भारतीय फुटबॉल जगत के सबसे लोकप्रिय और सफलतम खिलाड़ी बाइचुंग भूटिया ने अंतरराष्ट्रीय कॅरियर से संन्यास ले लिया है. पिछले सात-आठ महीने से चोटों का सामना कर रहे भूटिया ने अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ के फुटबाल हाउस में प्रेस कांफ्रेंस में संन्यास की घोषणा की. अपने 16 साल के अंतरराष्ट्रीय कॅरियर को अलविदा कहने वाले पूर्व भारतीय फुटबाल कप्तान बाइचुंग भूटिया देश के महान फुटबालरों में से एक हैं जिनका नेतृत्व प्रेरणादाई रहा है.
भारत जहां क्रिकेट के अलावा किसी और खेल को लोग अधिक महत्व नहीं देते वहां फुटबॉल को भी लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने में बाइचुंग भूटिया का अहम हाथ रहा है. क्रिकेट के प्रति जुनूनी देश भारत में भूटिया एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जो अपनी प्रतिभा और प्रेरणादायी नेतृत्व क्षमता के बूते अपनी एक अलग जगह बनाने में सफल रहे. वह पिछले दो दशकों में भारतीय फुटबाल के ‘पोस्टर बॉय’ रहे हैं. भारतीय क्रिकेटरों को छोड़ दें तो भूटिया के अन्य खेल के खिलाड़ियों से विशेषकर कोलकाता और उत्तर पूर्वी भारत में अधिक प्रशंसक हैं.
भूटिया की लोकप्रियता को देखते हुए भारतीय टीम के पूर्व कोच बॉब हाटन ने उनकी तुलना क्रिकेट स्टार सचिन तेंदुलकर से की थी और भारत के पूर्व खिलाड़ी आई एम विजयन ने उन्हें ‘भारतीय फुटबाल के लिए ईश्वर का तोहफा’ करार दिया था.
बाइचुंग भूटिया की प्रोफाइल
15 दिसम्बर, 1976 को सिक्किम स्थित तिंकितम में बाइचुंग भूटिया का जन्म हुआ था. उनके माता-पिता किसान थे. उनके बड़े भाई क्षेत्रीय स्तर के एक फुटबॉल खिलाड़ी थे. भूटिया को फुटबॉल खेलने की प्रेरणा अपने बड़े भाई से ही मिली थी. बचपन से ही उनकी फुटबॉल खेलने में जबरदस्त रुचि थी. फुटबॉल के साथ स्कूली स्तर पर उन्होंने बैडमिंटन, बास्केटबॉल और एथलेटिक्स में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.
बाइचुंग भूटिया का स्कूली कॅरियर
भूटिया ने 1992 में स्कूली फुटबाल टूर्नामेंट के सुब्रतो कप में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार जीता था. इस प्रदर्शन ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. इसी दौरान पूर्व भारतीय गोलकीपर भास्कर गांगुली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें ईस्ट बंगाल क्लब से जुड़वाया. 16 वर्ष की उम्र से ही उन्होंने ईस्ट बंगाल क्लब की ओर से खेलना शुरू कर दिया था.
बाइचुंग भूटिया का प्रोफेशनल कॅरियर
वर्ष 1992 में भूटिया ने पहली बार ढाका में होने वाले अंडर 16 सब जूनियर टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 1994 में उनको सीनियर टीम की ओर से खेलने का मौका मिला. वर्ष 1995 में बाइचुंग फुटबॉल के कई स्टार खिलाडियों के साथ जेसीटी मिल्स की टीम में शामिल हो गए. 1996 में ही भूटिया को इंडियन प्लेयर आफ द ईयर घोषित किया गया था. 1995 में नेहरू कप में उजबेकिस्तान के खिलाफ प्रदार्पण के बाद वह 19 साल की उम्र में भारत के सबसे युवा गोल स्कोरर बने.
वर्ष 1998 और 1999 के सैफ खेलों (South Asian Football Federation Cup) में भारत को जीत दिलाने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. इसी दौरान उन्होंने ईस्ट बंगाल क्लब का प्रतिनिधित्व भी किया था.
बाइचुंग भूटिया को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए मई 1999 में एशियन प्लेयर ऑफ द मंथ से पुरस्कृत भी किया गया. उसी साल उन्हें ‘सिक्किम स्टेट अवार्ड’ और ‘अर्जुन अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया .
बाइचुंग भारत के ऐसे पहले खिलाडी हैं, जिन्हें इंग्लिश क्लब ब्यूरी एफ सी (Bury F.C.) की ओर से खेलने का न्यौता मिला. इसकी ओर से खेलना समूचे देशवासियों के लिए गर्व की बात है. हालांकि ब्यूरी एफ सी की तरफ से खेलते हुए भूटिया का प्रदर्शन औसत ही रहा. भूटिया साल 1999 से लेकर 2001 तक इंग्लिश क्लब ब्यूरी एफ सी में खिलाड़ी के तौर पर मैदान पर उतरे.
2002 में भारत लौट कर भूटिया ने मोहन बागान से करार किया लेकिन जल्द ही ईस्ट बंगाल लौट आए और आसियान कप (ASEAN CUP) 2003 में टॉप-स्कोरर रहे. इस श्रृंखला में भूटिया ने कुल नौ गोल दागे थे. 2006 में भूटिया ने वापस मोहन बागान का दामन थामा . लेकिन अपने कॅरियर के अंतिम दिनों में भूटिया ने फिर अपने पुराने क्लब ईस्ट बंगाल का दामन थाम लिया था.
बाइचुंग भूटिया का अंतरराष्ट्रीय कॅरियर
बाइचुंग भूटिया ने अपने अंतराष्ट्रीय कॅरियर की शुरुआत साल 1995 में नेहरू कप में उजबेकिस्तान के खिलाफ किया था. अपने कॅरियर के दौरान उन्होंने नेहरू कप में सौ से भी ज्यादा मैच खेले. वह 10 से ज्यादा साल तक भारत की कप्तानी कर चुके हैं और 16 साल के अंतरराष्ट्रीय कॅरियर में उन्होंने 107 मैचों में 42 गोल दागे हैं. वह एकमात्र ऐसे भारतीय और कुछ अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों में से एक हैं जिन्होंने देश के लिए 100 मैच खेले हैं. भूटिया की अगुवाई में भारत ने तीन बार दक्षिण एशिया फुटबाल महासंघ चैंपियनशिप, दो बार 2007 और 2009 में नेहरू कप खिताब और 2008 एएफसी चैलेंज कप जीता जिससे भारतीय टीम को 1984 के बाद पहली बार एशिया कप में खेलने का गौरव प्राप्त हुआ.
बाइचुंग भूटिया को मिले सम्मान
भारत सरकार ने भूटिया को 2008 में पद्मश्री से सम्मानित किया . इससे पहले उन्हें साल 1999 में अर्जुन पुरस्कार भी मिल चुका है.
भूटिया की कमी भारतीय फुटबॉल जगत को बहुत खलेगी. पर खुद बाइचुंग भूटिया का मानना है कि वह भारतीय फुटबॉल से किसी ना किसी रूप में जुड़े रहेंगे. अपने कॅरियर के दौरान भारत को किसी वर्ल्ड कप में खेलते न देख पाने का मलाल उन्हें हमेशा रहेगा लेकिन उनका सपना है कि एक दिन वह भारत को वर्ल्ड कप का मैच खेलता देखना जरूर चाहेंगे.
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