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वर्षाऋतु

शब्दस्वर
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– वर्षाऋतु –

सावन है वर्षा का मौसम ,
भीगा-भीगा रहता तन मन ।
जब तब वर्षा की बौछारेँ ,
नदियाँ झीलेँ भर भर जायेँ ।।

हर प्राणी की प्यास बुझाए ,
हरियाली भू-पर लहराये ।
पक्षी वन्य जीव हर्षाते ,
उछलेँ,कूदेँ,नाचेँ, गाएं ।।

आम्रकुँज मेँ कोयल कूके,
मीठे बोलोँ से मन मोहे ।
मोर पंख फैलाकर नाचे,
झूमेँ मेघ फैलाकर बांहेँ ।।

नगर ग्राम मेँ लगते झूले,
तन के संग-संग मन भी डोले ।
भाव हृदय के मधुर गीत मेँ ,
सुन्दर होठोँ से जब निकले ।।

यादोँ के सागर मेँ गुपचुप ,
पिया संग खाए हिचकोले ।
स्मृति के पन्ने हौले हौले ,
एक एक जब खुलते जाएं ।।

एक एक जब खुलते जाएं ।।

जब काले बादल मंडराते,
उमड़ घुमड़ कर भू- मण्डल पर ।
तृप्त धरा को करता सावन , सबकी प्यास बुझाता सावन ।।

– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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