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भारत भूमि पर छत्रपति शिवाजी का जन्म ऐसे समय हुआ जब यह प्राचीन राष्ट्र सैंकड़ोँ वर्षोँ की गुलामी की जंजीरोँ मेँ जकड़ा हुआ था । बड़े बड़े पराक्रमी योद्धा , विद्वान तथा अपने को श्रेष्ठ बतलाने वाले लोग गुलाम मानसिकता के शिकार हो चुके थे । भारतीय सभ्यता , धर्म तथा संस्कृति नष्ट हो रही थी । गो हत्या के साथ साथ हिन्दु मन्दिरोँ और देव मूर्तियोँ को को अपवित्र कर ध्वस्त किया जा रहा था । ऐसे विकट समय मेँ 19 फरवरी 1627 ई. को शिवनेरी के दुर्ग मेँ माँ जीजाबाई की कोख से शिवाजी का जन्म हुआ । जीजाबाई तथा दादाजी कोण्डदेव से देशभक्ति की शिक्षा , युद्धकला , प्रशासन व राजकाज सम्बन्धि ज्ञान प्राप्त किया । तेरह वर्ष की छोटी उम्र मेँ ही कोंडाना दुर्ग को विजय कर माँ जीजाबाई की अभिलाषा को पूर्ण कर दिया । 16 वर्ष की आयु में शिवाजी का मिलन महाराष्ट्र के महान संत समर्थ गुरु रामदास से हुआ जिनकी प्रेरणा से इन्होँने मातृभूमि को गुलामी से मुक्त कर हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना का प्रण लिया । अफजल खान , शाईस्ता खान , जसवंत सिंह आदि शत्रुओँ को परास्त कर अपने सामर्थ्य तथा साहस का लोहा मनवाया ।
केवल तीस वर्ष के कार्यकाल में आदिलशाही व निजामशाही को परास्त किया तथा उत्तर भारत के मुगल शासन को सबक सिखाकर औरंगजेब की नींद हराम कर दी ।
शिवाजी ने संपूर्ण भारत वर्ष को एक शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य के रूप में देखा । 1674 में शिवाजी का राज्यभिषेक हुआ । काशी के विद्वान पँडित गागाभट्ट द्वारा यथाशास्त्र विधिवत उनका राज्याभिषेक किया गया । वेदमंत्रों के उद्घोष के बीच शिवाजी महाराज सिंहासनारुढ़ हुए । इस समारोह से यह घोषित हो गया कि भारत भूमि पर सर्वभौम सत्ता सम्पन्न हिन्दू शासन स्थापित हो गया है ।
आज हमारा देश आजाद है लेकिन गुलाम मानसिकता अभी समाप्त नहीँ हुई है । भारतीय धर्म , संस्कृति तथा जीवन मूल्य खतरे मेँ हैँ । सीमाएं असुरक्षित हैं । भ्रष्टाचार चरम पर है । हिन्दु समाज अपने ही देश मेँ शरणार्थी बनने को मजबूर है ।
इसलिये छत्रपति शिवाजी महाराज आज भी प्रासंगिक हैं । हमें उनसे प्रेरणा लेकर अपने देश की सभी समस्याओँ का हल निकालना चाहिए ।
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