शब्दस्वर
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इस दुनिया के गर्भ में, निधियां हैं अनमोल।
लेकिन उन सब पर चढ़े, आवरणों के खोल।
आवरणों के खोल, बहुत ही विस्मयकारी।
इसी हेतु है व्यस्त, आज की दुनिया सारी।
कह सुरेन्द्र यह बात, न उलझें व्यर्थ क्रिया में।
रहें स्नेह के साथ, सभी मिल इस दुनिया में।
कुण्डलिया-२
धन दौलत माया सभी, रहती सदा न साथ।
भरा खजाना छूटता, खाली रहते हाथ।
खाली रहते हाथ, मगर व्यक्ति नहीं माने।
करना इनको प्राप्त, लक्ष्य जीवन का माने।
कह सुरेन्द्र यह बात, सुधारें मन की हालत।
मानव सेवा भाव, सत्य है यह धन दौलत।
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