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स्वामी विवेकानन्द
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सारी दुनिया मना रही है,
सार्धशती उस जन नायक की।
नाम विवेकानन्द है जिसका,
भारत माँ के सुत महान की।
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बाल्यकाल से ही मन में था,
प्राणिमात्र हित सेवा भाव।
बालसुलभ उत्श्रृंखलता मेँ भी,
मानवता का था प्रभाव।
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गुरुवर ठाकुर रामकृष्ण के,
चरणों में प्रिय शिष्य बने।
शाँत हुई तब ज्ञान पिपासा,
विवेक जगा गुणवान बने।
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परिव्राजक सन्यासी बन,
भारत भर का म्रमण किया।
रामकृष्ण मठ स्थापित करके,
सेवा का दृढ़ संकल्प लिया।
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नर सेवा नारायण सेवा,
का जग को संदेश दिया।
जाति पंथ का भेद भुलाकर,
समता का नव आधार दिया।
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अखिल विश्व में हिन्दू धर्म की,
विजय पताका फहराई।
भारतीय संस्कृति की गरिमा,
महिमा मंडित करवाई।
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जागृत रहकर लक्ष्य प्राप्ति का,
युवकों में संचार किया।
भारत माता के चरणों में,
नतमस्तक सब संसार किया।
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आज समय की मांग यही है,
हर भारतवासी उठ जागे।
भारत भू का नाम विश्व में,
चमके सब कार्यों आगे।
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स्वामीजी के आदर्शों को,
निज जीवन मेँ सब अपनायें।
सच्चे श्रद्धासुमन यही हैं,
अपना जीवन धन्य बनायें।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य
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