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यह नवरात्र व्रत कथा व्रत करने वाले लोग आपस में एक दूसरे से कहते हैं. कहते हैं कि यह कथा बृहस्पति जी के पूछने पर ब्रह्मा जी ने उन्हें सुनाई थी.
पीठत नाम के गांव में अनाथ नामक एक ब्राह्मण रहता था. अवह भगवती दुर्गा का भक्त था और रोज़ उनकी पूजा करता था. उस ब्राह्मण की सुमति नामक एक बेटी थी, जो रोज़ पिता की पूजा में शामिल होती थी.
एक दिन अपनी सहेलियों से खेलने लगी और समय का भान न होने से पूजा में नहीं आई. इस बात पर पिता अत्यधिक क्रुद्ध हुए, और उसे कहा, की हे दुष्ट पुत्री, तूने आज भगवती का पूजन नहीं किया, जिसके लिए मैं किसी कुष्ठी दरिद्र से तेरा ब्याह करूंगा.
सुमति को बहुत दुःख हुआ, और उसने कहा, हे पिताजी, आपकी कन्या होने से मैं सब तरह से आपके अधीन हूँ. आप जिससे चाहें मेरा ब्याह कर सकते हैं, किन्तु होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा होगा. यह सुन कर पिता का क्रोध और बढ़ गया, जैसे आग में सूखे तिनके पड रहे हों हो. उसने बेटी का ब्याह एक दरिद्र कुष्ठ रोगी से कर दिया (यह कथा में है).
वह रात उन दोनों ने जंगल में बड़े दुःख तकलीफ से गुजारी. उसकी ऐसी दशा देख भगवती पूर्व कर्म प्रताप से प्रकट हुईं , और उस से कहा, कि हे दीन ब्राह्मणी, मैं तुझ पर प्रसन्न हूं, जो मांगना हो मांग ले. सुमति के पूछने पर देवी ने बताया की मैं ही आदि शक्ति मां हूं, ब्रह्मा, विद्या और सरस्वती हूं. तुझ पर मैं पूर्व जन्म के पुण्य से प्रसन्न हूं.
पिछले जन्म में तू निषाद की स्त्री थी, और अति पतिव्रता थी. एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की , और सिपाहियों ने तुम दोनों को जेलखाने में बंद कर दिया. वहां उन्होंने तुम दोनों को खाने को भी न दिया. तब नवरात्र के दिन थे , और तुम दोनों का नौ दिन का व्रत हो गया। उस व्रत के प्रभाव से मैं तुम्हे मनोवांछित वास्तु दे रही हूँ, मांगो. तब सुमति ने अपने पति को स्वस्थ्य करने की कामना की. देवी ने उसे एक दिन के व्रत के प्रभाव को अर्पित करने को कहा, और सुमति ने “ठीक है” कहा. तुरंत ही उसका पति निरोगी हो गया और उन दोनों ने देवी की अत्यधिक स्तुति की. इसके पश्चात “उदालय”नामक पुत्र शीघ्र प्राप्त होने का आशीष देकर और व्रत विधि बता कर देवी अंतर्ध्यान हो गयीं.
साभार: शिल्पा मेहता
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