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क्या कामचलाऊ है राष्ट्रमंडल खेलों का खेल गांव [Commonwealth Games Blog]

Commonwealth Games


लगता है राष्ट्रमंडल खेलों से मुद्दे और बवाल जोंक की तरह चिपक गए हैं और समय का उल्लंघन करना राष्ट्रमंडल खेलों की संगठन समिति की आदत बन गई है. सिर्फ दो दिन शेष हैं जब 2010 के दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने के लिए एथलीटों के दल भारत आना शुरू कर देंगे. इस बीच खेलों से जुड़ा एक और बबाल सिर उठाने लगा है.

खेल गांव को करो दुरुस्त

CWG: Khel Gaonराष्ट्रमंडल खेल महासंघ के अध्यक्ष माइकल फेनल ने मंगलवार को भारत सरकार से कहा कि खेल गांव की हालत ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि खेल गांव किसी भी खेल की आधारशिला है और एथलीटों को अगर अपना सर्वोत्तम देना है तो उन्हें सभी संभव प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार रहना पड़ता है अतः हमें उनकी सभी सहूलियतों पर ध्यान देना होगा. परन्तु वह हैरान हैं कि अंतिम समय सीमा समाप्त होने पर भी खेल गांव पूरी तरह तैयार नहीं है.

फेनल के मुताबिक खेल को शुरू होने के लिए केवल 12 दिन शेष हैं और और सिर्फ दो दिन के भीतर ही खेल गांव एथलीटों से भर जाएगा लेकिन खेल गांव पर कार्य कामचलाऊ हुआ है. स्वच्छता का तो ध्यान रखा ही नहीं गया है.

एक बयान में फेनल ने कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर को पत्र लिखा था और उनसे एथलीटों के पहले बैच आने से पहले सभी ज़रुरी कदम उठाने का अनुरोध किया था जिसमें सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने को कहा था. परन्तु फेनल के अनुसार उनके अनुरोध की अनदेखी की गई है. गौरतलब है कि खेल गांव पर कनाडा, स्कॉटलैंड, न्यूज़ीलैंड और आयरलैंड के प्रतिनिधित्व दल ने भी अंगुली खड़ी की थी. [videofile]http://mvp.marcellus.tv/player/1/player/waPlayer.swf?VideoID=http://cdn.marcellus.tv/2962/flv/49069587809212010144713.flv::thumb=http://cdn.marcellus.tv/2962/thumbs/&Style=7014′ type=’application/x-shockwave-flash[/videofile]

क्या लीपापोती से काम चलेगा?

राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़े सभी कार्यों को पूरा करने के लिए हमारे पास पर्याप्त समय था. खेलों से जुड़े सभी विकास कार्यों के लिए पर्याप्त धन भी था परन्तु इसके बावजूद कार्य समय पर पूरा नहीं हो पाया. खेल का व्यय इतना बढ़ गया कि आज आम आदमी को इसका बोझ सहना पड़ा. राष्ट्रमंडल खेलों को देख ऐसा प्रतीत होता हैDelhi 2010 कि 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों का विषय “गो ग्रीन” ना होकर भ्रष्टाचार है.

हमने पैसा पानी की तरह बहा तो दिया लेकिन फिर भी क्यों लीपापोती और कामचलाऊ कार्य हुआ? एक तरफ़ तो हम अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धा कराते हैं परन्तु क्यों दूसरी तरफ़ अंतराष्ट्रीय माहौल और संसाधानों को मुहैया नहीं कराते? यह कुछ सवाल हैं जिनका उत्तर हम सभी जानना चाहेंगे. लेकिन उसके साथ-साथ हम यह भी चाहते हैं कि प्रभु की कृपा हम पर बनी रहे और हमारी नाक कटने से बच जाए.

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