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पापा को डॉक्टर के पास लेकर जाना है……. – Hindi story (पार्ट -2)

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इस कहानी का पहला भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें



ठीक है बेटा। चलते समय डैडी ने कहा-हमारे लायक कोई बात हो तो बताना। तुम दोनों बहुत तनाव में दिख रहे थे, इसलिए चिंता थी। मेरी चिंता न करें, मैं बिलकुल ठीक हूं और अपनी बेटी को तो आप जानते हैं। उसे बिना बात के ही तनाव लेने की आदत हो गई है। किस घर में बीमारी नहीं होती, ऑपरेशन है भी तो क्या परेशानी है! उनके दो-दो कमाऊ बेटे हैं। वे खुद भी समर्थ हैं। सब हो जाएगा।


पंद्रह सितंबर को पापा साठ साल के हो रहे थे। तीस सितंबर को उनका रिटायरमेंट था। इसीलिए षष्ठिपूर्ति धूमधाम से मनाने का बचों का मन था। इछा भी कि इसी बहाने उनके सहकर्मियों को आमंत्रित किया जाए। रिश्तेदार तो आएंगे ही। राखी पर नीरज आया था, तो सबने बैठ कर पूरा प्लैन बना लिया था। योजना थी कि कार्यक्रम पापा के लिए एक सरप्राइज गिफ्ट हो। इसलिए तय हुआ कि उन्हें भनक भी नहीं लगने देंगे। पर निमंत्रित लोगों का चुनाव तो उन्हें ही करना था। पूरा ऑिफस तो न्योता नहीं जा सकता था। जैसे ही पापा ने योजना सुनी, बिदक गए। बोले-एक फेयरवेल तो ऑिफस दे ही रहा है। तुम एक और विदाई समारोह क्यों कर रहे हो? थोडे दिनों की तो बात है। सबके सब बिना बुलाए आ जाएंगे। इत्मीनान रक्खो।


वाइन, वूमेन और कॅरियर …..(पार्ट-2)


इन दिनों पापा बहुत टची हो गए थे। रिटायरमेंट का डिप्रेशन तो हर आदमी को आता है, फिर ऑपरेशन की वजह से थोडा टेंस भी थे। जरा सी बात पर नाराज हो जाते थे। इसीलिए मां ने कहा-जो कुछ भी करना है, उनकी मर्जी से करो। चिढ जाएंगे तो सारे कार्यक्रम का बारह बजा देंगे। तय हुआ कि सिर्फ नजदीकी रिश्तेदार और अडोसी-पडोसी ही बुलाए जाएंगे। बाहर से केवल दीदी अकेले आ रही थीं। मनोज का बहुत मन था कि कनक दिन में मां के पास चली जाया करे। झूठमूठ ही सही, काम का पूछ लिया करे। पर उन्होंने अपनी ओर से कुछ नहीं कहा। कनक ने भी कोई पहल नहीं की। वह अपनी ही चिंता में डूबी हुई थी। उसे यह सारा आयोजन व्यर्थ लग रहा था। लोग क्या साठ साल के नहीं होते! उसके लिए इतनी बडी पार्टी करने की क्या जरूरत है। खासकर जबकि ऑपरेशन का इतना खर्च सामने है।


मनोज रोज जाते रहे। मेहमानों की लिस्ट बनाते रहे। सबके साथ बैठकर मेन्यू तय करते रहे। सबकी सलाह से केटरर तय किया। टेंट हाउस को कुर्सियों, प्लेट्स वगैरह का ऑर्डर दिया। पापा के लिए नया रेशमी कुर्ता-पायजामा और मां के लिए साडी खरीदी। कनक उनकी दौडधूप और शाहखर्ची देख कर कुढ रही थी। नीरज दिल्ली में बैठा मजे कर रहा है। नवाब साहब ऐन वक्त पर पधारेंगे, जब सारा काम हो चुका होगा। हैरत तो तब हुई, जब कार्यक्रम वाले दिन भी नीरज नहीं पहुंचा। मनोज और पंकज दोनों फोन लगाने का प्रयास कर रहे थे, पर लग ही नहीं रहा था। सबकी जबान पर एक ही चर्चा थी- खुद ही प्रोग्राम बनाया, खुद ही गायब हो गया। कनक कुढ रही थी कि जानबूझकर मुंह छिपा गया है। जब वह आएगा ही नहीं तो बडे भैया झक मारकर सब खर्च उठाएंगे। चार बजे के आसपास एक स्मार्ट-सी लडकी, कंधे पर बैग लटकाए घर में दाखिल हुई। पंकज ने उसे देखते ही कहा-सारिका जी, बैड न्यूज। मिस्टर नीरज कुमार नहीं आए। उसने हंसकर जवाब दिए-इट इज नो न्यूज डियर, एटलीस्ट फॉर मी। मैंने ही उन्हें मना किया था। सुन लो मां, दीदी फुसफुसाकर बोली-ये तो पहली से भी सवा सेर निकली। घर में आई भी नहीं है, अभी से हुकुम चलाने लगी। लगता है तुम्हारे भाग्य में ऐसी ही बहुएं लिखी हैं।


दीदी की बात को अनसुनी करते हुए मां ने सारिका से पूछा-लेकिन तुमने उसे मना क्यों कर दिया? मां, उनका बॉस छुट्टी के लिए बहुत किलकिल कर रहा था। बोले कि अभी आऊंगा तो फिर ऑपरेशन के समय मुश्किल हो जाएगी। मैंने कहा, अभी आने की कोई जरूरत नहीं, यहां बहुत लोग हैं। पर ऑपरेशन के समय जरूर आना। भाई साहब अकेले क्या कर लेंगे। मिस्टर पंकज कुमार का तो जैसे कोई वजूद ही नहीं है। है क्यों नहीं भाई। चाय-वाय पहुंचाने तो तुम्हें ही जाना पडेगा पर जिम्मेदारी वाले काम तो बचों को नहीं दिए जा सकते न।


पंकज कुछ कहने को था कि पापा बोल उठे-बेटी, तुमने उसे नाहक मना किया। ऑपरेशन तो अब कैंसिल हो गया है। क्या मतलब? सारिका ही नहीं, मनोज भी चौंक पडे। अभी तो वह इस नई बहू को आत्मसात करने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें बहुत बुरा लग रहा था, कि जिसे पूरा घर जानता था, यहां तक कि दीदी भी, उसके बारे में आज तक उन्हें कुछ भी मालूम नहीं था। वह जिस तरह अनौपचारिक ढंग से दाखिल हुई, जिस तरह बात कर रही थी, उससे जाहिर था कि घर में घुल-मिल गई है। वह केवल उनके लिए अपरिचित है। मनोज बहुत अपमानित अनुभव कर रहे थे कि ऑपरेशन की सारी दौडधूप वह कर रहे हैं, और उसके कैंसिल होने का उन्हें भी पता नहीं है। क्या वह इतने पराये हो गए हैं कि इतनी महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी भी उन्हें संयोगवश ही मिला करेगी। उन्होंने थोडे सख्त लहजे में पूछा-पापा, ये आपके दिमाग का फितूर है या सचमुच डॉक्टर सिन्हा ने ऐसा कहा है? आप डॉक्टर के पास कब गए थे, किसके साथ गए थे? उधर सारिका रुआंसे स्वर में कह रही थी-ये बात मुझे किसी ने बताई क्यों नहीं। कम से कम दिल्ली खबर तो कर दी होती। एक दिन के लिए ही सही, नीरज आ तो जाते। मनोज! मां ने आदेशपूर्ण स्वर में कहा। ऑपरेशन की चर्चा आज जरूरी तो नहीं है न। अब यह विषय बंद करो। घर में बहुत काम है। सब चुप हो गए थे, पर कमरे में एक तनाव-सा भर गया। उसे हलका करने की गरज से पंकज ने नाटकीय ढंग से कहा-सारिका जी, मे आय हैव दि प्लेजर टू इंट्रोड्यूस यू टू माय भैया एंड भाभी एंड लिटिल प्रिंस सुमंत?


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सारिका ने चेहरे पर एक मुसकान ओढकर तुरंत मनोज और कनक के पैर छू लिए। फिर दीदी के पैर छूते हुए बोली-सॉरी दीदी, आपको भी प्रणाम करना भूल गई थी। मनोज ने भी वातावरण को हलका करने के लिए कहा-पंकज, यह परिचय कार्यक्रम तो अधूरा ही रह गया। मुझे भी तो पता होना चाहिए कि मैं किस हस्ती से मुखातिब हूं। बडे भैया, कुछ न पूछिए, पंकज ने सांस भर कर कहा-ये हमारे परिवार पर मंडराने वाला संकट है। छोटे भैया की बुद्धि पर मुझे तरस आ रहा है। उन्हें देखकर विश्वास हो जाता है कि प्रेम अंधा होता है। बाप रे, ये पंकज क्या बके जा रहा है। मनोज को डर लगा कि यह लडकी अब फट पडेगी। पर उसने सुमंत को पुचकारते हुए बडी शांति से कहा-बेटे, अपने चाचू से कहो कि अपने लिए मिस व‌र्ल्ड ले आएं। हमें कोई एतराज नहीं है। अछा है, मां की दोनों बहुएं राजरानी-सी लगेंगी। पर घर में काम वाली भी तो कोई चाहिए न। मेरी तो काम वाली भी ऐसी सिलबिल्ली-सी नहीं रहती। मां ने डपट कर कहा-तुम्हारे पास इससे खराब कपडे नहीं थे? मनोज विस्मित होकर सुन रहे थे। इस तरह की बात मां कनक से कहने का साहस कभी नहीं करतीं। घर में भूचाल आ जाता। पर इस लडकी ने बडे ही शालीन अंदाज में कहा-इत्मीनान रखो मां। खूब अछी साडी लाई हूं। साथ में मैचिंग ज्यूलरी भी। यहां का काम खत्म हो जाए तो पहन लूंगी। एक बात अभी से बता देती हूं, कुछ भी पहन लूं, आपकी बडी बहू से उन्नीस ही लगूंगी। अब बातें खत्म, काम चालू। दीदी ने आदेश दिया तो सारिका तुरंत कमर में दुपट्टा खोंस कर किचेन में घुस गई। उसने टेंट हाउस की प्लेटों को धो-पोंछकर रख दिया। गिलास और चम्मच गिनकर एक कतार में सजा लिए। सौंफ-सुपारी की ट्रे तैयार की। एक्वागार्ड चलाकर दो-चार घडे पानी भर लिया। हर काम के बाद मां से पूछती-अब क्या करूं?


मां बोली- तू तो कहानी का जिन्न हुई जा रही है। काम बताओ, नहीं तो खा जाऊंगा। बहुत हो गया, अब कुछ नहीं करना है। अब अपनी यह भूतनी सी शक्ल धो-पोंछकर इनसान हो जाओ। छह बजे से लोग आने लगेंगे। वह तैयार होकर जब कमरे से बाहर निकली तो वाकई सुंदर लग रही थी। मानना पडा कि नीरज की पसंद ऐसी बुरी भी नहीं है। घर लौटते ही कनक की पहली प्रतिक्रिया थी – आपको नहीं लगता कि नीरज भैया की मंगेतर कछ ज्यादा ही इतरा रही थी। अपनी-अपनी स्टाइल है। वाह! बडी अछी स्टाइल है! और पंकज से कैसा फ्लर्ट कर रही थी, देखा।


यह बात मनोज को अछी नहीं लगी। पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। खुद उन्होंने देवर-भाभी की इस निश्छल नोकझोंक का भरपूर आनंद उठाया था। समझ गए थे कि पंकज इस तरह के मधुर स्नेहालाप के लिए तरस गया था। कनक से तो इस तरह का रिश्ता कभी बन ही नहीं पाया था। कनक ने कभी मौका ही नहीं दिया। सुमंत के जन्म से पहले तो वह कमरे से बाहर निकलती ही नहीं थी। बचे ने उसे मजबूरन थोडा सामाजिक बनाया था। अपने चाचू के साथ सुमंत की खूब पटती थी। इसी के लिए पंकज यदा-कदा इस घर में चला आता है, पर मां तरसकर रह जाती है। मनोज का अलग घर बसाना सुमंत की वजह से ज्यादा अखर गया था। मनोज तो अकसर चक्कर लगा लेते थे, लेकिन सुमंत का आना तो मां के साथ ही हो पाता था और कनक केवल विशेष अवसरों पर सास के घर जाती थी। दीदी बचों को छोडकर आई थीं, इसलिए तीसरे दिन ही उन्हें जाना था। मनोज ने सुबह घर से चलते हुए ही बता दिया था कि वे दीदी को ट्रेन में चढा कर ही लौटेंगे। कनक से पूछा भी था कि स्टेशन चलना चाहो तो एक चक्कर घर का लगा लूंगा लेकिन कनक के पास तो न चलने के सौ बहाने थे। मनोज ने भी केवल औपचारिकता निभाई थी। नहीं तो इसी बात पर झगडा हो जाता। दीदी एकदम तैयार थीं। मनोज के पहुंचते ही बोलीं-चलें? अरे अभी तो बहुत टाइम है। स्टेशन पर बोर होंगे। मां बोली-मेरा खयाल है तुम लोग निकल ही जाओ। क्या फायदा इसका ध्यान गाडी में ही अटका रहेगा।


मनोज को बडा आश्चर्य हुआ। अन्यथा होता तो यह था कि मां आखिरी क्षणों तक दीदी को अपने पास रोके रखना चाहती थीं और बाकी लोग जल्दी मचाने लगते थे। स्टेशन पर आकर मनोज ने कहा-लो, वैसे भी हम बिफोर टाइम आ गए हैं। ऊपर से ट्रेन आधा घंटा लेट है। तुमने घर पर इतनी जल्दी मचाई कि इन्क्वायरी से पूछ भी न पाए। वैसे भी वे लोग कौन-सा तुरंत जवाब देते हैं। जल्दी आ गए हैं तो कोई बात नहीं। आराम से बैठकर बातें कर लेंगे। वैसे भी इन दिनों इतनी भागमभाग मची रही कि तुमसे ठीक से बात ही न हो पाई। हां, इस बार तुम्हारा मेरे यहां आना भी नहीं हो सका। कनक कहती ही रह गई। मनोज एक सफेद झूठ बोल गए। पता नहीं दीदी ने यकीन किया भी कि नहीं। ऑपरेशन के समय आओ तो मेरे पास ही रुकना। अस्पताल में आने-जाने में सुविधा रहेगी। ऑपरेशन पहले हो तो। बाकी बातें बाद में सोचेंगे। हां, उस दिन पापा एकदम से क्या कह गए थे। मैं पूछना चाह रहा था, पर मां ने बात ही नहीं करने दी। पता नहीं क्यों जिद ठाने बैठे हैं कि पसीने की कमाई डॉक्टरों पर नहीं लुटाएंगे। लाख-डेढ लाख कम नहीं होता है। लेकिन उनकी कमाई को हाथ कौन लगा रहा है। उनका कहना है कि बचों को टेंशन में नहीं डालना चाहता। न उनके लिए कर्ज छोडना चाहता हूं। दिन भर बैठे-बैठे मां को हिसाब समझाते रहते हैं। कहते हैं, ग्रेयुटी की रकम फिक्स में डाल देंगे। उसका ब्याज आता रहेगा। पेंशन भी मिलेगी। तुम्हारा काम चल जाएगा। बचों को परेशान मत करना। पंकज से कहते हैं, दो साल सब्र से काम लो। फिर तुम अपने पैरों पर खडे हो जाओगे। तब तक मां की आय में गुजारा करना। भाइयों के आगे हाथ मत फैलाना। उन्हें अपनी भी गृहस्थी देखनी होती है। ये एकदम से क्या हो गया? अगर वो ऑपरेशन से डर रहे हैं, तो यह डर उनके मन से निकालना होगा। दीदी, ऑपरेशन बहुत जरूरी है। मैं तो इतने दिन रुकने के लिए तैयार ही नहीं था। पर आिखरी दिन तक ऑिफस जाने का उनका मन था। दफ्तर वाले भी को-ऑपरेट कर रहे थे, इसलिए चुप रहा। पर अब ज्यादा टालना ठीक नहीं है। जितनी देर करेंगे, कॉप्लीकेशंस बढते जाएंगे। तुम्हें एक बात बताऊं? पापा कहते हैं कि उन्हें मरना मंजूर है, पर उनके बेटे को उनके इलाज के लिए अपने ससुर के आगे हाथ फैलाने पडें, यह बात उन्हें मंजूर नहीं।


क्या बात करती हो दीदी? मैं ससुर के आगे हाथ फैलाऊंगा? पापा ने ऐसा सोच कैसे? तुम्हें शायद मां ने बताया नहीं होगा। पांच छह दिन पहले तुम्हारे सास-ससुर मिलने आए थे। बातों ही बातों में बोले-मनोज आजकल बहुत टेंशन में है। स्वाभाविक है। ऑपरेशन बहुत खर्चीला होता है। मैंने उससे कह दिया है कि चिंता की कोई बात नहीं है। कोई भी जरूरत हो, तो हमसे कहो। हम किसलिए हैं। कसम ले लो दीदी, जो मैंने एक बार भी उनसे ऐसी बात की हो, बल्कि मैं तो यही कहता रहा हूं कि सब व्यवस्था हो चुकी है। शायद कनक ने कुछ कहा होगा। उसे जरूर टेंशन होगा और ऐसे में लडकी अपने मां-बाप से ही बात करेगी। हो सकता है कि तुम्हारे ससुर ने औपचारिकतावश यह बात कही हो। पर पापा उसी दिन से सनक गए हैं। क्रोध से मनोज का संपूर्ण शरीर जैसे जलने लगा। मन हुआ कि अभी घर जाए और कनक से जवाब तलब करे। पर ट्रेन आने तक तो रुकना ही था। आधा घंटा उनके लिए पहाड हो गया। दीदी कुछ-कुछ पूछती रहीं और वह बेमन से जवाब देते रहे। पापा की नजर में उसकी छवि क्या बनी होगी। घर पहुंचे तो एक और आश्चर्य प्रतीक्षा कर रहा था। दरवाजा पंकज ने खोला था और पीछे सोफे पर सुमंत सारिका की गोद में चढा हुआ धमाचौकडी कर रहा था। व्हॉट ए प्लेजेंट सरप्राइज! सपाट स्वर में ही सही उन्होंने औपचारिकता निभाई। सरप्राइज तो खैर होगा भाई साहब, पर आपके चेहरे से ऐसा नहीं लगता कि वह प्लेजेंट भी होगा। मनोज झेंप उठे और सूखी हंसी हंसकर बोले – दरअसल इस नालायक को यहां देखकर मूड खराब हो गया। दीदी को छोडने स्टेशन नहीं आ सकते थे? उन्होंने पंकज को डांटा। दीदी ने मना कर दिया था। पंकज ने शांत स्वर में जवाब दिया। मनोज समझ गए कि सब कुछ एक योजना के अंतर्गत ही हुआ है। इसीलिए दीदी को स्टेशन जल्दी भेज दिया गया, ताकि अकेले में बात हो सके। मां अपने आप कुछ कहेंगी नहीं, इसलिए दीदी ने यह भार लिया। इसीलिए पंकज को रोका गया।


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उनकी चुप्पी का सारिका ने कुछ और ही अर्थ लगाया। बोली-दरअसल भाई साहब आपकी कुसूरवार मैं हूं। उस दिन इन छोटे मियां के लिए कुछ नहीं ला पाई थी, इसलिए मैंने पंकज से साथ चलने की रिक्वेस्ट की थी। और बडे भैया आपका कुसूरवार मैं भी हूं कि मैंने इन्हें आपका घर दिखा दिया। अब ये जब तब आपको बोर करने चली आएं तो मुझे गाली मत दीजिएगा। पंकज के इस नाटकीय वक्तव्य पर उन्हें हंसी आ ही गई। वातावरण थोडा हलका हो गया। सारिका ने पंकज को डपटते हुए कहा-अंदर जाकर भाभी का हाथ नहीं बंटा सकते? यहां बैठकर बातें कर रहे हो। वैसे कायदे से यह काम आपको करना चाहिए, खैर..! पंकज ने कहा और हंसता हुआ भीतर चला गया। नन्हे-नन्हे डग भरता हुआ सुमंत भी उसके पीछे हो लिया। उनके जाते ही सारिका ने पर्स से एक लंबा-सा लिफाफा निकाला और मनोज के सामने रख दिया और फुसफुसाकर कहा-उन लोगों के आने से पहले इसे रख लीजिए प्लीज। यह क्या है? मेरी छोटी-सी सेविंग है। जस्ट ए ड्रॉप इन दि ओशन। रामेश्वरम् का पुल बांधते समय गिलहरी का जो योगदान था, बस उतना ही। पर यह सब किसलिए? मैं नहीं चाहती कि पैसों के लिए पापा का ऑपरेशन रुका रहे। मनोज के चेहरे की नसें एकदम तन गई। उन्होंने अत्यंत सख्त लहजे में कहा कि पहले इसे उठाकर पर्स में रखो, बाद में कोई बात होगी। स्वर ऐसा था कि सारिका उसकी अवज्ञा न कर सकी। चुपचाप लिफाफा पर्स में डाल लिया। अब बताओ कि तुमसे ये किसने कह दिया कि पापा का ऑपरेशन पैसों की वजह से रुका हुआ है। उस दिन पापा ने एकदम से अनाउंसमेंट की तो मैं घबरा ही गई थी। पंकज से बात की तो..। पंकज ने क्या बताया होगा, इसकी मनोज भलीभांति कल्पना कर सकते थे। इसलिए उन्हें बीच में ही रोकते हुए मनोज ने कहा-मान लो कि हम आर्थिक तंगी से गुजर भी रहे हैं, पर तुमने यह कैसे सोच लिया कि हम तुम्हारा ये हंबल शेयर स्वीकार ही कर लेंगे। क्या मेरा कोई अधिकार नहीं है।


नहीं। शादी से पहले तो बिल्कुल भी नहीं। उन्होंने निर्णायक स्वर में कहा। उसी समय नाश्ते की प्लेटों के साथ कनक ने कमरे में प्रवेश किया। पीछे चाय की ट्रे के साथ पंकज भी था। सारिका एकदम सकपका गई। उसकी अनाधिकार चेष्टा की दुर्गति होते हुए इन लोगों ने जरूर देख ली होगी। अपमान से उसका मुंह लाल हो गया। मनोज ने सहज-स्वाभाविक स्वर में कनक से कहा-श्री नीरज कुमार ने हमें हवा ही नहीं लगने दी, नहीं तो इन्हीं गर्मियों में शादी करवा देते। कनक सिर्फ मुस्कराकर रह गई, पर सारिका ने अत्यंत म्लान स्वर में कहा-फिलहाल दो साल तक तो शादी का सवाल ही नहीं उठता। क्यों? नीरज बता रहे थे जब तक आप पढते रहे, दीदी ने शादी नहीं की। जब तक नीरज को जॉब नहीं मिल गया, आपने शादी नहीं की। अब नीरज की बारी है। जब तक पंकज.।


देखो इस ढपोरशंख के लिए रुकी रहोगी तो बूढी हो जाओगी। मनोज की बात पर सबको हंसी आ गई। सारिका को भी मुस्कराना पडा। मनोज ने बात आगे बढाई-देखो, समय-समय की बात होती है। उस समय पढने वाले चार थे और कमाने वाले सिर्फ पापा। इसलिए ऐसी व्यवस्था करनी पडी। अब पढने वाला एक है और कमाने वाले दो। इसलिए नो प्रॉब्लम। नाऊ चीयर अप यंग लेडी। दिवाली के बाद पहले मुहूर्त पर ही तुम्हारे हाथ पीले कर देंगे। पर पहले पापा का ऑपरेशन होगा। वह तो होगा ही। इट इज नथिंग टू डू विद योर वेडिंग। ऑपरेशन और शादी, दो अलग-अलग मुद्दे हैं। इनका घालमेल मत करो। पापा ने मजाक में कुछ कहा और तुम लोगों ने उसे मुद्दा बना लिया। चाय पीकर वे लोग चले गए। कनक जैसे उनके जाने की ही प्रतीक्षा कर रही थी, बोली- आपको नहीं लगता कि ये थोडा ज्यादा हो रहा है। यह लडकी कितनी ओवर एक्टिंग कर रही है। अभी घर में आई भी नहीं और उसका हस्तक्षेप शुरू हो गया। ये तुमसे किसने कह दिया कि वह अभी घर में आई नहीं है। वह घर में आई ही नहीं बल्कि रच-बस गई है। इसीलिए उसे घर की हर बात से सरोकार है। यहां की हर चिंता उसे परेशान करती है। हर खुशी उसे प्रसन्न करती है। उसके आगमन की सूचना सबसे पहले तुम्हें होनी चाहिए थी क्योंकि ऐसे मामलों में भाभियां ही पहली राजदार होती है। पर दुर्भाग्य से तुम खुद अभी इस घर में प्रवेश नहीं कर पाई हो। गृह प्रवेश के समय तुम्हारा केवल शरीर ही भीतर आया था। मन तो बाहर ही छूट गया था और अब भी शायद वह बाहर ही है। पता नहीं किस मुहूर्त की प्रतीक्षा कर रहा है।


एक अरसे से मन में घुमडने वाली बातों को एकबारगी कह डालने के बाद मनोज का मन हलका हो गया था। पर अपने भीतर के सच को, इस तरह अनावृत, सामने पाकर कनक एकदम सहम गई थी, दहल गई थी।


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