Menu
blogid : 5617 postid : 211

भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक ईमानदार सोच और कर्तव्यनिष्ठा की आवश्यकता

शब्दस्वर
शब्दस्वर
  • 85 Posts
  • 344 Comments

वर्तमान मेँ भारत को स्वतन्त्र हुए छह दशक पूरे हो चुके हैँ । इतना समय किसी भी देश को अपने पराधीनता के कारणोँ को समाप्त कर उन्नति के नए आयाम स्थापित करने के लिए बहुत ज्यादा है । लेकिन उन्नति की बात छोड़िए आज तो देश का आम आदमी अपने सर पर छत से वंचित भूखा मरने को मजबूर है । जनता की जेब का पैसा भ्रष्टाचार के सागर मेँ समाहित होता जा रहा है । अमीर गरीब के बीच की खाई निरंतर गहरी ही होती जा रही है ।
विचार करने की बात है कि हमारे देश का संचालन लोकतंत्र के अंतर्गत चुनी गई सरकार द्वारा किया जाता है । हम अपने प्रतिनिधियोँ को चुनकर केन्द्र तथा प्रदेश सरकार मेँ भेजते हैँ । इनसे अपेक्षा की जाती है कि ये देश की शासन व्यवस्था को ईमानदारी से चलाकर जनता को जीने का सम्मानजनक अधिकार दिलाकर देश को आगे बढ़ाएंगेँ । लेकिन ये जनता के प्रतिनिधि विभिन्न राजनीतिक दलोँ के टिकट पर चुनाव जीतकर सरकार में बैठे होते हैँ । आजकल देश की लगभग अधिकतर पार्टियाँ भ्रष्टाचारियोँ की सैरगाह बनती जा रही है । सोनिया के निर्देशन में चल रही यूपीए सरकार तो देश की अब तक की भ्रष्टतम सरकार बन गई है ।
आज एक छोटे कर्मचारी से लेकर मँत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय तक भ्रष्टाचार का आलम है । इस भ्रष्टाचार की शिकार हो रही है देश की मेहनती, गरीब और बदहाली में जीने को मजबूर जनता ।
इन भ्रष्टाचारियोँ के मकड़जाल में उलझकर आज पूरा देश छटपटा रहा है । जिन कंधोँ पर देश की शासन व्यवस्था के सँचालन की जिम्मेवारी है वे केवल लीपापोती करके देश को हानि पहुँचा रहे है ।
विपक्षी दल अपने अपने पारिवारिक, क्षेत्रीय, साँप्रदायिक तथा जातिगत हितोँ की राजनीति करके देश की जनता को विभाजित करने मेँ मशगूल हैँ ।
देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा धीरे धीरे अपनी पहचान खोती जा रही है । त्याग तपस्या और बलिदान करने वालोँ की पार्टी स्वार्थी और अवसरवादी लोगोँ का जमावड़ा बनती जा रही है । नरेन्द्र मोदी जैसे नेताओँ के मार्ग में बाधाएँ खड़ी करके पार्टी के नेता अपने अपने स्वार्थ साधने मेँ लगे हैँ । सत्ता पर काबिज होने के लिए भ्रष्टाचार के आरोपोँ की अनदेखी की जा रही है । पार्टी का मूल चरित्र बदलता जा रहा है । भ्रष्टाचार को मूल समस्या बताकर नये नये कठोर कानूनोँ की आवश्यकताओं पर आन्दोलन किए जा रहे हैँ । जबकि हकीकत बिल्कुल विपरीत है । पद, गोपनीयता और निष्ठा से कार्य करने की शपथ लेने वाले ही जब भ्रष्टाचारी होँ तो यह समस्या कानूनोँ से हल होने वाली नहीँ हैँ । आज तो नेता, अफसर तथा पैसे वाले अनेक लोग अपने को कानून से ऊपर समझते है । इन लोगोँ द्वारा मनमानी करने के समाचार सामान्यतया प्रकाशित होते रहते हैं ।
आज आम आदमी को लेकर राजनीति की जा रही है । आम आदमी की राजनीति करने वाले कुछ खास लोग समय समय पर नये नये खुलासे करके अपनी राजनीति कर रहे हैं । आम आदमी की अवधारणा भी अपने आप मेँ एक बहस का विषय बन गई है । आज आवश्यकता है तो केवल तथाकथित माननीयोँ को अपनी मानसिकता बदलने की है । राजनीति को देशसेवा का माध्यम समझने की है, घोटाले करके अकूत धन कम कमाने के उद्योग की नहीँ । चरित्रवान और राष्ट्रभक्त व्यक्ति को किसी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीँ होती । ये बातेँ उसकी जीवनचर्या और व्यक्तित्व मेँ झलकनी चाहिए ।
आज समस्या कानूनोँ की उतनी नहीँ हैँ जितनी की उनका पालन करने की मानसिकता की कमी की । इस प्रकार हम कह सकते हैँ कि देश मेँ भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कानूनोँ की आवश्यकता तो है लेकिन उससे कहीँ अधिक आवश्यकता है एक ईमानदार सोच और कर्तव्यनिष्ठा विकसित करने की ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh