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भारतीय राजनीति की एक बड़ी विडम्बना है कि किसी भी समस्या का ठोस समाधान नहीं करती । पीछे की बात को छोड़ दें तो मुंबई काण्ड को ही देखें ,उसने उसके समाधान में भी कोई खास ठोस कदम नहीं उठाया है । लोकायुक्त की नियुक्ति पर भी कोई नजरिया स्पष्ट नहीं रही । इसके पास न तो इच्छा शक्ति है और न ही को स्पष्ट नजरिया , स्वाभाविक है इसके अभाव में ये समस्या को सुलझाने के बजाय उलझाते हैं । अब अभी की ही घटना को लिया जाय । दामिनी के साथ जो हुआ वह एक सामाजिक समस्या रही जिसने मनुष्यता पर सवाल खड़ा कर दिया है । भारी हँगामा ,विरोध के बाद भी राजनीतिक स्तर पर ऐसा कुछ नहीं दिखता जिससे लगे कि इस समस्या के समाधान की दिशा ये यह गंभीर हैं । सरकार के एक ज़िम्मेवार मंत्री ने बयान दिया कि – हमने सभी दलों को इस पर कानून बनाने के विचार के लिए पत्र दिया है । इसी बीच दूसरा बयान आया कि – इस समस्या के निदान के लिए बनाए जाने वाले कानून का नाम पीड़िता के नाम पर रखा जाय ,फिर कहा गया कि पीड़िता का नाम सार्वजनिक किया जाय —— अभी और भी बातें आ सकती हैं ……… हम सुन भी रहे हैं और सुनेंगे भी । पर , सवाल तो उठता ही है – अपने बयानों से क्या हम जनता को बरगला नहीं रहे हैं ? क्या समस्या की लीपा – पोती का प्रयास नहीं हो रहा है ? तथा जिस कानून की प्रक्रिया तक नहीं प्रारम्भ हुई उसके नाम पर विचार करना बेमानी नहीं है ? यह ठीक है कि इन बयानों को आधिकारिक भले ही न माना जाय पर राजनीतिक चक्रजाल में इस समस्या को फसाने कि शुरू नहीं हो गई क्या ? हालांकि , देश जग गया है और हम सकारात्मक दृष्टि रखते हुए यह विश्वास करते हैं कि यह समस्या मकडजाल का अंग नहीं बनेगी ।
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