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National Sports Day: हॉकी के जादूगर की जादूगरी

Dhyan Chand Profile in Hindi

अगर भारत में क्रिकेट का नाम आते ही दिमाग में सचिन की छवि बनती है तो यहां हॉकी का दूसरा नाम मेजर ध्यानचंद हैं. मेजर ध्यानचंद भारतीय फील्ड हॉकी के ऐसे खिलाड़ी रहे जिन्होंने इस देश को एक राष्ट्रीय खेल दिया, ऐसा राष्ट्रीय खेल जिसने एक लंबे समय तक ओलंपिक में देश का सर गर्व से ऊंचा किया. आज मेजर ध्यानचंद की जयंती है.


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Dhyan Chand Profile in Hindi Dhyan Chand – The God of Hockey

अगर क्रिकेट में लोग सर डॉन ब्रैडमैन को सबसे बेहतर खिलाड़ी मानते हैं और टेनिस में रॉड लेवर जैसा कोई नहीं हुआ तो हॉकी में कुछ ऐसा ही स्थान ध्यानचंद को हासिल है. ओलंपिक खेलों में 101 गोल दागने का जो रिकॉर्ड ध्यानचंद बनाकर गए हैं उसे तोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.


Major DhyanChandand Adolf Hitler

बर्लिन ओलंपिक में ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन के कारण भारत ने जीत हासिल की. हिटलर को जब यह पता लगा कि ध्यानचंद भारतीय सेना में नायक पद पर हैं, तो उसने उन्हें जर्मन सेना में फील्ड मार्शल बनाने की पेशकश तक कर डाली, पर ध्यानचंद ने विनम्रता के साथ यह प्रस्ताव ठुकरा दिया.

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DhyanChandand Don Bradman

ध्यानचंद के खेल प्रदर्शन से प्रभावित ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर डानब्रैडमैन का कहना था कि जिस तरह क्रिकेटर रन बनाते हैं, उसी तरह ध्यानचंद हॉकी के मैदान में गोल करते हैं.


Dhyan Chand Profile in HindiDhyan Chand and His Hockey Stick

ध्यानचंद का गेंद पर जबर्दस्त नियंत्रण को देखकर हॉलैंडऔरजापान के अधिकारियों ने कई बार उनकी हॉकी स्टिक तोड़कर यह जानने का प्रयास किया कि स्टिक में कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है, पर ऐसा कुछ भी नहीं था.


विदेशों में ध्यानचंद की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वियना वासियों ने ध्यानचंद की याद में एक मूर्ति स्थापित की, जिसमें उनके चार हाथ हैं और चारों हाथों में हॉकी स्टिक है.


Chand in OlympicsDhyanchand: Legend of Hockey

मेजरध्यान चंद सिंह का जन्म 29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद (उत्तर-प्रदेश) में हुआ था. चौदह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हॉकी स्टिक अपने हाथ में थामी थी. सोलह साल की आयु में वह आर्मी की पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए और जल्द ही उन्हें हॉकी के अच्छे खिलाड़ियों का मार्गदर्शन प्राप्त हो गया जिसके परिणामस्वरूप ध्यानचंद के कॅरियर को उचित दिशा मिलने लगी. आर्मी से संबंधित होने के कारण ध्यानचंद को मेजर ध्यानचंद के नाम से पहचान मिलने लगी.


Major Dhyan Chand in Olympics

ध्यानचंद ने तीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया. वह वास्तव में हॉकी के जादूगर थे. अपने बेजोड़ और अद्भुत खेल के कारण उन्होंने लगातार तीन ओलंपिक खेलों एम्स्टरडम ओलंपिक 1928, लॉस एंजिलस 1932, बर्लिन ओलंपिक 1936 (कैप्टैंसी) में टीम को तीन स्वर्ण पदक दिलवाए. ध्यानचंद ने ओलंपिक खेलों में 101 गोल और अंतरराष्ट्रीय खेलों में 300 गोल दाग कर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है. एम्स्टरडम हॉकी ओलंपिक मैच में 28 गोल किए गए जिनमें से ग्यारह गोल अकेले ध्यानचंद ने ही किए थे.


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मेजर ध्यानचंद सिंह को वर्ष 1956 में भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. कैंसर जैसी लंबी बीमारी को झेलते हुए वर्ष 1979 में मेजर ध्यान चंद का देहांत हो गया.


आज खेल जगत में इस बात को लेकर चर्चा है कि भारत का अगला भारत रत्न किसे दिया जाए और इस दौड़ में मेजर ध्यानचंद भी शामिल हैं. मेजर ध्यानचंद असल मायनों में “भारत रत्न” के हकदार हैं. उन्होंने उस दौर में हॉकी को चरम पर पहुंचाया जब ना विज्ञापनों से पैसा मिलता था ना मीडिया की इतनी अधिक हाइप मिलती थी. फौज से मिलने वाली सैलरी और खेलों से मिलने वाली राशि के सहयोग से मेजर ध्यानचंद ने इस खेल को अपना जीवन समर्पित कर दिया. इस महान खिलाड़ी को यह देश हमेशा शत-शत नमन करता रहेगा.


क्या आप भी मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने का समर्थन करते हैं?


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