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धृष्ठता की पराकाष्ठा

शब्दस्वर
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कहने को तो हम स्वतंत्र हैं जबकि वास्तविकता इससे कोसोँ दूर है । हर वर्ष 15 अगस्त तथा 26 जनवरी को भारी सुरक्षा व्यवस्था में लाल किले पर तिरँगा फहरा कर राष्ट्र को सम्बोधित किया जाता है । शहीदोँ को याद करके जनता को देशभक्ति का पाठ पढ़ाकर अपनी उपलब्धियोँ का बखान किया जाता है । लेकिन वस्तुस्थिती इसके बिल्कुल विपरीत है । देश की सँसद पर आतंकवादी हमला , हमारे आस्था केंद्रोँ पर विस्फोट ,सीमाओं पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ,चीन द्वारा घुसपैठ व सीमा विवाद तथा बंगलादेशी आतंकवाद से आज पूरा भारत आक्रांत है । केंद्र सरकार केवल वार्ता का नाटक करती रहती है तथा देश दिन प्रतिदिन असुरक्षित होता जा रहा है । विदेश प्रायोजित जेहादी आतंकवाद , नक्सल तथा माओवाद से निपटने हेतु केंद्र सरकार की नीतियां आत्मघाती तथा लचर हैं । देश की राजनीति में आज ऐसे लोगों की भरमार हो गई है जिनको देश और समाज से कोई मतलब ही नहीं है । ये लोग विशुद्ध आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए व्यावसायिक सहभागिता के आधार पर राजनीति में आये हैं । अधिक से अधिक धन कमाना ही इनका एकमात्र उद्देश्य है जिसके लिए अनैतिकता , भ्रष्टाचार , घोटाले , नियमों व कानूनोँ का उलंघन सब जायज है । कहने को तो सेना , पुलिस तथा अन्य व्यवस्थाएं देश और समाज की रक्षा के लिए हैं लेकिन राजनीति ने इनको अपना बंधक बनाकर रख दिया है । सीबीआई व अन्य जाँच एजैन्सीज का तो अपने विरोधियों के खिलाफ खुलकर दुरपयोग किया जाता है । न्यायालय को बार बार हस्तक्षेप करके इन्हें इनकी जिम्मेवारियोँ का एहसास कराना पड़ता है । स्वामी रामदेव के आंदोलन को आधी रात को कुचलने के बाद अब उनकी कम्पनियों की जाँच उनको परेशान करने के लिए की जा रही है । उसी प्रकार अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आंदोलन के आगे झुकने को मजबूर हुई केँद्र सरकार अब बदले की भावना से अन्ना टीम के सदस्योँ को परेशान कर रही है । अपनी असफलताओं से भी कोई सबक सीखने को यह सरकार तैयार नहीं है । आत्मघाती रवैया अपनाकर यूपीए सरकार देश का भारी अहित कर रही है । वर्तमान में प्रधानमंत्री , मंत्रियों तथा सांसदों को यह आभास न होना दुर्भाग्यपूर्ण है । देशहित के विषयों पर नकारात्मक रुख उनके आपराधिक चरित्र को ही उजागर करता है । दूषित , अनैतिक तथा भ्रष्ट राजनीति लोकतंत्र के अन्य स्तम्भों को भी भ्रष्टाचार के दलदल मेँ घसीटती जा रही है । इसके कारण हमारे समाज जीवन का हर क्षेत्र पर संकट के बादल छाने लगे हैं । आम आदमी को अपना जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है । अन्ना हजारे के व्यक्तित्व में देश के आम आदमी को अपना सच्चा हितैषी दिखा जिसके कारण वह इस आंदोलन में खुलकर शामिल हो गया । अब यूपीए सरकार को आईने में अपना असली चेहरा नजर आ गया है तथा खिसियानी बिल्ली बनकर वह खंभा नोच रही है । अन्ना के आंदोलन का अगला चरण प्रारंभ होने पर ही इस सरकार को असली सबक मिलेगा जिसकी देश में बहुत आवश्यकता महसूस की जा रही है । _ _ _ _ _ _ _ _ _ _ _

– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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