आखिरकार विदेशी खिलाड़ियों का भारत आना शुरू हो गया. कई उपेक्षाओं और दिक्कतों के बाद उन्होंने खेल गांव को भी अपना लिया. सेना की मुस्तैदी से टूटा हुआ पुल भी लगभग तैयार है. अब तो सिर्फ अंगुलियों में दिन गिनने को बचे हैं जब प्रिंस चार्ल्स 3 अक्टूबर की शाम राष्ट्रमंडल खेलों का उद्घाटन करेंगे.
राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान राजधानी की बेहतर छवि बनाने के लिए राजधानी में तमाम कार्य कराए जा रहे हैं. सुरक्षा के कड़े इंतजामों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी दिल्ली को सुरक्षा बलों की छावनी में तब्दील कर दिया गया हो.
बसों का दर्द
भारतवर्ष की राजधानी होने के कारण भले ही दिल्ली में बुनियादी सुविधाओं को अहम तवज्जो दिया जाता हो परन्तु इसके बावजूद भी सभी दिल्लीवासी ट्रैफिक जाम की दिक्कत से हमेशा परेशान रहते हैं. राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान सड़कों पर ट्रैफिक जाम की परेशानी से बचने के लिए दिल्ली सरकार ने रविवार से करीब 1600 ब्लूलाइन बसों को विभिन्न रूटों से हटा लिया. लेकिन क्या इससे समस्या का हल निकला? हल तो तब निकलता जब सरकार की वैकल्पिक व्यवस्था सही होती.
बसों के इंतजार में यात्री बस स्टॉपों पर खड़े-खड़े थक गए. यात्रियों की इस परेशानी का फायदा ऑटो रिक्शा वालों ने भी जमकर उठाया और जहां पचास रुपये लगते हैं वहां आजकल अस्सी से कम नहीं कमा रहे हैं ऑटो रिक्शावाले.
इसके अलावा जो बसें चल रही हैं उन पर लोगों की भीड़ देखकर उनमें चढ़ने का दिल ही नहीं करता है. लोगों से खचाखच भरी इन बसों को देखने से ही दम घुटता है. अगर जैसे-तैसे इन बसों में घुस भी लें तो यह बसें इतना समय लेती हैं कि एक घंटे वाला सफ़र दो घंटे की यात्रा बन जाता है.
सरकार ने दावा किया था कि जिन रूटों पर ब्लू लाइन बसें बंद की जा रही हैं, उन रूटों पर उतनी ही संख्या में डीटीसी की बसें चलाई जाएंगी. लेकिन किसी भी रूट पर ऐसा नहीं दिखा. जिसके कारण अधिकतर लोगों को अपने निज़ी वाहनों का प्रयोग करना पड़ा जिसके कारण ट्रैफिक जाम की दिक्कत अभी भी वैसी की वैसी बनी हुई है.
आने वाले समय में अगर कोई पुख्ता उपाय नहीं किए गए तो हालात और खराब हो जाएंगे जिसका सीधा असर जनता पर पड़ने वाला है.
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