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जय जवान-जय किसान (कविता)

शब्दस्वर
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जय जवान – जय किसान
॰॰॰॰
दो अक्तूबर
लाल बहादुर शास्त्री
की प्रतिमा को
पुष्पाँजलि अर्पित कर
याद किया
गंभीर मुद्रा बनाकर
देश के नेताओं ने ।
आसमान से
यह दृश्य देखा
हजारोँ वीर सैनिक जवानोँ की दिव्यात्माओँ ने
जो हुए शहीद
देश के नेताओं की
राष्ट्रघाती
गलत नीतियों के कारण
पैदा हुए जेहादी आतंकवाद की आग में ।
और . . . . .
अनगिनत
मेहनतकश किसानों की दिव्यात्माओँ ने
जो सरकारी नीतियों से
तंग आकर
आत्महत्या करने को
हुए थे मजबूर ।
और तभी . . . . . ?
वातावरण में
गूँज उठे नारे
जय जवान – जय किसान ।
अंत मेँ
खादी धारण किए हुए
देश के नेता के लिए
हाजिर हुई विदेशी कार
और . . . . . . !
स्वदेशी का विचार
आचरण और व्यवहार
फूलों के हार में
लाल बहादुर की
प्रतिमा के
गले की शोभा बढ़ाता रहा ।

– ॰ – ॰ – ॰ – ॰ – ॰ – ॰
– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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