रविन्द्रनाथ टेगौर से लेकर अभिनव बिंद्रा तक जब-जब किसी भारतीय ने राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय मंच पर तिरंगा लहराया है तब-तब पूरा भारत राष्ट्र खुशी की लहर में सराबोर हुआ है. इन शूरवीरों की उपलब्धियों को देख ऐसा प्रतीत होता है मानो यह कारनामा हमने अंजाम दिया है, सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और हमें भारतीय होने पर गर्व होता है.
इसी फेहरिस्त में सायना नेहवाल एक ऐसा नाम है जिसने आज हम भारतीयों का नाम एक बार फिर गौरवान्वित किया है. विश्व की नंबर तीन और भारत की शीर्ष बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने अपना शानदार फार्म बरकरार रखते हुए 27 जून को जापान की सयाका सातो को मात देकर इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरीज टूर्नामेंट जीतकर खिताबों की हैट्रिक पूरी कर ली है. इससे पहले कुछ दिनों पूर्व उन्होंने भारत में इंडियन ओपन ग्रां प्री. खिताब और पिछले सप्ताह सिंगापुर ओपन सुपर सीरीज खिताब जीता था. इस 20 वर्षीय खिलाड़ी का यह कुल तीसरा सुपर सीरीज खिताब भी है.
2010 शुरू होने से पूर्व सायना नेहवाल ने इस वर्ष विश्व की शीर्ष पांच बैडमिंटन खिलाड़ियों में जगह बनाने की बात की थी और आज उन्होंने यह कारनामा अंजाम दिया है. सिंगापुर ओपन सुपर सीरीज खिताब की जीत के बाद सायना नेहवाल विश्व की तीसरे नंबर की बैडमिंटन खिलाड़ी बन गयी हैं और शायद उनकी प्रतिभा और उम्र पर अगर हम नज़र डालें तो वह दिन दूर नहीं जब वह विश्व कि नंबर एक खिलाड़ी बन जाएं.
सायना नेहवाल – एक जीवन परिचय
17 मार्च 1990 को हिसार हरयाणा में जन्मी नेहवाल का अधिकांश समय हैदराबाद में गुजरा है. सायना नेहवाल की बैडमिंटन के प्रति रूचि का श्रेय उनके माता पिता को जाता है. सायना के पिता डा. हरवीर सिंह जो तिलहन अनुसंधान निदेशालय हैदराबाद में वैज्ञानिक हैं और माता उषा नेहवाल हरियाणा के पूर्व बैडमिंटन चैंपियन रह चुके थे अतः बेटी की इस खेल के प्रति दिलचस्पी स्वभाविक थी.
आठ वर्ष कि उम्र में सायना नेहवाल के पिता सायना को बैडमिंटन कोच नानी प्रसाद के पास लाल बहादुर स्टेडियम ले गए जहाँ सायना की प्रतिभा देख प्रसाद ने सायना नेहवाल को अपनी संरक्षण में ले लिया. शुरुआती दिनों में नेहवाल को बैडमिंटन का ऐसा चस्का लगा कि वह सुबह चार बजे उठकर 25 किलोमीटर बैडमिंटन सीखने जाती थीं. सायना नेहवाल की इस खेल के प्रति रूचि देख उनके माता-पिता भी बहुत प्रभावित हुए अतः सायना नेहवाल की कोचिंग फीस को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने बचत और भविष्य निधि खातों से भी पैसे खर्च करना शुरू कर दिया. 2002 में खेल ब्रांड योनेक्स ने सायना के किट को प्रायोजित किया. वर्ष 2004 में बीपीसीएल ने सायना को अपने पेरोल पर रखा और बाद में सन 2005 में जब सायना की ख्याति बढ़ने लगी तो मित्तल चैंपियंस ट्रस्ट ने उनकी सभी सुविधओं का ज़िम्मा ले लिया.
नेहवाल का बैडमिंटन कैरियर
अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सायना नेहवाल की शुरुआत 2006 में हुई. उस वर्ष नेहवाल ने 4-स्टार ख़िताब, फिलीपींस ओपन जीता और इस वर्ष नेहवाल ने कई उलटफेर भी किए. 2006 में अपने अच्छे प्रदर्शन के द्वारा सायना नेहवाल के गिनती विश्व की उभरती हुई प्रतिभाओं में होने लगी.
सायना नेहवाल पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं जिसने ओलंपिक में बैडमिंटन के एकल मुकाबलों में क्वार्टर फाइनल तक का सफ़र तय किया था और जिसने विश्व जूनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप में ख़िताब जीता था. 21 जून 2009 में सायना नेहवाल ने इतिहास रचते हुए सुपर सीरीज टूर्नामेंट जीता था. सायना नेहवाल के कोच अतीक जौहरी का मानना है कि सायना नेहवाल एक दिन विश्व की चोटी की खिलाड़ी होंगी. सायना नेहवाल के बैडमिंटन कॅरियर पर पूर्व आल इंग्लैंड बैडमिंटन चैम्पियन भारत के पुलेला गोपीचंद की छाप बहुत गहरी है. सायना नेहवाल भी उन्हें गुरु की तरह मानती है.
आशाओं का सागर
सायना नेहवाल का 2010 वर्ष बहुत अच्छा बीता है. अभी तक उन्होंने दो विश्वस्तरीय प्रतियोगिता जीत विश्व रैकिंग में तीसरा पायदान हासिल कर लिया है इसके अलावा वह मौजूदा राष्ट्रीय चैंपियन भी हैं.
प्रतिभा, हौसले और ज़ज्बे की धनी सायना नेहवाल भारत की कोहिनूर हैं जिसकी ख्याति दिनप्रतिदिन चारों दिशाओं में फ़ैल रही है. 20 वर्ष की छोटी सी उम्र में नेहवाल ने हमको गर्व करने के बहुत से मौके दिए हैं. उनकी उपलब्धियां उनकी सफलता का गुणगान करती हैं. परन्तु क्या हमने और हमारे देशवासियों ने सायना नेहवाल को सही तवज्जो दिया है. कहीं दूसरे खिलाड़ियों की तरह यह कोहिनूर भी चुरा न लिया जाए अतः इसके लिए ज़रूरी है कि हम सायना नेहवाल का साथ हर कदम पर दें क्योंकि यह कोहिनूर ही हमारे देश की शान बढ़ाएगा.
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