एक माध्यम भावनाओं की अभिव्यक्ति का और भाषा अगर मातृ भाषा हो तो भावनाओं की अभिव्यक्ति तो ऐसे निकलकर लेखनी में उतर जाती है कि कागज़ रूपी कैनवास भी कम पड़ जाए इन्हे चित्रमाला में पिरोने के लिए|
हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसे आज पूरे वैश्विक पटल पर मात्र एक दिशा देने की आवश्यकता है क्योंकि ७.६ बिलियन आबादी वाले इस विश्व में हिंदी भाषा को माध्यम बनाकर अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करने वालों की संख्या इतनी ज्यादा है कि इस भाषा को वैश्विक पटल पर भाषा के रूप में अपनाये जाने के कारण इसे चतुर्थ स्थान प्राप्त है| हिंदी भाषा के माध्यम से अपनी छिपी और सारगर्भित तथ्यपूर्ण बातों से हम दूसरों को अवगत करा सकें यही उद्देश्य हर हिंदी भाषी के अंतर्मन को बार-बार उद्वेलित करता है, ऐसा इस लिए है क्योंकि कभी-कभी भाषा के चलते हमारे सामने मुश्किलें ये आती हैं कि हम अपनी बात अपनी मातृ-भाषा में धाराप्रवाह तो बोल सकते हैं परन्तु दूसरी अन्य भाषा इसे संक्षिप्त कर देती है|
लिहाजा आज जरुरत इस बात की है कि हमारी समग्र और समृद्ध हिंदी को हम इतना विकसित करें कि वो उन आम जन को भी एक मंच प्रदान करे जो भाषा के चलते अपनी बात रख नहीं पाते| हिंदी न केवल हमारी राष्ट्र भाषा है अपितु देश के ७०% आबादी का भी प्रतिनिधित्व करती है और वैश्विक आंकड़े भी इनमे जुड़ जाए तो ये और बड़ा हिस्सा अपने अंतर में समाहित किये हुए है| वर्तमान में हिंदी कि उन्नति का द्वार इसलिए भी खुल गया है क्योंकि विदेश से आने वाली कंपनियां भी हिंदी भाषा का प्रयोग, हिंदी बोलने वाले ग्राहकों के अत्यधिक जन-बल के कारण ज्यादा से ज्यादा करने की जुगत में लगी हैं|
लिहाजा २१वीं सदी का ये दशक बहुत उपयुक्त समय है “रामधारी सिंह दिनकर”, “मुंशी प्रेमचंद्र”, “महादेवी वर्मा”, “सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला'”,”सुभद्रा कुमारी चौहान”, “मैथिली शरण गुप्त” जैसे हिंदी के धुरंधरों की परम्परा को आगे बढ़ाने का और भाषा के चलते आ रही अभिव्यक्ति की असमर्थता से निपटने का|
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