अपने पहले ही एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली भारत की महिला पहलवान दिव्या काकरान ने अपनी सफलता से सबको खुश कर दिया है। दिव्या ने कांस्य पदक के मैच में चीनी ताइपे की चेन वेनलिंग को 10-0 से तकनीकी दक्षता के आधार पर मुकाबल जीत अपने पहले ही एशियाई खेलों में पदक जीता। लेकिन उऩका सफर इतना आसान नहीं था, मेडल जीतने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किए हैं। ऐसे में चलिए एक सफर उनके पहलवान बनने पर।
लड़को से पैसों के लिए करती थी कुश्ती
दिव्या का परिवार आर्थिक रुप से उतना सशक्त नहीं था, इसलिए उन्हें कई बार पैसों की तंगी से होकर गुजरना पड़ता था। दिव्या ने एक इंटरव्यू में अपने बचपन को याद करते हुए कहा था कि, वो गांव में लड़को से सिर्फ इसलिए कुश्ती करती थीं क्योंकि उन्हें जीतने के बाद पैसे मिलते थे और यहीं से उन्होंने खुद को कुश्ती के लिए तैयार भी किया था।
दिव्या के पिता करवाते से दंगल
दिव्या के पिता को पता था कि उनकी आर्थिक स्थिती अच्छी नहीं है और यही वजह थी की वो दिव्या को लड़को से कुश्ती करवाते थे। दिव्या के पिता ने भी इंटरव्यू में इस बात को माना था कि उनकी बेटी इतनी अच्छी कुश्ती थी कि लड़के हार जाते और दिव्या लड़की होकर अखाड़े में जाती थी इसलिए उसे इनाम के तौर पर ज्यादा पैसे मिलते थे।
दूध नहीं ग्लूकोज से भरती थी पेंट
दिव्या भले ही आज अपने पहलवानी के लिए अच्छा डाइट ले रही हों, लेकिन जब वो शुरूआती के दिनों में कुश्ती करती थीं तो उनके पास दूध तक के पैसे नहीं होते थे। दिव्या कई बार ग्लूकोज से अंदर एनर्जी लाती थी। वहीं दिव्या के पिता घर खर्च के लिए दंगलों में लंगोट बेचा करते थे।
ओलंपिक में गोल्ड जीतना है सपना
हर खिलाड़ी की तरह दिव्या भी चाहती हैं कि वो रेसलिंग की दुनिया में न केवल मेडल जीते बल्कि भारत को ओलंपिक में गोल्ड जीतकर भारत का नाम रोशन करें। 20 साल की दिव्या ने कहा, ‘मैं बहुत मेहनत की है और हमेशा करूंगी। मेरा सपना है कि ओलंपिक में मेडल जीतकर परिवार और देश का नाम रोशन करूं’।…Next
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