National Sports Day in India
आज खेल जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है. आज खेल सिर्फ मनोरंजन और स्वास्थ्य के लिहाज से ही नहीं बल्कि पैसा कमाने के लिहाज से भी अहम बन चुका है. आज समय के साथ खेलों में बदलाव आ चुका है. आज खेल को “पैसा” खेलता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों में सम्मान पाना आज गौरव का विषय हो चुका है और खेलों के इसी महत्व की वजह से देश में हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है.
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History of Sports Day in India
भारत को ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलवाने वाले महान और कालजयी हॉकी खिलाड़ी, ध्यानचंद सिंह के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त को हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति के द्वारा विभिन्न पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं, जिनमें राजीव गांधी खेल-रत्न पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रमुख हैं. इसके अलावा लगभग सभी भारतीय स्कूल और शिक्षण संस्थान राष्ट्रीय खेल दिवस के दिन अपना सालाना खेल समारोह आयोजित करते हैं.
Hockey: National Sports of India
हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है: आज जिस हॉकी का नाम सुनते ही आंखों के आगे हार और नाकामी का दर्द छलकता है उसी हॉकी के नाम से कभी भारत की सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था. आज भारत को ओलंपिक खेलों में एक पदक लाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है लेकिन एक समय था जब ध्यानचंद ने हॉकी में ओलंपिक खेलों में लगातार तीन स्वर्ण पदक (1928, 1932 और 1936) दिलाने में अहम योगदान दिया. जिस खेल को इस खिलाड़ी ने लोगों के दिलों दिमाग तक पहुंचाकर राष्ट्रीय खेल का दर्जा दिलवाया आज वही खेल पतन के गर्त में जाता हुआ दिखाई दे रहा है.
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एक तरफ जब हम इतिहास में हॉकी के 8 ओलंपिक स्वर्ण पदक की चर्चा करते हैं तो हमारा सीना गर्व से ऊंचा हो जाता है वहीं जब हम आज के हॉकी खेल की चर्चा करते हैं तो लगता है जैसे कोई हमारे घाव को हरा कर रहा हो.
Hockey: Condition in India
हॉकी के पतन को अगर हम ध्यान से देखें तो कहीं ना कहीं हमें गलती प्रशासन की ही नजर आती है. क्रिकेट की चकाचौंध में लंबे समय तक युवा इस खेल से परहेज करते रहे और जब इस खेल का ध्यान आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. हालांकि हॉकी के गिरते हुए ग्राफ को धनराज पिल्लै जैसे खिलाड़ियों ने कुछ हद तक संभालने का प्रयास किया लेकिन खेलों में हावी हो चुकी राजनीति ने उन्हें ऐसा करने ना दिया.
इस वर्ष हुए लंदन ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का प्रदर्शन बेहद निम्न रहा. इसे देखते हुए तो एक बार फिर हॉकी को किसी जादूगर की दरकार महसूस होती है. हॉकी को एक क्रांति चाहिए जो नौजवानों को इस खेल के प्रति समर्पित बनाए. युवाओं के साथ ही खेल आयोजकों और खेल संघ को समय के अनुसार इस खेल में चमक और पैसा लगाना होगा तभी जाकर भारत का यह राष्ट्रीय खेल अपनी पहचान दुबारा पा सकेगा. उम्मीद करते हैं अगली बार जब देश राष्ट्रीय खेल दिवस मनाए तब हॉकी की स्थिति जरूर बदले.
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