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पेड़ोँ से झड़ जाते पत्ते

शब्दस्वर
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पेड़ोँ से झड़ जाते पत्ते
मिट्टी मेँ मिल जाते पत्ते
नश्वरता का जीवन दर्शन
जग को बतला जाते पत्ते
…….
काल बीतता सड़ गल जाते
मिट्टी में मिल खाद बनाते
पुनः वृक्ष का पोषण करते
ऐसे धन्य महान हैँ पत्ते
…….
नववसंत में नई कोंपले
बन वृक्षों पर जन्मे पत्ते
रंग बिरंगे फूलोँ के संग
मंद मंद इतराते पत्ते
…….
थके पथिक को छाया देते
शीतल पवन बहाते पत्ते
अलसाई बोझिल आँखोँ मेँ
राहत भी पँहुचाते पत्ते
…….
ऋतु चक्र के साक्षी बनकर
युगोँ युगों से भू भण्डल पर
परिवर्तन की अनुपम शिक्षा
मानव को दे जाते पत्ते
…….
नीड़ छोड़ कर पर फैलाये
पक्षी दूर दूर तक उड़ते
शाम ढले उन सबका स्वागत
स्नेह भाव से करते पत्ते
….. …. …. …. …. ….
– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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