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एक थी राजकुमारी …….. ।

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दूर देश में एक राज्य था । उसपर राजा मंगलदेव राज करते थे । उनकी एक सुंदर सी बेटी थी । उसे सभी परी राजकुमारी के नाम से जानते थे । राजा उसको बहुत मानते थे और उनकी प्रजा भी राजकुमारी को बहुत चाहती थी । एक दिन परी राजकुमारी महल के छत पर सोई हुई थी । उधर से एक मायावी दानव आकाश मार्ग से कही जा रहा था । उसकी नज़र राजकुमारी पर पड़ी । वह उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया और उसने उसे पलंग सहित उठाकर अपने महल ले आया । सुबह जब राजकुमारी महल में कहीं नहीं दिखी तो सभी उसे खोजने लगे । पर राजकुमारी को कहीं न पाकर सब घबराए । राजा ने मुनादी कराया कि जो राजकुमारी को खोज कर ला देगा वह उसे इनाम देगा । राम गढ़ के राजकुमार ने इस बीड़ा को उठाया और खोजते – खोजते वह दानव की गुफा तक जा पहुंचाऔर दानव को मारकर राजकुमारी को वापस लाया । चारों तरफ खुशियाँ चा गई । सबने राजकुमार की प्रशंसा की । . यह कहानी दादाजी ने बच्चो को सुनाई , बच्चों ने इसे बड़े ध्यान से सुना बीच –बीच वे दादा जी से प्रश्न भी करते और वह उसका जवाब भी देते । कहानी खत्म हो गई । बच्चों का अच्छा मनोरंजन हुआ । आइये हम बड़े लोग इस कहानी पर थोड़ी चर्चा करते हैं । इस कहानी को पढ्ने के बाद कुछ लोग यह कह सकते हैं कि इस विज्ञान भरे युग में परियों – राजा –रानी कि कथा नहीं चलती ,कुछ लोग इसे बड़े चाव से सुनते है और इसे सही मानते हैं । यह दोनों ही बात बहस –विवाद का मुद्दा हो सकता है ,पर इसमें एक बात पर हम तर्क अवश्य कर सकते हैं और मुझे लगता है कि इसपर आपका भी मत मेरे साथ हो सकता है । इस पूरी कहानी में दो पक्ष हैं । एक अच्छा और दूसरा बुरा । दानव बुरा का प्रतीक है तो राजकुमार अच्छा का । दानव बुरा कर्म करता है तो राजकुमार उसे मारकर अच्छा काम करता है और लोगों को खुश करता है और प्रशंसा का पात्र बनता है । यानि , अच्छा काम करना चाहिए इसका संस्कार बच्चों के कोमल मन – मस्तिष्क में कहानियों , लॉरियों के माध्यम से बचपन में ही डालने का काम होता था जो उनके साथ आजीवन रहता था । इस कारण वे बुरे कर्म से भागते भी थे और बुरे कर्म करने वाले को रोकते भी थे । पर ,आज ऐसी सीख भरी कहानियाँ न तो मिलती है और न कोई सुनाने वाला है । अब इसका स्थान टीवी ने ले लिया जहां न तो संस्कार है और न ही उचित शब्दों का चयन । दूसरा पक्ष कहानियों ,लॉरियों से बच्चों की एकाग्रता और उसके भावनात्मकता को बल मिलता था ,जिस कारण स्नेह ,प्रेम ,सहानभूति समाज में ज्यादा थी । तीसरा पक्ष – हमारे बच्चों के पाठ्यक्रम से महापुरुषों की जीवनियाँ को हटा दिया गया है । उनके जीवन से बच्चे जो प्रेरणा ले पाते पाठ्यक्रम से हट जाने से वे इससे वचित हो गए । अब सवाल यह है कि हमने अपने बच्चों को क्या दिया है जिस कारण हम उससे अच्छे कर्म की अपेक्षा करे ? आज समाज में जिस प्रकार की घटना घट रही है उसके लिए हम चाहे लाख कोस ले पर ज़िम्मेवार तो हम और हमारी शिक्षा है । हमने बच्चों के बचपन को अर्थ के संग्रह में समाप्त कर दिया है । जिस उम्र में उसे संस्कार मिलनी चाहिए उस समय उसे अपने सपनों का संवाहक बनने की प्रेरणा देते हैं । बच्चा न तो स्वय का रह पाता है और न ही समाज ,राष्ट्र का ,वह एक मशीन है ,मशीन से कैसी आशा ? किसी को फांसी चढ़ाने की नौबत न आए ऐसी शिक्षा और वातावरण बनाने की जरूरत है । इसका अर्थ यह नहीं कि ऐसे लोग नहीं होंगे पर कम अवश्य हों ।

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