133सालों के लम्बे इंतज़ार के बाद इंग्लैंड क्रिकेट टीम ने पहली बार किसी विश्वकप ट्राफी पर कब्ज़ा कर दिखा दिया कि भले ही आज ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट जगत का बादशाह है परन्तु आने वाले समय में उसकी बादशाहत को खतरा है.
इंग्लैंड क्रिकेट का जनक देश है जहाँ क्रिकेट का जन्म 17वीं शताब्दी में हुआ था परन्तु पहला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट 1877 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था और तब से लेकर अब तक कई ख़िताब जीतने के बाद भी इंग्लैंड कोई भी विश्व कप नहीं जीत पाया था. हालांकि कई बार वह इसके बहुत करीब आकर भी विश्व विजेता बनने से महरूम रह गया था परन्तु पाल कोलिंगवुड के नेतृत्व वाली इंग्लैंड क्रिकेट टीम ने 16 मई 2010 का दिन विश्व क्रिकेट इतिहास में इंग्लैंड के नाम कर दिया.
किंगसटन ओवल “बारबाडोस” में आई.सी.सी टी20 2010 विश्व कप के फाइनल मुकाबले में इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया को सात विकेट से हरा तीसरे टी20 विश्व कप का ख़िताब अपने नाम कर लिया. मैच के हीरो रहे इंग्लैंड के विकेट कीपर बल्लेबाज़ कीसवेटर ने इस जीत को अपने देश को समर्पित करते हुए कहा कि “यह ख़िताब हमारे लिए मील का पत्थर साबित होगी, हमने बहुत इंतज़ार किया परन्तु आज हमने कर दिखाया. इंग्लैंड क्रिकेट का जन्म-दाता है और विश्व को टी20 क्रिकेट भी हमने दिया अतः यह हमारे लिए ज़रुरी था कि हम विश्व कप जीतें और आज हमने टी20 विश्वकप जीत इतिहास लिख दिया है. मैं इस जीत से बहुत खुश हू”.
कैसे रचा इतिहास
फाइनल मुकाबले से पहले ऑस्ट्रेलिया को ख़िताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज़ जहाँ बेहतरीन फॉर्म में चल रहे थे वहीं उनके गेंदबाजों को मारना बहुत कठिन था. जहाँ तक किंगसटन ओवल की पिच का सवाल था तो वहाँ की पिच उछाल भरी और तेज़ है जो तेज़ गेंदबाजों को मदद करती है. फाइनल मुकाबले के लिए इंग्लैंड का मुख्य हथियार केविन पीटरसन थे, वही उनके गेंदबाजों ने अभी तक पूरी प्रतियोगिता में उम्दा प्रदर्शन किया था.
इंग्लैंड के कप्तान पाल कोलिंगवुड ने टॉस जीता और पहले गेंदबाज़ी करने का सही फैसला किया. यह फैसला सही इसलिए था क्योंकि बाद में बल्लेबाज़ी करने से आप को अपना लक्ष्य पता रहता है, पिच की उछाल और तेज़ी का भी अनुमान हो जाता है अतः शॉट खेलने में आसानी होती है. शुरुवाती ओवरों में इंग्लैंड के गेंदबाजों ने पिच में मौजूद नमी का फ़ायदा उठाया और ऑस्ट्रेलिया के तीन विकेट केवल आठ रन पर गिरा दिए. बाद में डेविड हसी और कैमरून व्हाइट ने ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी करते हुए स्कोर को 147 तक तो पहुंचाया परन्तु तब तक पिच का मिजाज़ बदल चुका था और शॉट खेलना आसान हो गया था.
इतिहास रचने के लिए उतरी इंग्लैंड की टीम का मनोबल 148 रनों का आसान लक्ष्य देख ऊंचा हो गया और अंततः कीसवेटर और केविन पीटरसन की शानदार बल्लेबाज़ी की बदौलत इंग्लैंड ने कब्ज़ा कर लिया.
नहीं झेल पायी ऑस्ट्रेलिया जीतने का दबाव
फाइनल मुकाबले में पहुंची टीमों पर जीतने का मनोवैज्ञानिक दबाव रहता है और प्रबल दावेदार होने के कारण ऑस्ट्रेलिया पर यह दबाव इंग्लैंड के मुकाबले कुछ अधिक था. प्रतियोगिता में सारे मैच जीतने वाली ऑस्ट्रेलिया ने अभी तक हर क्षेत्र में बेहतरीन खेल खेला था परन्तु कल क्यों हो गई विफल? ना तो अच्छा स्कोर खड़ा कर पायी और ना ही गेंदबाजों ने विकेट लिए. इस सवाल का जवाब साफ़ है “जीत का मनोवैज्ञानिक दबाव” जो आपके प्रदर्शन पर असर डालता है, आपका मनोबल कम करता है जिसके चलते आप अपना 100 प्रतिशत नहीं दे पाते और अंत में यह आप की हार का कारण बनता है. ऐसा ही कुछ ऑस्ट्रेलिया के साथ हुआ और धुरंधरों की सेना होने के बावज़ूद वह हार गया.
हर क्षेत्र में रहा इंग्लैंड के खिलाड़ियों का वर्चस्व
फाइनल मुकाबला जीतने के लिए आप को अपने खेल का स्तर ऊंचा करना पड़ता है और ऐसा ही कुछ इंग्लैंड के खिलाड़ियों में देखने को मिला. पहले तो उनके गेंदबाजों ने नपी-तुली गेंदबाज़ी की और ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ों को शॉट खेलने का कोई मौका नहीं दिया और अच्छे क्षेत्ररक्षण के द्वरा 15 रन बचाए और बाद में बल्लेबाज़ों ने अपनी ज़िम्मेदारी को निभाते हुए इंग्लैंड को जीत दिलायी. इंग्लैंड के खिलाड़ियों ने हर क्षेत्र में अपना स्तर उठाया और इसका फ़ायदा उन्हें मिला.
इंग्लैंड की तरफ से दिखाए गए जुझारू तेवरों के कारण ही उनकी जीत हुई जिसके लिए वे वाकई बधाई के हकदार हैं.
Read Comments