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बीमारी शारीरिक नहीं, मानसिक है !!(पार्ट-1)- Hindi Story

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कहीं जा रही हो? इरा को तैयार होते देख अरव ने यूं ही पूछा..।

हां, कल अर्पिता ने एक डॉक्टर के बारे में बताया था..कह रही थी बहुत टैलेंटेड और अनुभवी हैं। डॉ. सेठ के इलाज से तो कोई फायदा दिख नहीं रहा है, इसलिए सोचा आज दूसरे डॉक्टर.. इरा की बात खत्म भी नहीं हुई थी, मग्ार अरव कमरे से जा चुका था..। इरा के भीतर जैसे कुछ ऐंठ गया। एसिडिटी उसे अकसर परेशान करती थी.. यकायक मानो वह बढ गई थी। उसकी सहेली अर्पिता ने कहा भी, इरा तुम्हारी बीमारी शारीरिक नहीं, मानसिक है। तुम शायद डिप्रेशन में हो। सिरदर्द, नींद न आना, भूख न लगना और सुस्ती..ये सब तुम्हारी मानसिक स्थिति के कारण ही है। डॉक्टरों के चक्कर लगाने से अच्छा है अरव के साथ इत्मीनान से बैठ कर बात करो, उससे अपनी समस्याएं और फीलिंग्स शेयर करो..।

मगर जिसके पास एक बात तक सुनने का समय नहीं, उसके सामने कैसे हाल-ए-दिल बयान करे और करके फायदा भी क्या..।

मन करता है चीख-चीख कर रोऊं और चिल्लाऊं (पार्ट -1)-Hindi Story


इरा यंत्रवत सी तैयार हो रही थी, पर उसका दिमाग्ा हमेशा की तरह उधेडबुन में था..। अर्पिता ने एक दिन कहा था, तुम जैसी एक्स्ट्रा सपोर्टिव बीवियां खुद अपना बेडा गर्क कर बैठती हैं। शुरू से पतिदेव पर कुछ तो पूछताछ, सवालात, धमकियों और ग्ाुस्से की लगाम रखनी चाहिए। उसे मालूम होना चाहिए कि उसका ज्ारूरत से ज्यादा ऑफिस में रहना, अति-व्यस्तता, बीवी को नज्ारअंदाज्ा करना और समय न देना उसे भारी भी पड सकता है। मगर तुम तो हमेशा जी-हुज्ाूरी करती रही, उसे ढील देती रही और वह तुम्हें फॉरग्रांटेड लेकर अपनी लाइफ में मस्त हो गया।

सुनो, ऑफिस जाते हुए मुझे सिटी हॉस्पिटल छोड देना.., अर्पिता की बात याद कर इरा ने थोडा आदेशात्मक स्वर में कहा।


सॉरी, मैं पहले ही लेट हूं। सिटी हॉस्पिटल जाने में 15-20 मिनट और लग जाएंगे.., कहते हुए अरव घर से बाहर चला गया बिना यह देखे कि इरा का चेहरा कितना तमतमा गया है। 24 घंटे के बिज्ाी शेड्यूल में से उसके नाम पर 15 मिनट भी नही हैं अरव के पास..। इरा की सांसें तेज्ा हो चलीं। कितना इम्यून हो चुका है ये आदमी उससे.., जब वह कहती है कि डॉक्टर के पास जा रही है तो पलट कर यह तक नहीं पूछता कि क्या हुआ है.., जब वह कहती है कि मेरा पार्टी में जाने का मन नहीं, तुम चले जाओ तो भी कभी यह नहीं कहता कि तुम नहीं जाओगी तो मैं भी नहीं जाऊंगा। यहां तक कि जब वह जानबूझ कर देर रात तक काम में उलझ कर बाहर हॉल के सोफे पर ही सो जाती है तो भी कभी..। इरा ने कोरों से टपकने को तैयार बैठे आंसुओं को बरबस थामा। मन तो किया कि फूट-फूट कर रोए, ज्ाोर-ज्ाोर से चिल्लाए, मग्ार क्या फायदा.., जब न आसपास कोई आंसू पोंछने वाला हो और न चीख सुनने वाला..।


उसने बाहर आकर हॉस्पिटल के लिए टैक्सी ली। टैक्सी सडक नापने लगी। रेडियो पर गाना बज रहा था, पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले झूठा ही सही.. इरा बेचैन हो उठी। आज रेडियो भी उसके दिल की गहरी परतों में छिपी उस अतृप्त, अदम्य इच्छा को बयान कर रहा है जो पिछले कुछ समय से जब-तब नाग की तरह फन फैलाए उठ खडी होती है और उसे छटपटाहट से भर देती है। यही तो अतृप्त चाह है उसकी कि कोई उसे भी प्यार करे.., कोई हो जो उसके साथ के लिए आतुर हो..जिसे उसके सिवा कुछ और न दिखाई दे, न कुछ सूझे। कोई हो जिसे वह कभी अपनी बांहों में जकड कर तो कभी उसके सीने से लग कर भरपूर प्यार करे, जब वह उठ कर जाने लगे तो एक हाथ उसे जबरन खींच कर अपने पास बैठा ले.. कुछ देर और साथ की गुहार लिए। उसके बालों को सहलाते हुए और माथे को चूम कर पूछे कैसी हो? आज क्या किया दिन भर? मेरी याद आई? प्यार..भरपूर प्यार.., उसे बस प्यार चाहिए ..झूठा ही सही..।


इस बार इरा कीअतृप्त कामना आंसू बन कर गालों पर लुढक आई, जिसे उसने बडी सफाई से पोंछ लिया। शादी के शुरुआती दिनों में इस प्यार की चाह में इरा अरव की ओर ताका करती थी, मगर वहां उसे रुटीन की तरह गुज्ारता प्यार मिला जो उससे होकर गुज्ारा तो ज्ारूर, मगर कभी उसे छू नहीं पाया, जो कब आया-कब गया, कुछ पता ही नहीं चला। रूमानी एहसास व संवेदनाओं से रिक्त खोखला मशीनी प्यार। तब वह अकसर सोचा करती थी कि अच्छा होता अगर उसने तीव्र आवेगी प्यार का स्वाद कभी न चखा होता। वह कभी जान ही न पाती कि प्यार अपने वास्तविक और चरम रूप में कितना बलवान होता है। जब घनघोर बारिश की तरह बरसता है तो डुबो देता है या बहा ले जाता है। हाड-मांस के पत्थरों को भी गला कर उनका अस्तित्व विलीन कर देता है। और वे उफ तक नहीं करते। ऐसा ही प्यार उसे कभी किसी से मिला था जो एक विफल प्रेम कहानी में तब्दील होकर रह गया।


जब भी वह अरव की उदासीनता और बेरुखी से घायल होती, उसकी आंखों के आगे गुज्ारी विफल प्रेम कहानी फिर जीवित हो उठती। उसका दिल बेतरह जलने लगता। कभी उसे प्रेमी पर तो कभी खुद की िकस्मत पर ग्ाुस्सा आता। मगर अतीत को लौटाया नहीं जा सकता, वह कभी वर्तमान नहीं बन सकता।

अस्पताल आ गया मैडम, टैक्सी में लगे ब्रेक और ड्राइवर की आवाज्ा सुन कर भावनात्मक तूफानों में हिचकोले खा रही इरा यकायक यथार्थ में लौट आई और टैक्सी छोड कर अपने डॉक्टर के वेटिंग रिसेप्शन पर बैठ गई। उसका नंबर आने में अभी काफी समय था। घर से कुछ खाकर नहीं निकली थी, सोचा एक कप कॉफी ही पी ले। यही सोचती वह उठ कर हॉस्पिटल की कैंटीन में चली गई। कॉफी लेकर बैठने की जगह तलाश ही रही थी कि एक टेबल पर नज्ारें ठहर गई, अरे! ये तो नीलाभ है..नील, यानी उसके अतीत का सबसे सुनहरा पन्ना, जिसके खयाल उसे बार-बार आकर सताते हैं, उसका पहला प्यार और वही इंसान जिसने उसे प्यार के उन हसीन रंगों से परिचित कराया, जिन्हें वह आज तक खोज रही है। ओह! शायद यह इसी अस्पताल में डॉक्टर है। जिस आदमी के बारे में सोच-सोच कर अब तक उसका खून जलता था, आज वह सामने था तो इरा जैसे अपनी तकलीफ और ग्ाुस्से को ही भूल गई। बल्कि उसे देख कर इरा को अच्छा ही लगा। उसके कदम खुद-ब-खुद नीलाभ की ओर बढ चले।

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