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मन्दिर के खजाने पर बहस

शब्दस्वर
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आजकल स्वामी पद्मनाभ मन्दिर के तहखाने से निकले खजाने को लेकर सर्वत्र चर्चा है । इस धन से हमारे देश की गरीबी दूर नहीँ हो सकती । क्योँकि जो धन गरीबी दूर करने के लिए सरकार व्यय करती है उसका अधिकांश भाग भ्रष्टाचार की भेँट चढ़ जाता है तथा बेचारा गरीब वहीँ का वहीँ रह जाता है । देश मेँ गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी तथा मँहगाई की मुख्य वजह भ्रष्टाचार है । भ्रष्ट राजनीतिज्ञ और अफसरशाही ही इसके लिए मुख्य रुप से जिम्मेवार हैँ । भारत आज भी एक अमीर देश है , यहाँ कमी है तो केवल ईमानदार, देशभक्त तथा अपने दायित्वोँ के समर्पित राजनेताओँ तथा अफसरशाही की । अगर देश का संचालन करने वाली व्यवस्था भ्रष्टाचार मुक्त , ईमानदार व दायित्व निष्ठ होकर कार्य करे तो देश फिर से सोने की चिड़िया कहलाएगा जिससे गरीबी तथा अन्य सभी समस्याएं स्वतः ही हल हो जाएगी । ऐसी स्थिती मेँ पद्मनाभ मन्दिर के तहखाने से मिला खजाना भी केवल एक पुरातात्विक धरोहर व सांस्कृतिक महत्व की वस्तु के रुप मेँ देखा जाएगा ।
कभी विश्वगुरु तथा सोने की चिड़िया कहलाने वाले हमारे देश को विदेशी आक्रमणकारियोँ, मुगलोँ तथा अँग्रेजोँ ने जी भरकर लूटा । अगर यह कहेँ कि विश्व के कुछ देशोँ मेँ आज विकास की जो चकाचौँध दिख रही है उसके पीछे हमारे देश से लूटकर ले जाई अकूत संपदा ही है । वर्तमान मेँ इसी काम को हमारे देश के भ्रष्ट नेता, नौकरशाह और अन्य देशद्रोही कर रहे हैँ तथा कालेधन के रुप मेँ हमारा बेशुमार धन विदेशी बैँकोँ की शोभा बढ़ा रहा है, और हम टकटकी लगाए मन्दिर के खजाने को देख रहे हैँ । अँग्रेजोँ ने योजनाबद्ध तरीके से ऐसी व्यवस्था और सोच हम पर लाद दी है जिससे हम बाहर नहीँ निकल पा रहे हैँ और न ही हमारी सरकार व तथाकथित सैकुलरोँ को ऐसी चाह है । आज जो शिक्षा पद्धति हमारे देश मेँ है उससे एक दिग्भ्रमित तथा स्वदेशी की भावना से अनभिज्ञ समाज का निर्माण हो रहा है । इसे बदल कर राष्ट्र के प्राचीन जीवन मूल्योँ को स्थापित करने वाली शिक्षा को लाना है जिससे सही अर्थोँ मेँ व्यक्ति निर्माण हो सके । तभी हमारे देश की भावी पीढ़ीयां इसे संभालने मेँ सक्षम होँगी ।
पद्मनाभ स्वामी मन्दिर से निकला खजाना देश की आस्थावान जनता का है । इस प्राचीन धरोहर को संभालकर सुरक्षित रखना सरकार का दायित्व है जिसके लिए मन्दिर की देखरेख मेँ संग्रहालय का निर्माण किया जाना चाहिए । यही इसका उचित समाधान होगा ।
– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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