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कॉमनवेल्थ गेम्स के दरमियां कहॉ है कॉमनमैन [Commonwealth Games 2010]


दिल्ली में कुछ महीनों के भीतर ही कॉमन वेल्थ गेम्स शुरु होने वाले हैं. जानकारों के मुताबिक इन खेलों से सरकार को बहुत आमदनी होनी वाली है. सरकार भी इसके लिए अपनी कमर कस चुकी है. दिल्ली की एक तरह से प्लास्टिक सर्जरी कर दी गई है. कई स्टेडियम, खेलगांव, चौड़ी सडकें, फ्लाईओवर, भूमिगत पैदल पार-पथ और कई तरह के निर्माण कार्य चल रहे हैं. पर्यावरण नियमों को ताक के नीचे रखकर यमुना के किनारे खेलगांव का निर्माण हो रहा है. कॉमनवेल्थ गेम्स से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि में सुधार तो होगा ही उसकी आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी.

यह तो बात थी जो हमें हमारी सरकार दिखा रही है. बाहर से दिखने वाला यह सोना अंदर से कितना कोयला है अगर आप जान जाएं तो आज ही जंतर-मंतर के बाहर धरने पर बैठ जाएं. आइए एक नजर डालते हैं कि किस तरह यह कॉमनवेल्थ गेम कॉमनमैन को बाहर बैठा रहा है.

commonwealth-gamesगुलाम थे गुलाम हैं : जिस कॉमन वेल्थ गेम्स या यों कहें ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों के लिए सरकार दिन-रात एक करने में जुटी है, वह यह भूल रही है कि इन खेलों में वे ही देश भाग लेते हैं जो पहले ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे हैं और भारत भी उनमें से एक है. हमारे न जानें कितने वीरों को ब्रिटिश शासन काल में मौत की भेंट चढ़ा दिया गया और उसके बदले हम उन्हें क्या दे रहे हैं.

बढ़ियां सुविधाएं, खेल के मैदान, अपना धन-कुबेर वह सब जो पहले इस देश के लिए मात्र स्वप्न था. कभी सोचा था दिल्ली में इतनी जल्दी विकास का काम होगा, मैट्रो की रफ्तार इतनी तेज होगी. खेलगांव बला ही क्या थी. पर 15 दिन के खेल आयोजन के लिए सरकार ने सब नामुमकिन को मुमकिन कर दिया.

147238501wp5गरीब होती जनता का पैसा दिल्ली में मेहमानों के लिए: एक छोटी सी चीज लेते हैं एक फ्लाईओवर को बनाने में खर्च आता है 60 करोड़ से लेकर 110 करोड़ का तो सोचिए दिल्ली में जो इतने फ्लाईओवर बन रहे हैं उनका बजट कितना होगा. यह तो मात्र एक बूंद है उस समुद्र की जो इन खेलों के जरिए बहाया जा रहा है. 10445 करोड रुपए वह राशि है जो अब तक खर्च की जा चुकी है. यह वही पैसा है जो हम और आप अपनी मेहनत से दिन-रात एक कर के टैक्स के रुप में सरकार के खाते में जमा करते हैं. वह भी तब जब भारत प्रति व्यक्ति आय और मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से दुनिया के निम्नतम देशों में से एक है.

आज भारत की काफी बड़ी आबादी 20 रूपये प्रति व्यक्ति (प्रति दिन) आय पर गुजारा कर रही है. जरा सोचें अगर यही धन इस चन्द दिनों के खेल के बजाय उस एक बच्चे पर खर्च होता जो आने वाले समय में भारत के मान-सम्मान को विश्व में और ऊंचा करता तो कितना अच्छा होता. जिस धन का प्रयोग खेल-गांव और फ्लाईओवर आदि के लिए हो रहा है अगर वह धन गांवों में स्कूल खोलने के काम आता तो न जाने कितने अबांनी, मित्तल भारत को मिल जाते.

और ऐसा भी नहीं है कि इस खेल में रोटी ही छिन रही है कुछ लोग इसपर अपनी रोटियां सेंक भी रहे हैं. भू-माफिया, मिट्टी चोर से लेकर मानव तस्कर तक सब अपनी रोटी सेंकने में लगे हैं और ऐसा हो रहा है सरकार की छत्रछाया में. हजारों करोड़ रूपये के प्रोजेक्ट निकले, उनके टेंडर हुए और सब मिले नेताओं के चाहने वालों को. जगह-जगह मिट्टी का खनन हुआ और उस मिट्टी को मिट्टी के भाव ही कुछ लोग खरीद ले गए और दुबारा सरकार को ही बेच दिया वो भी ऊंचे दामों पर. यह हवा की बात नहीं जमीन की सच्चाई है.

14 poor boyदिल्ली की सड़कों से रोजाना रिक्शा वाले, ठेले वाले और अन्य मजदूर गायब हो रहे हैं. कुछ को डरा धमका कर तो कुछ को अन्य जगह पैसों का लालच देकर दिल्ली से बाहर निकाला जा रहा है. धड़ल्ले से भिखारियों और अन्य गरीब तबकों को दिल्ली से निकाला जा रहा है, रात के अंधेरे में यह काम दिल्ली सरकार के इशारे से ही हो रहा है. लेकिन सच्चाई यह है कि इन सब के पीछे मानव अंग तस्कर सक्रिय हैं. इन लोगों को चन्द पैसों का लालच अपने अंग बेचने  पर मजबूर कर देता है जो मान गए ठीक वरना फिर नामोंनिशान नहीं मिलना है. ऐसे कई बडे नामी अस्पताल है जिनमें अभी भी इलाज के नाम पर मानव अंगों का फेरबदल होता है.

सरकार कहती है कि हम अपने सैलानियों को गरीब जनता नहीं दिखाना चाहते , पर असल में यह वही बात है जैसे शेर को देख हिरण अपनी आंख बंद कर ले कि उसे भी शेर नहीं देखेगा.

SEX RACKETसेक्स वर्करों की हब बनेगी दिल्ली : यह वह बात है जिससे आम आदमी अनजान है मगर सरकार सब जानती है. विदेशी आएंगे तो अपनी जरुरतें भी लाएंगे. जब जरुरत होगी तो मांग होगी, यही सोच कर कई देह-व्यापारी अपनी दुकान दिल्ली में जमाने में लगे हैं. आईपीएल के दौरान हुई रंगीन पार्टियों की एक झलक साफ करती है कि अगर विदेशी खिलाड़ी और वहां की जनता यहां आएगी तो देह-व्यापार किस कदर बढेगा? और राष्ट्रमंडल खेलों में तो वैसे भी सैलानियों की तादाद अधिक होगी. बीजिंग ओलम्पिक के दौरान वहां जिस तरह इस धंधे ने सोना बटोरा उससे सभी व्यापारी वाकिफ हैं. यानी बात साफ है राष्ट्रमंडल खेलों के बहाने इस बार दिल्ली में देह-व्यापार जरुर चमकेगा. हाल ही पकड़े गए सेक्स सरगना बाबा ने इस बात का खुलासा किया था कि वह कॉमनवेल्थ खेलों के चलते अपने गिरोह को बढाने में लगा था और उसमें उसके साथ कई आला नेता भी थे.

गायब होती लड़कियां : दिल्ली से रोजाना गायब होती लड़कियां इस बात की पुष्टि करती हैं कि कहीं न कही कॉमनवेल्थ गेम्स की आड़ में इन लड़कियों का यौन शोषण होगा.

बात साफ है इस कॉमनवेल्थ गेम्स से कॉमनमैन यानी आम आदमी को फायदा कम नुकसान ज्यादा होगा. आखिर उस सड़क का क्या करेगी जनता जिस पर 15 दिन के लिए यातायात बंद होगा. आखिर किस इज्जत और सम्मान की हम बात कर रहे हैं वही जिसमें विदेशी सैलानियों के सामने हमारे अपने नंगे होंगे या उस इज्जत का जो हम अपने ट्रैफिक जाम से उनको देंगे?

जब तक सरकार आम आदमी को ध्यान में रखकर कोई कदम नही उठाएगी तब तब यह समस्या बनी रहेगी. एक बात और है कि इस कॉमनवेल्थ के बाद दिल्ली की सूरत बदल जाएगी. अब वह बदसूरत होगी या खूबसूरत यह सरकार जाने पर आम आदमी और हम तो इसके बोझ तले दब जाएंगे.

आप कॉमनवेल्थ को किस नजर से देखते हैं?

क्या आप मानते हैं कि कॉमनवेल्थ गेम्स कॉमनमैन को नया जीवन और नई जीवनशैली दे पाएंगे?

अपनी राय रखें ताकि कहीं यह कॉमनवेल्थ गेम किसी सामाजिक बुराई को जन्म ना दे बैठे.

This blog is about the preparation of commonwealth games in India and it’s impact on public who denoted as common people. It criticise government policies adopted during preparations of commonwealth games in India.

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