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कांग्रेस की हठधर्मिता

शब्दस्वर
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कांग्रेस की हठधर्मिता
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‘मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की’ यह उक्ति कांग्रेस पार्टी पर बिल्कुल सही तरीके से चरितार्थ होती है। देश की राजनीति में हाशिए पर सिमट चुकी यह पार्टी अपना खिसक चुका जनाधार तलाशने के लिए अंधेरे में तीर चलाने को मजबूर है। अवसरवादी राजनीतिक जमावड़े को इकट्ठा रखने के लिये इसे नेहरू खानदान के किसी व्यक्ति की आवश्यकता हमेशा रहती है। उसके बिना तो इस पार्टी के लोग अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकते। सोनिया के प्रधानमंत्री बनने में असफल रहने के बाद मजबूरी में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार का गठन हुआ जिसने दो कार्यकाल पूर्ण किए। पार्टी की कमान सोनिया के हाथ में रही तथा युवराज राहुल को देश के नेता के रुप में स्थापित करने की भरपूर कोशिशें की गई। जो हर बार औंधे मुंह पछाड़ खाने के बाद वर्तमान समय में भी बदस्तूर जारी है। राहुल क्यों विफल हो रहे हैं यह एक शोध का विषय हो सकता है लेकिन परिस्थितियों से सबक सीखने की चाहत भी पार्टी में समाप्त होती जा रही है। देश की शासन व्यवस्था पर अपने एकाधिकार की विकृत मानसिकता के कारण इस पार्टी की यह दुर्दशा हुई है जिसके कारण दीवार पर लिखी इवारत इसे नजर नहीं आ रही है। अंग्रेजी मानसिकता के बल पर बांटो और राज करो की नीति अब पुरानी हो गई है और देश के मतदाता जागरूक।
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नेशनल हेराल्ड मामले में करोड़ों की संपत्ति हथियाने के आरोप में फंसें सोनिया और राहुल को यह लड़ाई न्यायालय में लड़नी चाहिए लेकिन वे इसे राजनीतिक रंग देकर देश की जनता को गुमराह करने में लगे हैं। इसे अपने खिलाफ राजनैतिक साजिश बताकर संसद और सड़क पर हंगामा करके ढिठाई की सभी सीमाओं को लांघते जा रहे हैं।
जब से देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है तभी से कांग्रेस पार्टी का रवैया असहिष्णु हो गया है। लम्बे समय तक केन्द्र में सरकार चलाने के बावजूद भी वह इस बात को समझ नहीं पाइ है कि संसदीय लोकतंत्र में किस प्रकार देश के हित में आचरण किया जाना चाहिए। सत्ता से बाहर रहने के कारण वह अपना संतुलन खो बैठी है और अदालत के फैसले का सम्मान करने के बजाय उसकी तौहीन करके अपनी फजीहत करवा रही है। सोनिया और राहुल गांधी की चाटुकारिता की होड़ में इस पार्टी के अन्य अनुभवी वरिष्ठ नेता भी न जाने क्या सोच कर अपनी फजीहत करवा रहे हैं। पूरी पार्टी माँ और बेटे की बंधक बन कर रह गई है। न्यायालय के मामलों को लेकर संसद में हंगामा करना और कोई कार्य न होने देना सरासर लोकतंत्र व देश का अपमान है। भलाई इसी में है कि ये लोग अपने गिरेबाँ में झाँके और कानून का सम्मान करना सीखें जिससे देश में बेवजह अस्थिरता का माहौल पैदा करने स बचा जा सके।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य

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