यह देखकर बहुत ही गर्व महसूस होता है कि भारत में क्रिकेट के अलावा अन्य दूसरे खेलों में भी रोमांच बढ़ा है. शूटिंग, कुश्ती और बैडमिंटन ये कुछ ऐसे खेल है जिसमें खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन करके भारत का मान बढ़ाया है. 2012 ओलंपिक गेम में बैडमिंटन में सायना नेहवाल के उस मैच कैसे भूल सकते हैं जिसमें उन्होंने चीन की शिन वैंग को हराकर कांस्य पदक हासिल किया था.
भारत में कभी भी बैडमिंटन को लेकर वैसी लहर नहीं थी जैसी क्रिकेट को लेकर है लेकिन जिस तरह से पिछले दो ओलंपिक गेम में भारत के महिला खिलाड़ियों ने प्रदर्शन करके दिखाया है वह काबिले-ए-तारीफ है. बैडमिंटन को एक नई उंचाई देने में दो लोगों का हाथ है. सायना नेहवाल और पुलेला गोपीचंद.
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बैडमिंटन को गली-मोहल्ले से लेकर ओलंपिक तक पहुंचाने का योगदान जितना सायना नेहवाल का है उससे कई गुना अधिक उनके कोच और पुलेला गोपीचंद का है. यह गोपीचंद ही हैं जिनकी छत्रछाया में आज सायना नेहवाल बैडमिंटन में विश्व की नंबर तीन खिलाड़ी बनी हुई हैं. पुलेला गोपीचंद ने अपने शिष्यों को सिखाया कि कैसे बैडमिंटन खेल पर राज करने वाले चाइनीज खिलाड़ियों को हराया जाए. जो खिलाड़ी चाइनीज खिलाड़ियों के सामने टिक नहीं पाते थे वह आज न केवल उन खिलाड़ियों का सामना कर रहे हैं बल्कि उनसे मैच भी जीत रहे हैं.
पुलेला गोपीचंद का जन्म 16 नवंबर, 1973 को आंध्र प्रदेश के प्रकासम जिले में हुआ. वह भारत के पूर्व बैंडमिंटन खिलाड़ी हैं. शुरुआत में गोपीचंद ने बैंडमिंटन की जगह क्रिकेट में अपनी रुचि दिखाई लेकिन उनके बड़े भाई राजशेखर ही थे जिनकी बदौलत उन्होंने बैंडमिंटन को अपना कॅरियर चुना. शुरुआत के सालों में गोपीचंद ने स्कूल लेवल पर कई सिंगल्स और डबल खिताब जीते. उन्होंने अपना पहला राष्ट्रीय बैंटमिंटन खिताब 1996 में जीता. उन्होंने इंफाल में 1998 के राष्ट्रीय गेम में दो स्वर्ण और एक रजत पदक हासिल किया.
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गोपीचंद ने 1991 में मलेशिया के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय बैंटमिंटन में कदम रखा. उन्होंने 1996 के सार्क बैटमिंटन टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक हासिल किया. गोपीचंद का जलवा कॉमनवेल्थ गेम में भी देखने को मिला. कॉमनवेल्थ गेम के सिंगल इवेंट में उनके नाम कांस्य पदक जबकि टीम इवेंट में रजत पदक है. वह 2001 में प्रकाश पादुकोण के बाद दूसरे ऐसे खिलाड़ी बने जिनके नाम ऑल इंग्लैंड ओपन चैम्पियनशिप का खिताब है.
पुलेला गोपीचंद को आवार्ड
पुलेला गोपीचंद को 2001 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिला. 2005 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा गया. भारतीय बैडमिंटन में कोच के रूप में उनके योगदान को देखते हुए अगस्त 2009 में उन्हें द्रोणाचार्य पुरस्कार दिया गया.
पुलेला गोपीचंद और विवाद
अपने कोचिंग से लोगों को आकर्षित करने वाले कोच गोपीचंद अपने आप को विवादों से दूर नहीं कर पाए. पिछले साल विवाद में तब आए जब एक महिला बैडमिंटन खिलाड़ी प्रजाकता सावंत ने गोपीचंद पर मानसिक उत्पीडऩ का आरोप लगाया था.
वैसे देश की शीर्ष डबल्स बैडमिंटन खिलाड़ी और कॉमनवेल्थ गेम्स की स्वर्ण पदक की विजेता ज्वाला गुट्टा ने भी गोपीचंद पर भेदभाव का आरोप लगाया है. ज्वाला की शिकायत है कि 2006 में जब वे राष्ट्रीय कोच बने तो उन्होंने उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी थी.
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