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भ्रष्टाचार के रोग से ग्रस्त राजनीति से आहत देश

शब्दस्वर
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आजकल भ्रष्टाचार का मुद्दा पूरे देश मेँ चर्चा का विषय बना हुआ है । भारत घोटालोँ का देश बन चुका है । लाखोँ करोड़ रुपयोँ के घोटालोँ मेँ यूपीए सरकार घिरी हुई है जिसके कई मंत्री व नेता तिहाड़ जेल मेँ बंद हैँ । देश मेँ कोई ऐसी व्यवस्था विकसित नहीँ हो पाई है जिससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे । घोटालोँ से पर्दा उठने के बाद उसकी जाँच मेँ बहुत समय नष्ट हो जाता है । भ्रष्टाचारी मामले को लम्बी तथा पेचीदी कानूनी प्रक्रिया मेँ उलझाकर मौज करते रहते हैँ । आजादी के बाद से ही देश को आजाद कराने की कीमत पर इसकी सत्ता और राजनीति पर काँग्रेस ने केवल अपना ही अधिकार समझा । इसके कारण सत्ता के बल पर लोकतन्त्र के आधार स्तंभोँ को कमजोर किया गया । जो शासन व्यवस्था मजबूत और जवाबदेह होनी चाहिए थी वह शनै शनै कमजोर, भ्रष्ट और निरँकुश होती चली गई । छद्म धर्मनिर्पेक्षता तथा आरक्षण के आधार पर समाज को बांटा गया जिससे वोट बैँक की राजनीति ने जन्म लेकर सामाजिक समरसता के भाव को छिन्न भिन्न कर दिया । अंग्रेजोँ द्वारा स्थापित डिवाइड एण्ड रुल की नीति को कांग्रेस ने पूरी निष्ठा के के साथ जारी रखा । इस काम मेँ अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राष्ट्रविरोधी नीति को अपनाकर उन्हेँ बहुसंख्य भारतीय समाज के विरुद्ध भड़काकर अलगाववाद को हवा दी । इस राष्ट्रघाती कार्य मेँ वामपंथियोँ ने भी काँग्रेस का पूरा साथ दिया । देश की प्राचीन वैदिक संस्कृति की अवधारणा को अस्वीकार कर दिया गया तथा ‘काफिले आते गये कारवाँ बनता गया’ के कपोल कल्पित मत को प्रतिपादित किया गया । तथाकथित सैकुलर विद्वानोँ और शिक्षाविदोँ ने भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्योँ को शिक्षा से बाहर कर देश मेँ अंग्रजोँ के अधूरे काम को पूरा कर दिया । इसी का नतीजा है कि आज राष्ट्र भाव से विहीन लोग समाज के हर क्षेत्र मेँ भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित करने मेँ लगे हुए हैँ । लेकिन आज देश का दुभाग्य देखिए , इन विपरीत परिस्थितियोँ मेँ भी सभी राजनैतिक दल सत्ता की दौड़ मेँ समझौतावादी नीतियोँ पर चल पड़े हैँ । केँद्र सरकार के भ्रष्टाचार पर आन्दोलित होना ही चाहिए लेकिन यही दृष्टिकोण प्रदेशोँ मेँ चल रही अपनी पार्टी की सरकारोँ के भ्रष्टाचार के प्रति भी होना चाहिए । इस विषय मेँ भाजपा के वरिष्ठ नेता शांताकुमार का स्टैण्ड बिल्कुल सही है । भ्रष्टाचार और नैतिकता की परिभाषा और मापदण्ड सबके लिए एक समान होने चाहिए । नैतिकता , देशभक्ति और राष्ट्रहित के विषयोँ से समझौता करने की प्रवृति के कारण पार्टी मेँ अवसरवाद हावी होता जा रहा है । निष्ठावान कार्यकर्ता अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है । कुल मिलाकर देश की राजनीति मेँ धंधेबाज अपने अपने स्वार्थ साधने मेँ लगे हैँ और देश असुरक्षित होता चला जा रहा है । आज देश मेँ आतंकवाद चरम पर है , पड़ोसी देशोँ के साथ लगती सीमायेँ असुरक्षित हैँ । विश्व पटल पर भारत की छवि कमजोर इच्छाशक्ति वाले तथा स्वाभिमान शून्य नेतृत्व के कारण धूमिल होती जा रही है । ऐसे संकट के माहौल मेँ देश को सशक्त राष्ट्रवादी राजनैतिक नेतृत्व की आवश्यकता है । लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि हमारे देश के राष्ट्रवादी दल भी तथाकथित सैकुलरवाद की घटिया तुष्टीकरण के कारण समझौतावादी रास्ते पर चल पड़े हैँ । आज देश के सामने एक भयानक राजनैतिक शून्य है जिसके विषय मेँ सभी देशभक्तोँ को गंभीरता से विचार करना चाहिए ।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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