समय के पहिये ने ऐसा रुख मोड़ा
जहाँ पहले था सपना शीर्ष पर रहना
अब वहीं पिछलों ने गर्त में ढकेला
पहले जिम्बाब्वे ने पीटा, फिर श्रीलंका ने रौंदा कुछ ऐसा ही हाल है भारतीय क्रिकेट टीम का, जो पिछले कुछ समय से हारने की बीमारी से ग्रषित है. टक्कर देना तो दूर की बात भारतीय क्रिकेट टीम को देख कर ऐसा लगता है कि खिलाड़ियों में जीतने का कोई ज़ज्बा ही नहीं है.
जिम्बाब्वे में आयोजित हो रही ट्राई सीरीज के अंतिम मुकाबले में जहाँ खिलाडियों से फाइनल में पहुंचने के लिए संघर्ष की दरकार थी, वहीं एक बार फिर टीम इण्डिया ने क्रिकेट प्रेमियों को निराशा का मुख दिखाया. भारत को फाइनल में पहुंचने के लिए श्रीलंका को बोनस अंक से हराना था और इसके लिए खिलाड़ियों को अपनी पूरी ताकत लगा देनी थी परन्तु भारतीय क्रिकेट टीम से उठते हुए भरोसे को खिलाड़ियों ने सही साबित किया और श्रीलंका के हाथों टीम इण्डिया को छह विकेट से शिकस्त का दर्शन करना पड़ा. इसके साथ टूर्नामेंट से बाहर हुई टीम इंडिया 2006 के बाद पहली बार किसी ट्राई सीरीज के फाइनल में पहुंचने में नाकाम रही है.
पहले बल्लेबाज़ी करने उतरी इंडियन टीम को एक बार सलामी बल्लेबाज़ों ने निराश किया. ना तो वह तेज़ी से खेल पाए और ना ही रन बना पाए. पहली बार कोच किर्स्टन ने यूसुफ पठान को फ्लोटर की तरह इस्तेमाल किया और जो किसी हद तक कामयाब भी रहा. पठान ने ताबड़-तोड़ बल्लेबाज़ी की परन्तु एक बार उनके आउट होने के बाद केवल कोहली ही रन बना पाए. उन्होंने 66 रन बनाए. अंत में अपना पहला मैच खेल रहे अश्विन ने कुछ करारे शॉट खेले और निर्धारित 50 ओवरों में भारतीय क्रिकेट टीम 9 विकेट खोकर 268 रन ही बना पायी.
269 के लक्ष्य का पीछा करने उतरी श्रीलंकाई टीम को शुरूआती झटका तो मिला जब उनके कप्तान दिलशान जल्दी आउट हो गए परन्तु आज दिन श्रीलंकाई विकेटकीपर चांदिमल का था जिन्होंने अपने अंतराष्ट्रीय कॅरियर का पहला शतक ठोंका और उनका पूरा साथ भारतीय बल्लेबाज़ों ने निभाया जिन्होंने दिशाहीन गेंदबाज़ी की. टीम इण्डिया के गेंदबाजों में कोई भी पैनापन नहीं दिखा और इसके साथ-साथ वह अपनी रणनीति से भी कोसों दूर दिखे. और अंत में श्रीलंकाई टीम ने टीम इण्डिया को छः विकेट से रौंद दिया.
अब तो ऐसा लगता है ‘सचिन का सपना’, ‘सपना ही रह जाएगा’, या फिर सचिन को अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से भी उठकर खेलना होगा तभी 2011 में हम विश्व कप जीतने की कोई तमन्ना रख सकेंगे.
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