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कबड्डी में भी बने हम विश्व चैंपियन

यह भारत देश है जहां एक तरफ तो क्रिकेट विश्व कप जीते जाने पर हम रात दिन क्रिकेटरों को टीवी पर देखते हैं वहीं दूसरी तरह कबड्डी जैसे पारंपरिक खेलों की जीत पर हमें कोई होश ही नहीं होता. आज शायद ही किसी न्यूज चैनल पर आपने कबड्डी विश्व कप की जीत पर कोई खास प्रोगाम देखा हो. लेकिन तमाम उपेक्षा के बाद भी भारतीय कबड्डी टीम ने विश्व कप पर अपना कब्जा जमा लिया है.


Indian Men's Kabaddi Teamपुरुषों ने हराया कनाडा को

लुधियाना के गुरू नानक स्टेडियम में खेले गए दूसरे कबड्डी विश्व कप के फाइनल में कनाडा को 59-29 से हराकर भारत के पुरुष वर्ग की टीम में विश्व कप पर कब्जा कर लिया. भारत ने शुरू से ही मैदान में अपना दबदबा बनाए रखा और हाफ टाइम तक उसने 28-13 की बढ़त हासिल कर ली थी. कनाडा की टीम के कुछ खिलाड़ी पहले ही डोपिंग के मामले में खेल से बाहर हो चुके हैं.


सेमीफाइनल में पाकिस्तान को हराने वाली कनाडा की टीम को भारत के सामने अपनी गति बनाए रखने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी. विजेता भारतीय टीम को दो करोड़ रुपये और उप विजेता कनाडा की टीम को एक करोड़ रुपये बतौर पुरस्कार राशि दी गई.


Kabaddiमहिलाएं भी कम नहीं

महिला कबड्डी विश्वकप फाइनल में भी भारत ने अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रिटेन को 44-17 से हराया. भारतीय टीम की कप्तान और रेडर प्रियंका देवी व स्टॉपर अनु रानी ने एक बार फिर शानदार प्रदर्शन करते हुए टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई. अगर आपको याद हो तो यह वही महिला कबड्डी टीम है जो कुछ दिन पहले एक गंभीर बस दुर्घटना का शिकार हुई थी पर कहते हैं ना डर के आगे जीत है. जिस साहस के बल पर इन्होंने कुछ दिन पहले भी मुसीबत का सामना किया था उसी साहस से महिलाओं ने कबड्डी विश्व कप में भी जीत हासिल की.


बदहाली का ऐसा आलम की रोना आ जाए

आज का माहौल पूर्णत: बाजार पर निर्भर करता है. अगर किसी खेल को प्रायोजक ना मिलें तो उसका हश्र क्या होता है यह जानने के लिए महिला कबड्डी टीम से बात करिए. जिस टीम ने विश्व कप जीता हो क्या उसे ऑटो में जाते हुए देखा है कभी आपने.


नहीं ना, पर भारत में यह भी होता है. यहां दो दिन पहले जिस महिला कबड्डी टीम ने विश्व कप की ट्राफी जीती थी उसे घर वापसी के लिए वर्ल्ड कप का ताज और 25 लाख रुपए का सिंबॉलिक चेक लेकर कोच जसकरन के साथ पैदल ही सड़कों पर देखा गया और जब साधन नहीं मिला तो खिलाड़ियों ने ऑटो लेना ही मुनासिब समझा. एक विश्व विजेता टीम का ऑटो में जाना कितना शर्मनाक है. यह सुनकर जितना बुरा लगता है उससे लाख गुना बुरा तो उस टीम के सदस्यों को लगता होगा. इन महिला खिलाड़ियों में से शायद ही कोई ऐसी खिलाड़ी होगी जो अपनी बहन या किसी जान पहचान वाले को दुबारा इस खेल में आने की सलाह दे.


भारत में पारंपरिक खेलों का स्तर बेहद गिर चुका है. यहां खिलाड़ियों में प्रतिभा तो है पर प्रशासन की अनदेखी ने इस पर धूल जमा दी है. आगे इन खेलों की तरफ प्रशासन का ध्यान जाएगा कि नहीं यह तो कहा नहीं जा सकता पर इसका हाल देख रोया जरूर जा सकता है.


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