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उस रंग-बिरंगे कागज में लिपटे हुए पैकेट को उठा कर शालिनी सोचने लगी, क्या होगा इसमें? फिर वह प्यार से उसे खोलने लगी।
एक सुंदर और कीमती साडी। वह अपलक उस साडी को देख रही थी। इतनी महंगी साडी क्यों ले आए मनोज भैया। मनोज उसका सगा भाई नहीं था और न ही उसने उसे धर्म भाई बनाया था। यह तो एक ऐसा रिश्ता था, जो परिस्थितिवश बनता चला गया।
उसे वे दिन याद आ गए, जब वह मनोज को जरा भी पसंद नहीं करती थी। उस दिन भी उसे राजेश पर बहुत गुस्सा आ रहा था, क्यों ले आते हैं ये इसको? तभी राजेश की आवाज आई, शालिनी जरा दो गिलास पानी दे जाना।
शालिनी ने पानी के दो गिलास चुपचाप मेज पर रख दिए और जाने के लिए मुडने लगी। भाभी जी नमस्ते! बडा ही सुरीला स्वर था।
शालिनी ने गुस्सा छिपा कर सहजता से उसके अभिवादन का जवाब दिया।
जरा चाय और पकौडे बना लो, मौसम पकौडे खाने का हो रहा है, राजेश बोला।
अभी लेकर आती हूं, कह कर शालिनी रसोई में चली गई।
मनोज के जाने के बाद शालिनी राजेश पर बिफर पडी, क्यों ले आते हो इसे?
कितनी बार बता चुका हूं कि यह मेरा दोस्त है, राजेश बोला।
आपके बाकी दोस्त तो अच्छे -अच्छे पदों पर हैं, फिर इस टैक्सी ड्राइवर से दोस्ती मेरी समझ में नहीं आती, शालिनी गुस्से से बोली, चलो दोस्ती भी ठीक है फिर उसका इतना आदर-सत्कार क्यों?
शालिनी की इस बात पर राजेश कुछ नहीं बोला। चुपचाप अपने कपडे चेंज कर नहाने चला गया। शालिनी ने भी राजेश से कोई बात नहीं की। रात तक दोनों में बातचीत बंद रही। डिनर पर शालिनी ने ही बात प्रारंभ की।
शालिनी बोली, सब्जी में नमक क्यों नहीं डाल लेते? नमक कितना कम है?
राजेश बोला, सब्जी का नमक तो ठीक हो जाएगा, लेकिन तुम जो मिर्च की तरह बातें करती हो, वे कैसे ठीक होंगी?
शालिनी राजेश की बात पर हंस पडी। वैसे भी दोनों की लडाई ज्यादा देर तक नहीं चलती। दोनों ही देर तक बिना बोले रह नहीं सकते। राजेश बोला, तुम्हें उससे प्रॉब्लम क्या है? वह तो बेचारा तुम्हारा मूड देखकर तुमसे ज्यादा बात भी नहीं करता।
बस मुझे अच्छा नहीं लगता है वह, शालिनी ने प्लेटें उठाते हुए कहा।
जानता हूं तुम्हें उसका टैक्सी चलाना पसंद नहीं है। परंतु तुम नहीं जानतीं शालिनी कि वह टैक्सी क्यों चलाता है। शालिनी ने राजेश की बात का कोई जवाब नहीं दिया और वह रसोई में चली गई। शालिनी रसोई साफ कर जब कमरे में आई तो उसने राजेश को गहरे विचारों में खोए हुए देखा। वह राजेश से कुछ नहीं बोली। वैसे भी शालिनी को नींद आ रही थी। वह चुपचाप पलंग पर लेट गई और आंखें बंद कर लीं।
तभी उसे राजेश का स्वर सुनाई पडा, शालिनी, जानती हो, यदि स्थितियां ठीक होतीं तो मनोज भी आज मेरी तरह इंजीनियर होता।
इंजीनियर और मनोज? शालिनी ने अपनी बडी-बडी आंखें पूरी खोल दीं।
हां शालिनी, राजेश ने शालिनी की तरफ करवट लेते हुए कहा। मनोज ने इंजीनियरिंग की परीक्षा में मुझसे भी ज्यादा अंक प्राप्त किए थे।
राजेश आगे बोला, हम सभी दोस्त खुश थे बारहवीं की परीक्षा के बाद हमें अपनी-अपनी मंजिल मिल गई थी। हमने एक साल पूरा भी कर लिया था, तभी मनोज के पिताजी बीमार हो गए। सारा पैसा उनकी बीमारी में लग गया और पिताजी भी नहीं बचे। बेचारे मनोज ने सभी रिश्तेदारों से मदद मांगी, लेकिन किसी ने भी उसकी इतनी मदद नहीं की कि वह अपनी पढाई पूरी कर लेता।
अंत में उसने अपनी मंगेतर से कहा। उसके पापा ने भी उसके सामने एक शर्त रख दी कि वह अपनी मां तथा बहन को छोड कर उनके पास आ जाए तो वे उसकी मदद को तैयार हैं। यह सुन कर मनोज बहुत आहत हुआ और वापस चला आया। ये बात उसने हम लोगों को बताई थी। उसकी आंखों में पढाई पूरी न कर पाने का दर्द मैंने देखा था।
उसके ऊपर मां और बहन की जिम्मेदारी थी। वह अपनी पढाई छोड कर ऑटो चलाने लगा। कितनी मुश्किल से उसने अपनी बहन की शादी की। हम सभी को मनोज की पढाई पूरी न होने का दुख है। एक गहरी सांस लेकर राजेश ने अपनी बात खत्म की।
शालिनी की आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। वह बोली, और उसकी गर्लफ्रेंड? फिर उसका क्या हुआ? उसके बाद मनोज फिर कभी अपनी गर्लफ्रेंड से नहीं मिल सका। कह कर राजेश ने करवट बदल ली।
शालिनी की आंखों में नींद की जगह अब आंसू थे। वह शर्म तथा दुख से गडी जा रही थी। उसे अपने द्वारा मनोज के प्रति किए व्यवहार पर पछतावा हो रहा था। शालिनी ने राजेश के गले में हाथ डाल कर कहा, राजेश, क्या आप मुझे माफ करेंगे?
राजेश बोला, शालिनी! मेरे माफ करने से क्या होता है। मुझे तो यही खुशी है कि तुम उसका दर्द समझ सकीं।
राजेश तो सो गया, लेकिन शालिनी की आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। वह सोचने लगी, क्यों किसी की हैसियत देखकर वह उनकी इज्जत करती है। आज उसका अपना सगा भाई कितने बडे पद पर कार्यरत है। सभी उसकी इज्जत करते हैं। कितना मान-सम्मान देते हैं, लेकिन क्या ये इज्जत करने वाले लोग एक बार भी सोचते हैं कि आज जिस हैसियत और ओहदे तक वह पहुंचे हैं, अपने माता-पिता के कारण ही न! उन्हें अकेला छोडकर पत्नी के साथ ससुराल में सुख भोगने आ गए। माता-पिता को कभी पूछते तक नहीं कि वे अकेले कैसे दिन काट रहे हैं। यही सब सोचते-विचारते शालिनी को कब नींद आ गई, उसे पता भी नहीं चला।
सुबह जब उठी तो उसने देखा राजेश तैयार हो चुके हैं। उसने जल्दी से नाश्ता बनाया और राजेश को ऑफिस भेज कर फिर पलंग पर लेट गई। उस दिन के बाद से दोनों के बीच मनोज को लेकर कोई बात नहीं हुई।
एक दिन यूं ही उसने राजेश से पूछ लिया, बहुत दिनों से मनोज भैया नहीं आए? राजेश ने उसे बताया कि वह अपनी पढाई भी कर रहा है इसलिए उसे ज्यादा फुर्सत नहीं मिलती। आप उन्हें अपनी कंपनी में नौकरी क्यों नहीं दिलवा देते? शालिनी ने पूछा।
राजेश ने सहजता से उत्तर दिया, हम दोस्त हैं शालिनी, वह वैसे भी बहुत स्वाभिमानी है। शालिनी कुछ नहीं बोली। राजेश ने ही खामोशी तोडते हुए कहा, आज तुम्हारा उसके प्रति व्यवहार देखकर मुझे खुशी हो रही है, पर प्लीज शालिनी उस पर तरस नहीं खाना।
शालिनी बोली, क्या मैं अपने भाई की तुलना में उसके प्रति अपना नजरिया तरस खाने वाला रखूंगी। जहां एक ओर मनोज है, जिसने विषम परिस्थितियों में भी अपनी मां तथा बहन को नहीं छोडा और एक मेरा भाई अपने सुख के लिए अपने मां-बाप को अकेला छोड कर चला गया।
राजेश शालिनी की पीडा समझ गया। बात बदलते हुए वह बोला, चलो आज कहीं बाहर खाना खा कर आते हैं। शालिनी भी बात खत्म कर उठ गई।
वैसे दोनों का जीवन आनंद से गुजर रहा था। आज काम कुछ ज्यादा था, शालिनी को पता ही नहीं चला कि कब सात बज गए। वह बालकनी में आ कर खडी हो गई।
अब तक राजेश क्यों नहीं आए, वह सोचने लगी। वैसे तो छह बजे तक आ जाते हैं, आज क्या हो गया। वह इधर-उधर घूमने लगी। घडी की सुइयां लगातार बढ रही थीं। करीब आठ बजे घंटी बजी और शालिनी जल्दी से उठी दरवाजा खोलने।
सामने राजेश खडा मुसकरा रहा था।
शालिनी ने परेशान हो कर पूछा, क्या हुआ…….
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