यह लोकोक्ति बहुत पुरानी और लोकप्रिय है- ‘जहाँ चाह वहाँ राह’! इंसान चाहे तो अपनी इच्छा शक्ति से पर्वत को भी समतल बनाकर राह निकाल ले. कहने का आशय है कि यदि आपने अपने मन में किसी लक्ष्य को पाने की ठान ली है तो समस्याएं आपके सामने बौनी लगने लगती है. भारत की भूमि ने ऐसे कई गुदरी के लाल को जना है जिसने कम संसाधनों में भी सफलता हासिल किया है और अपने देश का नाम विश्व पटल पर रौशन किया है. ठीक इसी तरह हरियाणा के एक होनहार युवक ने कम संसाधनों के बावजूद भी अपने हुनर का लोहा मनवाया है.
हरियाणा की भूमि केवल अन्न ही नहीं उगलती है बल्कि इस भूमि ने कई खिलाड़ी भारत को दिए हैं. इन खिलाड़ियों ने समय-समय पर विश्व पटल पर पदक जीतकर भारत का मान बढ़ाया है. आज हरियाणा के एक ऐसे ही रेसलर की बात करेंगे जो कई परेशानियों के बाद भी वर्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट यानी डब्ल्यूडब्ल्यूई के रिंग तक पहुँच गया.
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पानीपत, गांव बाघडू के सतेंद्र डागर को कुश्ती के प्रति लगन तो खूब थी, लेकिन गांव में कोई अखाड़ा नहीं था. अपने कुश्ती से प्रेम के कारण सतेंद्र डागर ने गांव में सबसे पहले अखाड़ा तैयार किया. अखाड़ा तैयार होने के बाद शुरू हुआ दिन-रात अभ्यास का तौर. इन्हीं अभ्यास के दौरान सतेंद्र डागर ने तीन बार हिंद केसरी का खिताब अपने नाम किया.
सतेंद्र डागर के लगन ने उसे अब वर्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट यानी डब्ल्यूडब्ल्यूई के रिंग तक पहुंचा दिया है. डब्ल्यूडब्ल्यूई के साथ सतेंद्र का तीन साल का अनुबंध हुआ है. इस अनुबंध के लिए उन्हें पांच करोड़ रुपए मिलेंगे. फिलहाल अमेरिका पहुंच कर सतेंद्र ने ट्रेनिंग शुरू कर दी है. डब्ल्यूडब्ल्यूई की टीम सतेंद्र से साक्षात्कार के लिए चंडीगढ़ पहुंची. सतेंद्र से लिकर डब्ल्यूडब्ल्यूई की टीम प्रभावित हुई और उन्हें टेस्ट करने के लिए दुबई लेकर गए. वहाँ छह घंटे तक लगातार अभ्यास के जरिए उसका स्टेमिना जांचा.
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सतेंद्र ने फोन पर अपनी सफलता के लिए पिता वेदपाल डागर, भाई सुधीर और दोस्तों को धन्यवाद दिया. उन्होंने आगे बताया कि पत्नी जगजीत कौर ने मनोवैज्ञानिक रूप से मुझे बहुत तैयार किया है. सतेंद्र कहते हैं कि वह वहां बसने नहीं आया है. जल्द ही गांव लौटकर विश्वस्तरीय कुश्ती एकेडमी की स्थापना करेंगे.Next…
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