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प्रेमचंद की कहानी: बड़े घर की बेटी (पार्ट 2)

कहानियां
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(कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की श्रृंखला में आज पेश है उनकी प्रसिद्ध रचना ‘बड़े घर की बेटी’. प्रेमचंद के उपन्यास और कहानियों में किसान, मजदूर और वर्ग में बंटे समाज का दर्द उभरता है. उनकी कहानियों की एक बड़ी विशेषता महिला चरित्र का चित्रण भी रहा है. प्रेमचंद की पारिवारिक स्थिति हमेशा दुखदाई रही लेकिन अपनी पत्नी की भूमिका को उन्होंने हमेशा माना. अपनी कहानियों और उपन्यासों में भी उन्होंने महिलाओं का चरित्र-चित्रण बहुत प्रभावशाली ढंग से किया है. भारतीय समाज में एक परिवार को जोड़े रखने में स्त्री की क्या भूमिका होती है, उनकी कहानियों में दिखता है. बड़े घर की बेटी भी उनकी ऐसी ही एक कहानी है. उम्मीद है पाठकों को पसंद आएगी. कहानी पर आपकीबहुमूल्य प्रतिक्रया का हमें इंतजार रहेगा.)

गतांक से आगे……

premchand ki kahaniएक दिन दोपहर के समय लालबिहारी सिंह दो चिड़िया लिये हुए आया और भावज से बोला–जल्दी से पका दो, मुझे भूख लगी है. आनंदी भोजन बनाकर उसकी राह देख रही थी. अब वह नया व्यंजन बनाने बैठी. हांडी में देखा, तो घी पाव-भर से अधिक न था. बड़े घर की बेटी, किफायत क्या जाने. उसने सब घी मांस में डाल दिया. लालबिहारी खाने बैठा, तो दाल में घी न था, बोला-दाल में घी क्यों नहीं छोड़ा?


आनंदी ने कहा- घी सब मॉँस में पड़ गया. लालबिहारी जोर से बोला–अभी परसों घी आया है. इतना जल्द उठ गया?


आनंदी ने उत्तर दिया- आज तो कुल पाव भर रहा होगा. वह सब मैंने मांस में डाल दिया.


जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा से बावला मनुष्य जरा-जरा सी बात पर तिनक जाता है. लालबिहारी को भावज की यह ढिठाई बहुत बुरी मालूम हुई, तिनक कर बोला– मैके में तो चाहे घी की नदी बहती हो!


स्त्री गालियां सह लेती हैं, मार भी सह लेती हैं पर मैके की निंदा उनसे नहीं सही जाती. आनंदी मुंह फेर कर बोली– हाथी मरा भी, तो नौ लाख का. वहां इतना घी नित्य नाई-कहार खा जाते हैं.


लालबिहारी जल गया, थाली उठाकर पलट दी, और बोला– जी चाहता है, जीभ पकड़ कर खींच लूं.

आनंदी को भी क्रोध आ गया. मुंह लाल हो गया, बोली– वह होते तो आज इसका मजा चखाते.


अब अपढ़, उज्जड़ ठाकुर से न रहा गया. उसकी स्त्री एक साधारण जमींदार की बेटी थी. जब जी चाहता, उस पर हाथ साफ कर लिया करता था. खड़ाऊँ उठाकर आनंदी की ओर जोर से फेंकी, और बोला– जिसके गुमान पर भूली हुई हो, उसे भी देखूंगा और तुम्हें भी.


आनंदी ने हाथ से खड़ाऊँ रोकी, सिर बच गया पर उंगली में बड़ी चोट आयी. क्रोध के मारे हवा से हिलते पत्ते की भांति कांपती हुई अपने कमरे में आ कर खड़ी हो गयी. स्त्री का बल और साहस, मान और मर्यादा पति तक है. उसे अपने पति के ही बल और पुरुषत्व का घमंड होता है. आनंदी खून का घूंट पी कर रह गयी.

(शेष अगले अंक में……)

प्रेमचंद की कहानी

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