अधूरी स्वतन्त्रता थी । देश का शासन गोरे अंग्रेजों की जगह उन्हीँ के मानसपुत्र काले अँग्रेजों के हाथ में आ गया था । कुछ अपवादों को छोड़कर इनके हृदय और मस्तिष्क में अंग्रेजियत कूट कूट कर भरी हुई थी । सीधे तौर पर कहेँ तो अंग्रेज अपनी विरासत प. नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस को सौंप कर चले गये । जाते जाते दो कौमोँ के आधार पर देश का विभाजन कर प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्र की पीठ में छुरा घोंप कर नई समस्याओं के विषबीज बो गये । नेहरू के शासनकाल मेँ इन विषबीजों को खूब खाद पानी देकर सींचा गया जिससे देश के सामने अनेक गंभीर समस्याएं पैदा हुई । काँग्रेस ने जो भारत आजादी के समय संभाला था उसकी रक्षा करने में यह बुरी तरह से असफल सिद्ध हुई है । देश के बहुत बड़े भूभाग को चीन तथा पाकिस्तान ने हड़प लिया है । जो आज भी हर दिन नई नई समस्याएं पैदा कर हमारे देश की सुरक्षा में सेंध लगा रहे है । हमारी अर्थव्यवस्था तथा बाजार को प्रभावित करके बेरोजगारी ,गरीबी तथा भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है ।
देश के चारों ओर तथा हिन्द महासागर में चीन की गतिविधियां बढ़ती ही जा रही है । दूसरी तरफ भारत के अंदरुनी मामलों में बढ़ता हस्तक्षेप , तिब्बत व पाक अधिकृत काश्मीर में सड़कों तथा अन्य परियोजनाओं का निर्माण भारत की सुरक्षा के लिए चिंता के विषय हैं । भारत के बाजार के बहुत बड़े हिस्से पर आज चीन का कब्जा है । भारी मात्रा में चीनी उत्पादों से बाजार भरे पड़े हैं। इससे हमारे उद्योग धंधे चौपट होते जा रहे हैं । अगर हम देश की वर्तमान दशा पर गंभीरता से विचार करेँ तो अनेकोँ कारण सामने आएंगे । लेकिन सभी कारणों में मुख्य कारण देशभक्ति की भावना तथा राष्ट्रीय चरित्र की कमी का होना है ।देश को पहले विदेशियों ने लूटा और अब अपने ही देशवासी जिनमें विदेशी संस्कार कूट कूट कर भरे हुए है , जी भर कर लूट रहे हैं । देश का शीर्ष नेतृत्व लाखोँ करोड़ रुपये की लूट पर अकर्मण्यता का रवैया अपनाए हुए है तथा इसके मंत्री अनेक घोटालों में बंदी हैं । बाड़ ही खेत को चट करने पर आमादा है । देशबाह्य निष्ठा के कारण अकूत धनराशि विदेशी बैँकों में जमा है तथा यहाँ गरीबी की रेखा पर शास्त्रार्थ हो रहा है । देशहित में तथा भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज उठाने वालोँ को निर्दयता से कुचला जा रहा है तथा उनपर झूठे केस बनाकर प्रताड़ित किया जा रहा है । स्वामी रामदेव तथा अण्णा हजारे के आंदोलन एक सीमा तक ही सफल हो पाए क्योँकि भारी जनसमर्थन जुटाने के बावजूद भी वे समस्या के मूल को नहिँ समझ पाये । वे अपने अंह को नहीँ छोड़ पाए थे । व्यक्तिगत महत्वाकाँक्षाओं , भिन्न भिन्न विचारधाराओं व तथाकथित सैकुलरवाद कि हीन ग्रंथि से ग्रस्त नेतृत्व कभी भी अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं कर सकता । राष्ट्रहित के मुद्दे पर एक मंच पर आए समर्थकोँ को अलग अलग नजरिए से नहीँ देखा जा सकता । अण्णा आंदोलन को काँग्रेस ने इसी कारण से विवादित बना दिया । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकोँ के समर्थन को गर्व के साथ स्वीकार करना चाहिए था जिसे न करके अण्णा ने व्यक्ति और राष्ट्रनिर्माण की अवधारणा को ठेस पंहुचाई है जिसके बिना देश का सर्वाँगीण विकास असंभव है । संघ की राष्ट्रवादी विचारधारा भारतीय संस्कृति पर आधारित भारत राष्ट्र को परमवैभव पर ले जाने के लिये निरंतर प्रवाहमान है । देशहित में किया जाने वाला कोई भी देशव्यापी कार्य व आन्दोलन संघ की भूमिका के बिना यशस्वी नहीँ हो सकता यह भाव सभी को समझने और स्वीकार करने की आवश्यकता है ।
इसके लिए भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति के मर्म को समझना होगा । आज तो हमारी सांस्कृतिक विरासत के विभिन्न आयाम भी बाजारवाद के शिकार होते जा रहे हैं । योग , आयुर्वेद , कला , ज्ञान विज्ञान , साहित्य आदि सभी कुछ मंहगे व संवेदना शून्य बाजारवाद के उपक्रम बन गए हैं । आर्थिक संसाधन जुटाने की होड़ में नैतिक जीवन मूल्योँ की अनदेखी आम हो गई है । हमें पश्चिम की भौतिकवादी सोच से बाहर निकलकर भारतीय संस्कृति के अनुरूप व्यवस्थाएँ विकसित करनी होगी । प्रगतिशील तथा विकसित कहलाने के लिए ओढ़े हुए छद्म विदेशी सभ्यता के आवरण का मोह त्यागना होगा । देश के प्रति गौरव , समर्पण स्वाभिमान का भाव जागृत करना होगा । भारतीयता से दूर भटकाववादी मैकाले की शिक्षा प्रणाली को बदलकर राष्ट्रजीवन के हर क्षेत्र में स्वदेशी व्यवस्थाएँ विकसित करना ही आज का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है । इसके लिए भारतीयता से ओतप्रोत कुछ कर गुजरने का भाव
प्रत्येक भारतवासी के हृदय में होना आवश्यक है । पाश्चात्य जीवन दृष्टी के आकर्षण से बाहर निकलकर भारतीय चिंतन पर आधारित आत्मगौरव का भाव जागृत करना होगा । देश सेवा के कार्य में लगे सभी संगठनों से सहयोग लेकर उसे सहर्ष स्वीकार करने में महानता है । व्यक्तिगत नेतागिरी चमकाने के मोह में देश की हानि होती है , इस पर सभी आंदोलनकारियों को गंभीरता से विचार करना चाहिए । तभी हमें अपेक्षित परिणाम हासिल हो सकेंगे ।
———————— -सुरेन्द्रपाल वैद्य

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