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राजनीति की गरिमा को बहाल करना होगा

शब्दस्वर
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साधारण तौर पर आम आदमी से अभिप्राय एक ऐसे व्यक्ति से होता है जो बहुत अमीर नही है और सामान्य जीवन यापन करता है । आजादी से पहले के जमाने में अंग्रेज वी आई पी हुक्मरान कहलाते थे जिन्होँने कुछ उपाधियों से यहाँ के राजा महाराजाओँ तथा गद्दार चापलूसोँ को भी विभूषित कर रखा था । शेष आम भारतीयोँ को तृतीय श्रेणी ही यात्रा करने की सख्त हिदायत थी । जिसका पालन न करने पर भारतीयोँ के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था । ‘इंडियन्स एण्ड डाग्स आर नाट एलाउड’ के सूचना पट्ट महत्वपूर्ण स्थानोँ पर लगे होते थे । लेकिन आज तो भारत आजाद है । आम आदमी देश के विषय में क्यों नहीँ सोच सकता । सांसद , विधायक तथा मंत्री यह कैसे सोच सकते हैँ कि जनता का काम एक बार वोट देने के बाद खत्म हो जाता है और उनको पांच साल तक मनमानी करने का अधिकार मिल जाता है । यह प्रवृति ही सभी समस्याओं की जड़ है । एक आम आदमी का सम्मान हर हाल में बहाल होना चाहिए तथा उसकी बात सुनी जानी चाहिए ।
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आम आदमी
खास आदमी
दोनों का लहू लाल
एक फटेहाल
दूसरा मालामाल …. !
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वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी लड़ाई सड़कों पर लड़ने को मजबूर है । जिनको वोट देकर जनता ने अपना प्रतिनिधि बनाकर देशसेवा के लिए संसद में भेजा था उनमें से अनेक हजारोँ करोड़ रुपये के घोटालेबाज तथा भ्रष्टाचारी ही निकले हैं । एक अदना सा सरकारी कर्मचारी भी करोड़ों का भ्रष्टाचार कर सकता है । एक निर्दलीय विधायक बड़ी बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के कंधे पर सवार होकर मुख्यमंत्री बनकर सैंकड़ोँ करोड़ रूपये के घोटाले कर सकता है । आज देश की राजनीति भ्रष्ट, अनैतिक तथा प्रदूषित हो गई है जिसके कारण लोकतंत्र मजाक बनता जा रहा है । राजनीति पारिवारिक व्यवसाय में बदलती जा रही है । प्रभावशाली व्यक्तियों तथा राजनेताओँ को नियमों मेँ छूट मिल जाती है । एक आम आदमी अगर अपना बिजली पानी का बिल समय पर न भरे तो उसका कनैक्शन काट दिया जाता है । लेकिन हमारी लोकसभा की माननीय सभापति महोदया अपने आवास के लगभग पौने दो करोड़ की बकाया देनदारियों के बावजूद भी मजे से लोकसभा का संचालन करती हैँ , जहां देश के लिए कायदे कानून बनाए जाते है ।
देश की जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलित है । यह ठीक है कि कानून सड़क पर नहीँ बनते लेकिन नया इतिहास रचने कि निर्णायक लड़ाईयां सड़कों और चौराहोँ पर ही लड़ी जाती है । सरकार को चाहिए कि हठधर्मी को छोड़े और समय की नजाकत को समझे । जनता को अधिक समय तक मूर्ख नहीँ बनाया जा सकता । अंततोगत्वा देश की राजनीति को ही सुधरना होगा तभी देश का भला होगा । ‘राजनीति’ यह शब्द ही बदनाम हो गया है । इसके सकारात्मक पवित्र अर्थ को बहाल करना होगा । इस महान कार्य को राजनैतिक दल और व्यक्ति ही अंजाम दे सकते है । अक्सर राजनीति का नाम आते ही इसे भ्रष्ट ,अनैतिक और धूर्त व्यक्तियोँ का क्षेत्र मान लिया जाता है । सारी समस्यांए यहीँ से प्रारंभ होती है । गलत आचरण राजनीति का पर्याय बन गया है । इस मान्यता को बदलना होगा । अच्छे चरित्रवान देशभक्त लोगोँ को आगे आकर इस शून्य को भरना होगा । राजनितिक दलोँ को आगे आकर इस काम में महत्वपूर्ण निभानी है । इसे एक आदर्श और पवित्र गरिमाभय क्षेत्र बनाना है ।
भ्रष्ट राजनीति ही देश की देश की सभी समस्याओं की जड़ है । बाहुबली और अपराधियों के गठजोड़ ने तो समस्या को और भी गंभीर बना दिया है । राजनीतिक दल भ्रष्टाचारियों की शरणस्थलियां बन गये हैं । एक दल से निकाले गए भ्रष्टाचारियों को दूसरे दल शरण दे रहे हैं । जिस सुखराम को लेकर कभी भाजपा ने संसद को सप्ताह से अधिक समय ठप्प रखा था बाद में उसी को गले लगाकर हिमाचल में सरकार बना ली थी । कुछ इसी प्रकार की गतिविधियां आज उत्तर प्रदेश मेँ जारी हैं । नैतिकता की बातेँ केवल भाषणोँ का विषय ही नहीँ होनी चाहिए , उन्हें यथार्थ में भी अपनाना ही चाहिए । जिस सर्वोच्च स्थान में देश के समग्र विकास के लिए योजनाएँ तथा नीतियां बनती होँ वहाँ घोटालेबाजोँ का क्या काम ? उनकी सही जगह तो जेल है । उन्हें खुली लूट की छूट कैसे मिल जाती है । राजनीति ही देश की दशा और दिशा का निर्धारण करती है । इसे सही रास्ते पर आना ही होगा । इससे ही देश की अधिकतर समस्याओं का निवारण संभव है ।
देश की जनता अपना काम पूरी निष्ठा से करे और राजनीति विश्व में देश का नाम ऊंचा करने में अपनी ऊर्जा लगाए तभी हम विश्व के सबसे महान लोकतंत्र कहलाने के हकदार होंगे ।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य

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