9 जून 2010 हरारे का स्पोर्ट्स क्लब क्रिकेट मैदान. क्रिकेट जगत की नज़रें जिम्बाब्वे की क्रिकेट टीम पर टिकी थीं. क्या 21 जुलाई 1981 को अपना पहला मैच खेलने वाली जिम्बाब्वे की क्रिकेट टीम 29 सालों बाद इतिहास बना पाएगी? क्या एल्टन चिकुमबुरा के नेतृत्व वाली क्रिकेट टीम पहली बार कोई त्रिकोणीय श्रृंखला जीत पाएगी?
फाइनल तक के सफ़र में जिम्बाब्वे ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था उसने लीग चरणों के मैचों में टेस्ट रैंकिंग में नंबर एक टीम टीम इण्डिया को दो बार पटखनी दी थी और एक बार उसने श्रृंखला की तीसरी टीम श्रीलंका को हराया था. परन्तु यह एक नया दिन था और वह भी फाइनल मुकाबला. जिम्बाब्वे क्रिकेट टीम के सामने घायल श्रीलंकाई शेर थे जो पिछले मैच में मिली हार से आहत थे और जग जनता है कि घायल शेर का सामना करना बहुत कठिन है.
मुश्किल हो गयी बैटिंग
मैच की पहली बाज़ी श्रीलंकाई टीम के पक्ष में गयी जब उनके कप्तान तिलकरत्ने दिलशान ने टॉस जीता और पहले गेंदबाज़ी करने का निर्णय किया. “पूरी श्रृंखला में जिम्बाब्वे ने जितने भी मैच जीते थे वह पीछा करके जीते थे, और एक मैच हारा था वह भी पहले बल्लेबाज़ी करके”. लेकिन अगर आपको विजेता कहलाना है तो आपका लक्ष्य मैच जीतना होता है चाहे उसके लिए आप पहले बल्लेबाज़ी करें या फिर बाद में. पहले बल्लेबाज़ी करने उतरी जिम्बाब्वे की टीम को एक बार फिर अच्छी शुरूआत देने का दारोमदार टेलर के कंधों पर था जिन्होंने अभी तक इस श्रृंखला में सर्वाधिक रन बनाए थे. लेकिन जिम्बाब्वे के बल्लेबाज़ों को आज एक दूसरी मुसीबत का सामना करना था वह थी “पिच की नमी” जो तेज़ गेंदबाजों को गेंद स्विंग कराने में मदद करती है और जिम्बाब्वे टीम को जिस बात का डर था वही हुआ. श्रीलंकाई तेज़ गेंदबाजों नुवान कुलशेखरा और दिलहारा फर्नांडो की घातक गेंदबाज़ी के सामने जिम्बाब्वे बल्लेबाज़ों की एक ना चली और 50 रन के अंदर उसने तीन विकेट गवां दिए. इसके बाद जिम्बाब्वे के विकेटकीपर बल्लेबाज़ तायबू ने लैंब के साथ मिलकर पारी को संभालने की कोशिश की परन्तु तायबू के 71 रन बनाकर आउट होने के बाद कोई भी बल्लेबाज़ पिच पर समय नहीं बिता पाया और जिम्बाब्वे की टीम 49 ओवर में मात्र 199 रन ही बना सकी.
आसान लक्ष्य
आसान लक्ष्य का सामना करने उतरी श्रीलंकाई टीम के सलामी बल्लेबाज़ उपल थरंगा और कप्तान तिलकरत्ने दिलशान आज पूरे शबाब में दिखे. उनकी बल्लेबाजी देख ऐसा लग रहा था कि अगर वह आँख बंद करके भी खेलें तो तब भी रन बना लेंगे. स्क्वायर कट, ऑन ड्राइव, पुल, कवर ड्राइव इत्यादि आज दोनों के बल्ले से सभी प्रकार की शॉट देखने को मिले. परन्तु 72 रन के व्यक्तिगत स्कोर पर थरंगा आउट हो गए. दोनों ने पहले विकेट के लिए 160 रन जोड़े और जिम्बाब्वे के ख्वाब को चकना चूर कर दिया. थोड़ी देर बाद दिलशान ने अपना शतक पूरा करने के साथ-साथ श्रीलंका को फाइनल मुकाबले में जीत दिलाई. दिलशान ने 102 गेंद में 14 चौकों की मदद से 108 रन बनाए और मैन आफ़ द मैच का ख़िताब भी अपने नाम कर लिया. जिम्बाब्वे के टेलर को मैन आफ़ द सीरीज़ के पुरस्कार से नवाज़ा गया. और इस तरह श्रीलंका ने त्रिकोणीय श्रखंला पर अपना कब्ज़ा कर लिया.
अनुभव की कमी
पूरे मैच के दौरान जिम्बाब्वे टीम में अनुभव की कमी साफ़ दिखी. जहां उनके बल्लेबाज़ खराब शॉट खेलने से आउट हुए वहीं उनके गेंदबाजों के पास कोई रणनीति नहीं थी. जहाँ टेलर और तायबू के स्क्वायर कट में जान नहीं थी वहीं लैंब और कावेंट्री खराब शॉट खेलकर आउट हुए. दूसरी तरफ़ श्रीलंका टीम के मुख्य खिलाड़ियों ने आगे आकर प्रदर्शन किया. जहां कुलशेखरा और दिलहारा फर्नांडो ने शुरूआती नमी का पूरा फ़ायदा उठाया वहीं दिलशान ने जिम्मेदारी लेते हुए शतक बनाया और अपनी टीम को विजेता बना दिया.
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