अभी टी20 विश्व कप की हार के आंसू पोंछे भी नहीं गए थे कि एक और मौका मिल गया भारतीय क्रिकेट टीम के ऊपर कटाक्ष करने का. पहले यह आंसू सिसकियां थीं परन्तु आज यह घड़ियाल के आंसू हैं जिनके प्रवाह से पूरे देश में बाढ़ आ गयी है. और शायद इस बार पिछले वर्षों की तरह सूखे से उत्पन्न खाद्यानों की कमी नहीं पड़ेगी. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या कारनामा कर दिया भारतीय क्रिकेट टीम ने.
जिस समस्या के पीछे हमारी देश की सरकार अपने हाथ खड़ी कर चुकी थी उस समस्या को हमारी क्रिकेट टीम ने क्रिकेट के मैदान में समाप्त कर दिया. टी20 विश्व कप में भारतीय क्रिकेट टीम ने बेशर्मी की हद पार की थी और अपने दूसरे दौर के मुकाबले ही हारे थे. परन्तु इस बार तो बेशर्मी और निर्लज्जता की सारी सीमाएं पार कर गयी है टीम इण्डिया.
हुआ यह कि आईपीएल ज़्यादा खेलने से बहुत से खिलाड़ी थक गए थे अतः उनको आराम चाहिए था. इस कारणवश सुरेश रैना को कप्तानी सौंपी गयी और वहीं आराम में गए टीम इण्डिया के अनुभवी खिलाड़ियों के स्थान पर युवाओं को मौका दिया गया. मैं तो सोच रहा था कि शायद भारत की ए टीम दौरे पर जाएगी क्योंकि श्रीलंका ने भी अपने महत्वपूर्ण खिलाड़ियों को आराम दिया था और जिम्बाब्वे टीम तो अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही है.
अगर हम जिम्बाब्वे क्रिकेट टीम की बात करें तो एक समय ऐसा था जब नील जॉनसन, फ्लावर बंधुओं, एलिस्टर कैम्पबल, हीथ स्ट्रीक और मरे गुडविन का वर्चस्व जिम्बाब्वे टीम के प्रदर्शन पर साफ़ दिखता था और शायद यही कारण था कि जिम्बाब्वे टीम की गिनती अच्छी टीमों में की जाने लगी थी. लेकिन समय बदलते देर नहीं लगती आज जिम्बाब्वे टीम के साथ इनमें से कोई भी सूरमा नहीं है और शायद यही कारण है कि आज जिम्बाब्वे टीम अपनी साख बचाने के लिए लड़ रही है. इस साख की लड़ाई में आईसीसी जिम्बाब्वे का पूरा साथ दे रही है और यही कारण है कि जिम्बाब्वे में 28 मई से 9 जून तक श्रीलंका, जिम्बाब्वे और भारत के मध्य त्रिकोणीय श्रृंखला आयोजित करायी गयी.
परन्तु इस के बाद जो हुआ उसका वर्णन करते हुए कभी गुस्सा आता है तो कभी हँसी. इसका कारण यह है कि हार गयी टीम इण्डिया जिम्बाब्वे से और वह भी एक नहीं अपने दोनों मैच. अगर आप अखबार की सुर्खियाँ पढ़ेंगे तो जिम्बाब्वे की यह जीत बहुत आसानी से हुयी. जहाँ पहले मैच में 285 के लक्ष्य को भारतीय गेंदबाज़ नहीं संभाल सके वहीं दूसरे मैच में तो हमारे शूरवीर 200 का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाए.
पहली जीत के बाद बोला गया कि जिम्बाब्वे टीम ने तुक्के से भारतीय टीम को हराया जो खेल में होते रहते हैं और इसका उदाहरण हमें दूसरे मुकाबलों में देखने को भी मिला जहाँ भारत ने श्रीलंका को रोहित शर्मा की शानदार बल्लेबाज़ी की बदौलत आसानी से हरा दिया और फिर इसके बाद श्रीलंकाई शेरों ने अपने दूसरे मुकाबले में जिम्बाब्वे को 9 विकेट से पटखनी दी. पहले चक्र के मैचों के बाद ऐसा लग रहा था कि सही में जिम्बाब्वे का 28 मई को तुक्का लगा था और अब फाइनल मुकाबला भारत और श्रीलंका के बीच ही होगा.
दुबारा किया शर्मसार
कल भारत का जिम्बाब्वे के खिलाफ़ दूसरा मुकाबला हरारे स्पोर्ट्स पार्क में हुआ जहाँ कि पिच को धीमा कहा जा रहा था और इसलिए भारत ने दो स्पिनरों को खिलाया. जिम्बाब्वे ने टॉस जीता और भारत को बल्लेबाज़ी करने को कहा. परन्तु क्या कहें सलामी बल्लेबाज़ों को उनको तो शुरू से ही हार का डर सता रहा था. जहॉ उनको खुलकर खेलना था वहॉ सारे खिलाड़ी सहमे नज़र आए. जबकि दूसरी तरफ़ जिम्बाब्वे ने गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण के हर क्षेत्र में अनुशासन का परिचय दिया और भारत के बल्लेबाज़ों को केवल 194 रन बनाने दिया.
इसके बाद जो हुआ वह तो और भी दुखी करने लायक है. भारतीय गेंदबाज़ विकेट लेने के लिए तरस गए और जिम्बाब्वे के बल्लेबाज़ खुलकर अपनी शाट खेल रहे थे. टेलर तो जहाँ चाहे वहाँ गेंद खेलते और रन बना लेते. सलामी बल्लेबाज़ों ने पहले विकेट के लिए 128 रन जोड़े और भारत को जीत की जंग से दूर करते गए तथा 38.2 ओवरों में बोनस अंक के साथ मैच जीत लिया और दिखा दिया कि उनकी पहली जीत तुक्का नहीं थी.
कुछ महीनों बाद क्रिकेट का सबसे बड़ा युद्ध विश्वकप होने वाला है और सभी टीमें तैयारी में जुटी हैं. इस बार का विश्वकप भारतीय उपमहाद्वीप में हो रहा है और शायद इसी कारण हमें इससे बहुत उम्मीद भी है परन्तु क्या हम ऐसे प्रदर्शन को तैयारी कहेंगे. शायद अगर इस टीम की जगह यूपी की रणजी टीम होती तो वह भी जिम्बाब्वे से जीत जाती. परन्तु जब इस टीम के पास जीतने का कोई ज़ज्बा ही नहीं है तो यह क्या ला पाएंगे हम भारत वासियों के लिए विश्वकप.
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