कहते है भारतीय नारी किसी से कमजोर नहीं होती, न ही किसी से कम, उसे तो बस जरुरत होती है प्रोत्साहन की। यहाँ हम बात कर रहे है भारत की पहली डब्ल्यूडब्ल्यूई महिला रेसलर कविता देवी की। रेसलिंग के रिंग में सलवार सूट पहनकर फाइट करने वाली कविता के बारे में कहा जाता है कि वह रिंग में इतनी फुर्तीली हैं कि वह शेरनी की तरह विरोधी खिलाड़ियों पर टूट पड़ती है। उसे हार्ड केडी कहा जाता है। ग़ौरतलब हो, कविता लगातार चार बार सीनियर नेशनल चैंपियन, नेशनल गेम्स में चैंपियन, साउथ एशियन गेम्स में चैंपियन रह चुकी है।
इतना आसान नहीं था रेसलिंग रिंग
कविता का संघर्ष किसी फ़िल्मी कहानी की तरह ही है। हरियाणा के जींद स्थित मालवी गांव की रहने वाली कविता की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी, घर का गुजारा दूध बेचकर होता था। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी कविता जुलाना के सेकेंडरी स्कूल से कक्षा 12 तक पढ़ी हैं। साल 2004 में उन्होंने लखनऊ में रेस्लिंग की ट्रेनिंग शुरू की और इस दौरान अपनी पढ़ाई भी जारी रखी।
बतौर कांस्टेबल नौकरी ज्वाइन की
साल 2005 में बीए की पढाई पूरी कर 2008 में कविता ने बतौर कांस्टेबल एसएसबी में नौकरी ज्वाइन की। सरकारी नौकरी पाने के बाद साल 2009 में कविता की शादी यूपी के बड़ौत में रहने वाले गौरव से हो गई। कविता के पति गौरव भी एसएसबी में कांस्टेबल हैं और वॉलीबॉल के खिलाड़ी हैं।
परिवार वाले कभी नहीं चाहते थे कि वह खेले
परिवार की सोच पुरुष प्रधान होने के कारण कविता खेलों से दूर हो गई। उनके परिवार वाले कभी नहीं चाहते थे कि वह खेले। जिसके चलते वह तनाव का शिकार होने लगी। काफी मान मनौवल के बाद पति और परिवार वालों को कविता मनाने में कामयाब रही और फिर रेसलिंग में आ सकी।
द ग्रेट खली की एकेडमी ज्वाइन कर ली
कविता का कहना है कि पुरुष प्रधान सोच वाले समाज से लड़ना आसान नहीं होता और इसी के चलते उन्हें और उनके परिवार को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। बेहद कठिन परिस्थियों का सामना करते हुए कविता ने अपने सपने को जिया और पहली महिला पहलवान बन डब्लूडब्लूई में देश का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद कविता ने रेसलिंग जारी रखी और द ग्रेट खली की एकेडमी ज्वाइन कर ली। कविता के बड़े भाई संजय ने कविता के हुनर को बख़ूबी परखा और खेल में आगे बढ़ने का हौसला दिया।
द ग्रेट खली की मदद से अपनी तैयारी करने लगी
अपनी सरकारी नौकरी के दौरान कविता ने डिपार्टमेंट से मदद की गुहार लगाई लेकिन आश्वासन के सिवाय उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ। इस बात से खफ़ा हो कर कविता ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और द ग्रेट खली की मदद से अपनी तैयारी करने लगी। मेहनत करने में कविता किसी पुरुष रेसलर से कम नहीं हैं, रोजाना 8 घंटे मेहनत करती है। अपने जुनून और लगन के बलबूते उन्होंने वो मुकाम हासिल किया जिसका ख़्वाब उन्होंने कभी देखा था।
भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिया है ये सम्मान
कविता सलवार-कमीज में रिंग में उतरती हैं, इसके पीछे के मक़सद के बारे में कहती है कि वह ये जताना चाहती है कि भारतीय नारी किसी से कमजोर नहीं होती। इस तरह वह ये सन्देश देना चाहती है कि गाँव की लड़कियां सलवार कमीज पहन कर भी फाइट कर सकती हैं। इस तरह उन्होंने साबित किया कि भारतीय नारी किसी भी खेल में पीछे नहीं हैं। आपको बता दें कविता भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों फर्स्ट लेडी अवॉर्ड से सम्मानित हो चुकी हैं।…Next
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