मन की बातें...
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हे दिव्य रूप हे निरंकार
हम पर ये तुम उपकार करो
ना रहे भय ना कोई क्लेश
जीवन का मेरे कल्याण करो
है निशा भयंकर जीवन में
संशय है व्याप्त मेरे मन में
इक दिव्य ज्योति प्रज्ज्वलित कर
इस निशा का तुम ही विहान करो
रूक गये हैं पथ में कदम मेरे
पर आस है मन में दबी हुई
मेरे कदमो को अब तुम
अपनी ही शक्ति प्रदान करो
उड़ सकू गगन बिन पंखो के
जग मेरा ही गुणगान करे
कुछ ऐसा काज कर जौऊ मैं
के विश्व मुझे भी महान कहे
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