क्रिकेट के दीवानों के लिए भारत और पाकिस्तान का मैच किसी युद्ध से कम नहीं है। इन दोनों देशों के मुकाबले का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो लोग हमेशा मैच न भी देखते हो, वो इस मैच को देखने के लिए क्या-क्या जुगाड़ करते हैं। बहरहाल, कुछ ऐसा ही रोमांच ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के मैच में यहां रहने वाले लोगों में भी होता है। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच खेली जाने वाली एशेज टेस्ट सीरीज के 71वें संस्करण की आज से शुरुआत हो चुकी है। इस बार एशेज सीरीज की मेजबानी इंग्लैंड के पास है। टेस्ट क्रिकेट इतिहास के इस सबसे पुराने टूर्नामेंट में 5 मैच खेले जाते हैं। एशेज ट्रॉफी से एक बहुत ही रोमांचक कहानी जुड़ी हुई है। क्या आप जानते हैं कि इस सीरीज को ‘Ashes’ यानी राख क्यों कहा जाता है।
कैसे हुई एशेज ट्रॉफी की शुरुआत
टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच 1877 से मानी जाती है लेकिन क्रिकेट का खेल उससे पहले से खेला जा रहा था और तब भी कुछ देशों की टीमें आपमें एक-दूसरे के घर पर आकर क्रिकेट खेला करती थीं। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच 15 से 19 मार्च 1877 को खेले गए मैच को पहला टेस्ट मैच के रूप में पहचान मिली हो लेकिन इन दोनों देशों की टीमें सालों पहले से एक-दूसरे के साथ क्रिकेट खेल रही थीं।1882 में जब ऑस्ट्रेलिया की टीम इंग्लैंड के दौरे पर आई थी, तब ओवल मैदान पर होने वाले पहले टेस्ट मैच में इंग्लैंड की टीम आसानी से जीतता हुआ मैच हार गई। इंग्लैंड पहली बार अपनी धरती पर कोई टेस्ट मैच हारा था, तब इंग्लिश मीडिया ने इंग्लिश क्रिकेट पर अफसोस जताया और इसे इंग्लिश क्रिकेट की मौत करार दे दिया।
इंग्लैंड की हार पर किया गया था कुछ ऐसा शोक संदेश
उस समय एक अखबार ‘द स्पोर्टिंग टाइम्स’ ने एक शोक संदेश छापा, जिसमें लिखा था- ‘इंग्लिश क्रिकेट का देहांत हो चुका है। तारीख 29 अगस्त 1882, ओवल और अब इसके अंतिम संस्कार के बाद उसकी राख (Ashes) ऑस्ट्रेलियाई लेकर चले जाएंगे। इसके बाद जब 1883 में इंग्लिश टीम ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर रवाना हुई, तो इसी लाइन को आगे बढ़ाते हुए इंग्लिश मीडिया ने एशेज (Ashes) को वापस लाने की बात रखी ‘Quest to regain Ashes'(राख को वापस लाने की इच्छा)। इस दौरे पर इंग्लैंड की टीम ने 3 टेस्ट की सीरीज में 2-1 से जीत दर्ज की।
क्या वाकई है राख
ऑस्ट्रेलिया स्टंप्स पर रखी जाने वाली बेल्स (गिल्लियों) को जलाकर राख बनाई गई और उसको एक Urn (राख रखने वाले बर्तन) में डाल कर इंग्लैंड के कप्तान को दिया गया। वहीं से, परम्परा चली आई और आज भी Ashes की ट्रॉफी उसी राख वाले बर्तन को ही माना जाता है और उसी की एक बड़ी डुप्लीकेट ट्रॉफी बना कर दिया जाता है। हालांकि, कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि तब गिल्लियों की राख नहीं बल्कि क्रिकेट बॉल को जलाकर जो राख बनी, उसे ही एशेज ट्रोफी में भरा गया। क्रिकेट के जानकार इस बात पर अपनी अलग-अलग राय रखते हैं। असल में पुख्ता तौर पर इसकी सच्चाई कोई नहीं जानता।…Next
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