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यूपीए सरकार की गरीबों पर कुदृष्टि

शब्दस्वर
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किसी का मजाक बनाना हो तो कोई भी यूपीए तथा कांग्रेस पार्टी के धुरंधरों से सीख सकता है । हाल ही में इन्होंने गरीबों का ऐसा मखौल उड़ाया है कि इनका नाम सबसे दुष्ट और क्रूर मखौलियों के तौर पर गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किया जाना चाहिए । वैसे तो पहले भी इन्होंने देश के साथ बड़े बड़े घटिया मजाक किये हैं । देश की अस्मिता, अखण्डता व सुरक्षा का मखौल उड़ाना तो प्रारंभ से ही इनके प्रिय विषय रहे हैं । लोकतंत्र का गला घोंटकर सत्ता सुख में लिप्त रहना तो इनका जन्म सिद्ध अधिकार है । एक अँग्रेज ए. ओ. ह्यूम ने 1885 में जब कांग्रेस की स्थापना की थी तो उसने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि इक्कीसवीं शताब्दी में इसकी बागडोर फिर से एक यूरोपीय मूल की महिला के हाथ मेँ होगी । जिसके दरबारी भारतीय राजनेता होंगे । ह्यूम की आत्मा जहां भी होगी , यह देखकर प्रसन्न हो रही होगी कि जो काम मैँ नहीं कर सका वह यूपीए अध्यक्षा सोनिया गाँधी कर रही है ।
आपने जादुगरों के शो तो देखे होंगे । वे बड़े बड़े करतब दिखाकर दर्शकों को दाँतोँ तले उंगलियां दबाने को मजबूर कर देते हैं । लेकिन यूपीए के धुरंधरगरों ने तो गरीबी की नई परिभाषा रचकर उन्हेँ अपनी उंगलियां चबाकर ही भूख मिटाने को मजबूर कर दिया है । जरा सोचिए . . . . ! हो सकता है कोई इनसे बड़ा जादूगर ? भ्रष्टमण्डल खेलोँ के खिलाड़ी कलमाड़ी तिहाड़वासी (आजकल ) अपने सहयोगियों के साथ दस बीस रूपये की वस्तु को सैंकड़ों रूपयोँ में, हजारोँ की लाखों में तथा लाखों के काम करोड़ोँ मेँ करवाकर देश को हजारोँ करोड़ रूपये का चूना लगाकर अपनी भ्रष्ट जादुगरी दिखा चुके हैं । लेकिन अब शेष मंत्री जादूगर जो सरकार चला रहे हैं ग्रामीणोँ में 26 और शहरीयोँ मेँ 32 रूपये कमाने वालोँ को गरीब मानने को तैयार नहीँ हैं । मंहगाई सातवेँ आसमान पर है और वे 26 रूपये प्रतिदिन में ब्रेकफास्ट , लंच , डिनर, नहाना ,धोना , रहना ,कपड़ा ,पढ़ाई , लिखाई , बूट चप्पल , दवाई , वगैरा वगैरा सभी कुछ करने को कहते हैं । इन पैसोँ में इतना कुछ खरीदने की कल्पना मात्र से ही किसी का भी सिर चक्कर खा सकता है ।
देश के 300 सांसद करोड़पति हैं । फिर भी 2010 में इन्होँने अपना वेतन 16000 रुपये से बढ़ाकर 50000 तथा दैनिक भता 2000 कर दिया था और अपनी गरीबी दूर कर दी । बाकी गड़बड़झाले अलग से जिनका हिसाब लगाना नामुमकिन है ।
मनमोहन सिंह , मोँटेक सिंह तथा अन्योँ को सामान्य समाज में रहने वाले आम आदमी की कितनी कल्पना है यह एक शोध का विषय बन गया है । शोध करने वाले इनको तथा इनके आकाओं को गरीबों के हितैषी सामाजिक प्राणी सिद्ध करने पर भी शोध कर सकते हैं । बेशर्मी की हद तथा इसके प्रकारोँ पर भी अध्ययन करने की काफी गुंजाइश है । कुल मिलाकर इस देश की जनता की सहनशीलता की सीमा ही काबिले तारीफ है , जिसके कारण ये तमाम विसंगतियां पैदा हुई हैं । जनता को ही इस पर शोध करके कुछ निष्कर्ष निकालकर उसका कार्यान्वयन करना चाहिए ,तभी देश का कुछ भला हो सकता है । अपनी यादाश्त को भी तेज करना होगा । 100 दिनोँ मेँ मंहगाई कम करने की घोषणा को जनता क्यों भूल जाती है जिसे 1000 से ज्यादा दिन हो गये है । इंदिरा गाँधी ने तो आज से कई दशक पहले गरीबी हटाओ का नारा देकर चुनाव जीत लिया था जिसने बाद में गरीबोँ को ही हटाना प्रारंभ कर दिया था जो आज भी उसके उतराधिकारियों द्वारा अनवरत जारी है । प्रजातंत्र में मतदाता ही सर्वोपरि होता है । देशभक्त तथा जनता के हितैषी राजनीतिज्ञोँ को भी एक मंच पर आकर अपनी विश्वसनीयता बहाल करनी होगी । तभी देश वर्तमान चुनौतियोँ से पार पा सकता है ।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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