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बिहार के विश्वविद्यालयों में छात्र संघों के चुनाव पर सहमति बन गई और इसी सहमति के आधार पर पटना विश्वविद्यालय में चुनाव हुआ । चुनाव में जीते हुए छात्रों ने शपथ भी ले लिया । इस चुनाव में पार्टीगत उम्मीदवार भी थे और निर्दलीय भी । इनमे से जीत किनकी हुई ,यह मायने नहीं रखता । मायने की बात यह है कि इस चुनाव ने राजनीति की दिशा और दशा में परिवर्तन की संभावना को बढ़ा दिया है । यह एक सुभ संकेत ही है कि आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति को युवा नेता मिलने वाले है ।
भारतीय राजनीति का जिस तरह से इन दिनों ह्रास हो रहा है उससे से लगता है कि वर्तमान राजनीति से देश का भला नहीं होने वाला है । एक समय चर्चा थी कि बीते हुए समय के साथ स्वच्छ राजनीति के पेरोकारों कि कमी होती जा रही है । धीरे -धीरे मूल्यों कि राजनीति करने वाले या तो सन्यास ले लिए या फिर उन्हे ईश्वर ने अपने पास बुला लिया । साथ ही , राजनीति में युवाओं की कमी हो गई । यानि ,जोश -खरोश और आगे बढ़ कर काम करने वाले कम हो गए ।यह ठीक है कि राहुल गांधी ,ज्योतरदित जैसे युवा अभी है पर इनके साथ परिवारवाद जुड़ा हुआ है । निचले स्तर से चुने गए नेता तो पहले छात्र चुनाव से ही पैदा हुआ करते थे । डीयू ,जेएनयू के चुनाव ने भी युवा नेता को दिया है । बिहार ने एक बार फिर करवट लिया है । युवाओं के बीच से चुन कर आए युवा नेता निश्चित रूप से राजनीति और देश के लिए संभावना बनेगे ,ऐसा विश्वास है । युवकों ने भी वर्तमान राजनीति में बदलाव कि वकालत कि है तो निश्चित रूप से अपने इसी मनोभाव के तहत उन्होने अपने नेता का चुनाव किया होगा और सकारात्मक दृष्टि तो यही कहती है कि छात्र संघ के चुनाव को बदलाव का एक संकेत मानकर चला जाए ।
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