मौजूदा इंग्लैण्ड दौरे पर भारतीय टीम के साथ कुछ भी सही नहीं हो रहा. चोटिल खिलाड़ियों की वतन वापसी के बाद मैच दर मैच हार ने टीम का मनोबल शून्य कर दिया और ऊपर से द्रविड़ के सन्यास ने भी टीम को बड़ा धक्का लगाया है. “द वॉल” द्रविड़ इस श्रृंखला में अब तक कोई खास असर तो नहीं छोड़ पाए हैं लेकिन इस श्रृंखला के बाद वह दुबारा किसी एकदिवसीय मैच में नहीं दिखेंगे. द्रविड़ ने वनडे टीम में अपने चयन पर आश्चर्य जाहिर किया था और सन्यास का निर्णय लिया था.
सबको उम्मीद थी कि पांच मैचों की इस श्रृंखला में द्रविड़ अपना पूरा दम दिखाएंगे लेकिन वह भी लड़खडाती टीम को जीत नहीं दिला सके और अब आलम यह है कि आज इस श्रृंखला का आखिरी मैच है. ऐसे में सबको उम्मीद है कि धोनी एंड टीम इस महान खिलाड़ी को एक यादगार विदाई देगी.
वैसे भी टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी सीनियर खिलाड़ियों को यादगार विदाई देने के लिए जाने जाते हैं. दीवार के नाम से मशहूर राहुल द्रविड़ आज अपने कॅरियर का आखिरी अंतरराष्ट्रीय वनडे मैच खेलेंगे, ऐसे में माना जा रहा है कि कैप्टन कूल धोनी उन्हें भी अपने अलग अंदाज में विदाई दे सकते हैं.
धोनी पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि वह अनुभवी क्रिकेटरों को टीम से बाहर और युवाओं को अंदर करते रहे हैं लेकिन ऐसे में भला कौन भूल सकता है कि 2008 में अनिल कुंबले की विदाई के समय धोनी ने जंबो को कंधे पर उठाकर पूरे मैदान के चक्कर लगाए थे. वहीं पूर्व कप्तान सौरभ गांगुली को भी अंतिम मैच में उन्होंने कुछ समय के लिए कप्तान बनाया था. नागपुर में गांगुली के अंतिम टेस्ट के दौरान उन्होंने अपने इस पूर्व कप्तान को आस्ट्रेलिया के खिलाफ कुछ देर के लिए टीम की कमान संभालने का मौका दिया था.
द्रविड़ अपनी अंतिम वनडे सीरीज में अब तक यादगार पारी खेलने में विफल रहे हैं और उन्होंने चार मैचों में केवल 13.75 की औसत से 55 रन बनाए हैं. इस दिग्गज ने अपने कॅरियर में 343 वनडे में 39.06 की औसत से 10,820 रन बनाए हैं. द्रविड़ टेस्ट क्रिकेट में दूसरे सबसे सफल बल्लेबाज हैं, लेकिन वनडे मैचों में भी उनका प्रदर्शन खराब नहीं है. वह वनडे में सर्वाधिक रन बनाने वालों की सूची में सातवें स्थान पर हैं. ब्रायन लारा और महेला जयवर्धने जैसे स्टार खिलाड़ी इस सूची में उनसे पीछे हैं.
द्रविड़ ने टीम की जरूरत के हिसाब से हर रोल निभाया है फिर चाहे विकेट कीपिंग हो या वनडे या टेस्ट में जरूरत के समय ओपनिंग करना हो या निचले क्रम में उतरना हो. वनडे में भी द्रविड़ का बेमिसाल रिकॉर्ड उनकी सफलता बयां करता है. ऐसे में किसी भी खिलाड़ी का दो साल तक टीम से बाहर रहना और देश में होने वाले वर्ल्ड कप से बाहर रहना अखरेगा. द्रविड़ ने वही किया जो उन्हें सही लगा. अपने आत्म सम्मान को महत्व देते हुए उन्होंने टीम का भी ध्यान रखा और श्रृंखला के बाद ही सन्यास का निर्णय लिया.
लेकिन जहां तक द्रविड़ का सवाल है तो यह विडंबना ही है कि 2007 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज के दौरान धोनी ने ही उन्हें वनडे टीम से बाहर करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. तो अब यह देखना होगा कि द्रविड़ जैसे खिलाड़ी को धोनी कैसी विदाई देते हैं.
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