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भारत जागो-विश्व जगाओ
यह वर्ष स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयन्ती का वर्ष है। पूरे विश्व में भारत माँ के इस महान सपूत की स्मृति मेँ आयोजन हो रहे हैं। विवेकानन्द ने अपना पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। पूरा विश्व उनसे प्रभावित हो गया था। उन्होँने कभी स्वयं का महिमामण्डन नहीँ किया, न ही आजकल के तथाकथित धर्मगुरुओं की तरह चमत्कारोँ का ढिंढोरा पिटवाया। वे अभावोँ मेँ भूखे प्यासे रहकर भी ज्ञान और शील के बल पर पूरी दुनिया को प्रभावित कर पाये। जबकि आजकल के तथाकथित महर्षि गुरू विज्ञापनोँ की तड़क भड़क और अनर्गल प्रचार के द्वारा अपना आर्थिक कारोबार जमाए हुए है। इनके कहीँ भी पधारने से कई दिन पूर्व ही तमाम ताभझाम अपना जाल बिछाना प्रारंभ कर देते है। अखबारों मेँ चमत्कारों की विचित्र तथा जनता को प्रभावित करने वाली घटनाएँ प्रकाशित होनी शुरु हो जाती है। इनके कार्यक्रमों मेँ राजनेता तथा प्रशासकीय अधिकारी भी खूब भाग लेते हैं, जिससे जनता और अधिक दिग्भ्रमित होती है। भ्रष्टाचारी घोटालोँ में फँसे नेता तो इनके पक्के भक्त होते हैं। अतः जनता को चाहिए कि सत्य को पहचाने और उसी के अनुसार आचरण करें।
भोगवादी संस्कृति तथा भौतिकतावादी आर्थिक दृष्टिकोण के प्रभाव में नैतिक जीवन मूल्य उपेक्षित होते जा रहे हैं। आध्यात्म भी बाजारवाद का शिकार हो गया है। ध्यान, पूजा पाठ, जप तप के अर्थ गलत ढंग से परिभाषित किए जा रहे हैं। राम नाम की दीक्षा के रेट तय किए जा रहे हैं। करोड़ों के घोटालेबाज स्वयं को बचाने के चक्कर मेँ बाबाओं की शरण में आते हैं। ये भ्रष्ट नेता चुनाव जीतने के लिए तांन्त्रिक अनुष्ठान करवाते हैं। तथाकथित ये आडम्बर करने वाले महषि व अनिर्मल बाबा भारतीय समाज की धार्मिक निष्ठाओं का निर्ममता से दोहन कर रहे हैं। यह बहुत दुःखद है कि देश की जिस सत्ता को इसे रोकना है वह खुद ही इसकी शिकार है। जबकि हवन यज्ञ तो वैदिक पद्धति के अनुसार प्राणिमात्र के कल्याण के लिए आयोजित किए जाने चाहिए। समाज में जिन लोगों पर इसे संवारने की जिम्मेवारी है आज वे ही लोग सबसे ज्यादा दिग्भ्रमित हैं।
कोई भी टीवी चैनल खोल लो चमत्कारी यन्त्र बेचे जा रहे हैं। सारी दरिद्रता और गरीबी दूर करने की गारण्टी दी जा रही है। परीक्षा मेँ पास होने के नुस्खे बताए जा रहे हैं।
आज के इस निराशामय वातावरण में सभी को अपने अंतरमन में झाँकने की आवश्यकता है। इस देश की महान आध्यात्मिक परंपरा को पाखँड से बचाने की बहुत आवश्यकता है। स्वामी विवेकानन्द के पदचिन्होँ पर चलकर ही इस देश और समाज का भला हो सकता है। आदिकाल से ही भारत में ऋषि मुनियोँ की बहुत समृद्ध परंपरा रही है जिन्होंने भारत को विश्व मेँ आध्यात्मिक राष्ट्र और जगद्गुरु के रुप मेँ प्रतिष्ठा दिलाई। जिसे बनाए रखना बहुत आवश्यक है। इस निराशा के माहौल में भी देश में स्वामी रामदेव जी, स्वामी सत्यमित्रानन्द जी व साध्वी ऋतंभरा जी जैसे बहुत सी धार्मिक और सेवा कार्यों में लगी विभूतियों की वृहद श्रृंखला समाज जागरण के लिए प्रयासरत हैं।
स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि धर्म अर्थात आध्यात्म ही भारत की आत्मा है और इसका उत्थान भी धर्म से ही होना है। हिन्दु समाज के सुधार के लिए धर्म को विकृत करने की आवश्यकता नहीँ है तथा समाज की वर्तमान अवस्था का कारण धर्म नहीँ है बल्कि धर्म को समाज पर सही रुप से लागू नहीँ किया जाना है।
अतः देश की सुप्त पड़ी चेतना को जागृत करेँ तभी इस महान राष्ट्र का कल्याण होगा।
– सुरेन्द्रपाल वैद्य,
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