Menu
blogid : 5617 postid : 229

राष्ट्रीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी का पदार्पण

शब्दस्वर
शब्दस्वर
  • 85 Posts
  • 344 Comments

narendramodiराष्ट्रीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी का पदार्पण
वर्तमान में देश के राजनैतिक समीकरण नरेन्द्र मोदी को लेकर उलझे हुए हैं। उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव प्रचार की कमान सौंपने के बाद वरिष्ठ नेता आडवाणी के इस्तीफे से उत्पन्न विवाद के शांत होने से जहाँ भाजपा को राहत मिली है वहीँ एनडीए के घटक जेडीयू तिलमिलाए हुए हैं। एनडीए में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन गठबंधन धर्म की सबसे अधिक कीमत इसी ने चुकाई है। अन्य घटक हमेशा अपनी मनमानी करते रहे हैं। इससे भाजपा का राजनीतिक चरित्र अपने मुद्दोँ से भटकर अवसरवादी हो गया । इसका सीधा लाभ यूपीए को मिला और अब उसकी अक्षम और दिशाहीन रीढ़विहीन सरकार के दो कार्यकाल 2014 में पूरे होने जा रहे हैं। देश में मंहगाई, भ्रष्टाचार और घोटालोँ में भारी वृद्धि हुई है। आतंकवाद चर्म पर है। देश की सीमाएँ असुरक्षित है। लेकिन एनडीए तथा भाजपा देशव्यापी कोई बड़ा आंदोलन इसके खिलाफ खड़ा नहीं पाए। क्षेत्रीयता, जातिवाद, परिवारवाद तथा भ्रष्टाचार आदि बुराईयां इसे खोखला करती रही। राष्ट्रीय राजनीतिक दृष्टिकोण रखने वाली पार्टी क्षेत्रीय दलों की संकीर्णता का शिकार होती रही जिससे स्वार्थी लोग संगठन पर हावी होते रहे। जबसे भाजपा ने गठबन्धन की राजनीति को अपनाया है तभी से इसका दामन दागदार हुआ है। ये दाग पार्टी के लिए कभी भी अच्छे साबित नहीँ हुए। इन दागों ने भाजपा के चरित्र और चेहरे को बिगाड़ कर रख दिया है जो देश की जनता को अच्छे नहीं लगे और इसका जनाधार सिकुड़ता गया। सत्ता और संगठन को लेकर पार्टी अपने मूल उद्देश्योँ से समझौता करके बहुत कुछ खो चुकी है। समय और समय की धार को देखकर सही निर्णय लेने की बहुत आवश्यकता है।
इसी दौरान भाजपा को उत्तराखंड, हिमाचल और कर्नाटक के चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा है तथा पार्टी के कार्यकर्ताओं व मतदाताओं का मनोबल कमजोर हुआ है।
इस प्रकार के निराशाजनक माहौल में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा सहित पूरे देश में आशा की किरण और युवाओं के नायक बनकर उभरे हैं। उन्होँने गुजरात को आदर्श राज्य बनाकर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। कुल मिलाकर देखा जाए तो मोदी देश के लिए संकटमोचक बनकर उभरने की दिशा में अग्रसर है।
इसमें कोई दो राय नहीँ कि आज मोदी का कद बढ़ा है। इसी कारण राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के चलते अनेक अवसरवादी नेता उनसे भयभीत हैं।
सोनिया गाँधी ने कभी उन्हें मौत का सौदागर कहा था। अब बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू क वरिष्ठ नेता उन्हें मौत की दवा बता रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने मोदी को भस्मासुर व पहला प्रामाणिक फासीवादी नेता कहा है। मोदी को काँग्रेस के लिए चुनौती मान कर वे अपनी ही पार्टी के निशाने पर भी आ गए हैं।
भय खाकर उल्टीसीधी बयानबाजी करके ये नेता अपनी भड़ास भले ही निकाल लें, नरेन्द्रमोदी धीर गंभीर होकर आगे बढ़ते जा रहे हैं।

कमजोर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कार्यकाल देश का समय बर्बाद करने और संसाधनों की लूट के काले अध्याय और सोनिया की कठपुतली के रूप में याद किया जाता रहेगा। आगामी लोकसभा चुनावों में किसकी सरकार बनेगी यह तो मतदाताओं पर निर्भर करता है। लेकिन उन्हें देश की परिस्थितियों से अवगत करवाकर एक कार्ययोजना प्रस्तुत करना तो राजनैतिक दलोँ का ही काम है। व्यक्तिगत, परिवारवादी तथा राजनीति को व्यवसाय समझने वाले लोगों और दलों से परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती।
यूपीए के भ्रष्ट और असफल शासन से देश को बचाने के लिए एक दृढ़इच्छाशक्ति वाले कुशल प्रशासक की बहुत आवश्यकता र्है। अब तक के परिदृश्य मेँ तो मोदी ही इस कसौटी पर खरे उतरते दिखलाई पड़ रहे हैं। अगर भाजपा के अन्य महत्वाकांक्षी नेता अपने स्वार्थों से उपर उठ कर पूरी शक्ति से संगठन को मजबूती प्रदान कर कार्य करें तो देश में एक मजबूत तथा स्वाभिमानी सरकार की स्थापना हो सकेगी। इसी में देश और जनता का हित है।
——————-
-सुरेन्द्रपाल वैद्य

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh