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होली पर कुछ मुक्तक
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टहनियों पर कोंपलें फूटी हैं फिर से
तितलियाँ नवरंग ले जागी हैं फिर से
दिन लगे बढ़ने नया उत्साह भरकर
कुछ उमंगें प्रीत की जागी हैं फिर से
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रंगो की सौगात लिए होली आई है
प्यार भरी कोइ बात लिए होली आई है
हर अनुभूति आतुर हैं बाहर आने को
होंठों पर मुस्कान लिए होली आई है
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गायें एक तराना होली का मिलकर
शुभ रंगों के जैसे आपस में घुल कर
फागुन की सौगात सुहानी है होली
मन से इसे मनायें आपस में खुलकर
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होली का त्योहार सुहाने रंगों का
मन में जागी प्यार भरी उमंगों का
इंद्रधनुष के रंग लिए उड़ती चुनरी
यौवन के बलखाते सुन्दर अंगों का
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रंग हवा में होली के उड़ते जाते
कदम निरंतर आगे ही बढ़ते जाते
थामें कर में रंग भरी सुन्दर पिचकारी
नैन किसी को ढूंढ रहे लगते जाते
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सुन्दर महके रंग भरी इक थाल है होली
बहके फागुन में आती हर साल है होली
सबको बांध दिया करती है एक दूजे से
प्यार भरे रिश्तों का बुनती जाल है होली
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य
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