- 120 Posts
- 28 Comments
पंद्रह दिन बाद अम्मा का संक्षिप्त-सा खत आया। मेरी कुशलता पूछी थी। खत न लिखने पर हलकी-सी शिकायत की थी। उन्होंने यह भी जाहिर नहीं होने दिया कि वह मेरी जुदाई महसूस कर ही हैं, पर खत के अंत में वह खुद पर काबू न रख सकीं। वहां उनके धीरज का बांध टूट गया, बेटी, अल्लाह तुम्हें खुश रखे। अंत में लिखा था, अपनी बात क्या लिखूं? बस यों लगता है, जैसे कोई प्रिय चीज खो गई है। हृदय में स्थायी विकलता है, पर तुम चिंता न करो.. अपने जीवन को अच्छा बनाओ।
खत हाथ में लिए मैं कितनी ही देर बैठी रही और कुछ समझ में नहीं आता था कि क्या करूं? एक बार तो निश्चय कर लिया कि सब छोड-छाड कर मायके चली जाऊं, लेकिन उसी क्षण एहसास हुआ कि उन्नीस बरस की तुलना में पंद्रह दिन का यह बंधन कहीं अधिक मजबूत साबित हो रहा है। जाने का मन ही न हुआ। मुझे खुद पर गुस्सा भी आया। क्या कोई अपनी मां को इतनी जल्दी भूल सकता है? मैं रोने लगी। सिसकियों की आवाज सुन कर वो कमरे से निकल आए। मेरे पास आकर बोले, अरे तुम रो रही हो? क्या बात है? फिर मेरे हाथों में आंसुओं से भीगा खत देखकर बोले, अच्छा तो अम्मा का खत है? पर इसमें रोने की क्या बात है? मां से मिलने का मन है? चलो, मैं छोड आऊं। आठ-दस दिन रह कर चली आना।
Read:इनकी तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं
मेरे मुंह से न हां निकली और न मैं इंकार ही कर सकी। उन्होंने मेरा सामान बांधा। स्टेशन पहुंच कर जब उन्होंने एक ही टिकट खरीदा तो मेरा मुंह कलेजे को आ गया। मैं अकेली जा रही हूं? मैंने उनसे पूछना चाहा, मगर लज्जा ने मुंह पर ताले डाल दिए। नहीं, नहीं। मैं नहीं जाऊंगी, मैं आपके बिना एक दिन भी नहीं काट सकूंगी। मैंने चिल्ला-चिल्ला कर कहा, मगर इस तरह कि शब्द मेरे होंठों से बाहर न निकली। इतना ही काफी न था कि उन्होंने मेरा सारा धीरज लूट लिया, तुम तो जा रही हो.., अब हमें मेहंदी भरे हाथों से मजेदार पान कौन खिलाएगा?
दिल टूटने की आवाज हुआ करती, तो उस आवाज से शायद संसार के कान फट जाते, मगर अफसोस कि दिल अंदर ही अंदर टूटा और किसी को आवाज तक न आई। मेरे आंसुओं ने मेरा मुंह धो दिया..। गाडी धीरे-धीरे बढने लगी, जैसे मेरी तरह उसका भी जी आगे जाने को न चाह रहा हो..।
Read:तुम्हारे और मेरे बीच दूरी का होना सही नहीं
मायके में दिन ऐसे बीत रहे थे, जैसे जीवन में कुछ बाकी न रहा हो। जीवन डाकिये की आवाज पर निर्भर रह गया था। किसी काम में जी न लगता। बात करने की तबीयत न होती। खाने तक से नफरत हो गई। दिल हर पल कहता कि पंख लग जाएं और मैं उड जाऊं। एक दिन मौसी आई तो मुझे एक सुहाने रहस्य का पता चला। मौसी बोलीं, बेटी, यों उदास रहोगी तो सेहत कैसे अच्छी रहेगी? तुम तो बस पति की होकर रह गई। भूल गई कि कभी तुम इस घर की सदस्य थीं। मैंने हंस कर टालना चाहा, मगर वह कहती गई, अल्लाह ने चाहा तो तुम भी मां बनोगी और तब तुम्हें पता चलेगा कि औलाद की दूरी क्या गजब ढाती है। बेटी को सदा बिठा कर नहीं रख सकोगी। अपनी मां की तरफ देखो, कैसी हो गई है?
मेरी समझ में कुछ न आया कि मौसी क्या कहना चाहती हैं? अम्मी की उदासी और स्वास्थ्य की खराबी में मेरा क्या हाथ है? मैंने सवालिया ढंग से देखा। वह कह रही थीं, ससुराल में तो अब तुम्हें सदा ही रहना है। कुछ दिन के लिए यहां आई हो तो खुश रहो, वरना मां को कितना दुख होगा..।
मैंने लज्जित होकर स्वीकार किया, क्या करूं मौसी, तबीयत इतनी सुस्त है कि किसी काम में दिल लगता ही नहीं।
वह मुस्कराई, पहली बार मां बनने जा रही हो, इसलिए ऐसा हो रहा है। संभालो खुद को, वरना तुम्हारे पति को शिकायत होगी कि उनकी दुलहन को हमने बीमार कर डाला।
जीवन ने बहार बन कर जैसे मुझे अपनी गोद में ले लिया था। मैं मां बन रही हूं, मैंने बेहद अविश्वसनीय अंदाज में सोचा। खुशी, लज्जा और गर्व की मिली-जुली भावनाओं से मेरा दिल भर गया। लेकिन फिर भय ने आ दबोचा, लडकी हुई तो? क्या वह भी मुझे छोड कर चली जाएगी? लेकिन दिल के चोर ने झूठी दिलासा दी- यह तो संसार की रीत है। ऐसा ही होता है, एक की जगह दूसरा लेता है। इसमें डर की क्या बात है..?
कुछ दिन मायके में बिता कर मैं ससुराल चली आई। दिन जैसे पंख बन कर उडने लगे। चौबीस घंटे के यही दिन-रात मायके में कितनी देरी से गुजरते थे और यहां वही चौबीस घंटे चमकीले जुगनुओं की तरह उतर जाते हैं। औरों की तो छोडो, मैं तो खुद को ही भूल गई हूं। अम्मा के खत आते रहे। जिस दिन खत आता, कुछ क्षणों के लिए दिल में चुभन-सी होती कि एक बूढी जिंदगी मुझे जी-जान से याद किए जा रही है। और मैं किस मंजिल की आशा में खोई हुई हूं। मैं घबराती हुई प्रार्थनाएं करने लगती, हे ईश्वर, मुझे लडकी नहीं चाहिए, जो मुझे छोड कर चली जाए और फिर भूल जाए। मैं जुदाई न सह पाऊंगी, इसलिए मुझे बेटी मत देना।
बचपन से वह चंचल, चुलबुली लेकिन भोली लडकी थी:-(पार्ट-1)-Hindi story
कुछ महीने गुजरने पर अम्मा ने मुझे फिर से बुलाया। इस बार वो भी मेरे साथ थे। मुझे उनका सामीप्य और साथ चाहिए था। अब भला मैं क्यों उदास रहती? अम्मा ने मेरी देख-रेख में कोई कसर नहीं छोडी। शहर की सबसे कुशल लेडी-डॉक्टर को दिखाया। चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते-जागते वह मुझे निहारती रहतीं और यह प्रार्थना जैसे उनके जीवन का अंग बन कर रह गई थी, ईश्वर, इसे कुशलता के साथ एक बेटा दे.., शायद वह भी इस कहानी को दोहराते नहीं देखना चाहती थी।
कुछ दिन और बीते। मुझे अस्पताल ले जाया गया। वो दरवाजे के बाहर बेचैन खडे थे। अम्मा सिरहाने खडी प्रार्थनाएं कर रही थीं। न जाने कितनी सदियां बीतीं, फिर नन्ही-सी चीख ने मेरे कदमों तले स्वर्ग के निर्माण का समाचार सुनाया। अम्मा लपकीं। लेडी-डॉक्टर ने हंस कर कहा, नन्ही-मुन्नी प्यारी सी बेटी मुबारक हो।
अम्मा ने मुझे पलट कर देखा। अनजाने भय ने मुझे दबोच लिया। यह मां, जो आज इस तरह असहाय होकर मेरे सामने खडी है, जिसने अपना चैन, खुशियां और अपना पूरा जीवन मेरे लिए तज दिया। समय फिर उसी कहानी को दोहराएगा। क्या आने वाले साल उसी तरह मेरे जीवन का रस निचोड लेंगे? मैंने सोचा.. क्या मेरी बेटी भी मेरे पदचिह्नों पर चलेगी? दिल से आंसुओं का बादल सा उठा.. आंसू आंखों में लपकने को हुए ही थे कि नर्स ने बच्ची को मेरी बगल में लिटा दिया। मैंने उसकी मोहिनी सूरत देखी, धडकते दिल को शांति मिल गई। यह कौन सी नई बात है! यह तो दुनिया की रीति है.., मैंने खुद को तसल्ली दी और नन्ही-सी जान को कलेजे से लगा लिया।
बचपन से वह चंचल, चुलबुली लेकिन भोली लडकी थी:(पार्ट-2)-Hindi story
Tags: hindi story, story, story in hindi, नारी, मां
Read Comments