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आखिर क्यूँ टूटे आशियाने —-

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जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकता रोटी ,कपड़ा और मकान है । वैसे इनमें कई आवश्यकता और जुड़ गए हैं पर ये तीन काफी महत्वपूर्ण हैं । इन तीनों के जुगाड़ के लिए आदमी दिन रात परिश्रम कर रहा है लेकिन आज भी एक बहुत बड़ा प्रतिशत इससे वंचित है । आवश्यकता की तीब्रता के साथ अपनी आबादी भी तेजी से बढ़ती जा रही है ,रोजगार के अवसर कम है तो रोटी की संभावना भी कम है । किसी तरह रोटी का जुगाड़ कर लेता है तो मकान की जरूरत को पूरा करने में उसे काफी प्रेषणी का सामना करना पड़ता है । विडम्बना है कि बढ़ती हुई आबादी के मकान की जरूरत को पूरा करने के लिए अपने पास जमीन कम है । फिर जमीन की आवश्यकता पूरी हो तो कैसे ? इस सवाल का जवाब अपने पास नहीं है ,पर एक सवाल जरूर है कि — जिन लोगों ने पैसे – पैसे जोड़कर एक जमीन का टुकड़ा खरीदा और अपने सपनों का आशियाना बनाया तो सरकार का क्या अधिकार बनता है कि वह उसे तोड़ दें । नियमों का डंडा घुमाते हुए इन दिनों पटना में आशियाना को तोड़ने का कार्य चल रहा है । पटना का कुम्हरार इलाका राजा अशोक के पुरातात्विक साक्ष्य का केंद्र माना गया । उसे प्रबंधित क्षेत्र घोषित किया गया । पर जब अपने आशियाने की जरूरत को पूरा करने के लिए लोगों ने मकान बनाने लगे तो सरकारी स्तर पर किसी ने रोक नहीं लगाई । और जब पूरी बस्ती बन गई तो सरकारी आदेश पर इसे तोड़ने का अभियान चलाया जाने लगा । स्वाभाविक है कोई अपने आशियाने को उजड़ता नहीं देख सकता सो आंदोलन ,तोड़ -फोड़ भी होने लगे । इन तमाम प्रक्रिया या आंदोलन से एक सवाल छन कर आता है कि जब मकान बनने लगे तो रोकी क्यू नहीं गई और जब बन गई तो तोड़ी क्यूँ जा रही है ? आम आदमी ऐसे ही परेशान रहता है उसपर से इस तरह का तनाव मिलेगा तो निश्चित रूप से वह उग्र होगा , क्या हमारा उदेश्य उग्र समाज की रचना करना है या फिर एक शांत समाज की ?

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