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अंधविश्वास में ख्वाजा ने खाई जिंदगी….

pratirodh
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अभी दो रोज पहले की बात है। अंधविश्वास की इंतेहा क्या होती है? इसकी कल्पना भी मुश्किल है। अजमेर में ख्वाजा जी की जिस दरगाह से दुनिया जहान को जिंदगी की दुश्वारियों से निजात मिलती है। वहीं पर एक ही परिवार के तीन लोगों ने दम तोड़ दिया। जादू-टोने से मुक्ति पाने के लिए इलाहाबाद का एक परिवार 30 दिनों से भूखे पेट गरीब नवाज की दरगाह में इबादत कर रहा था। मित्रों मैं समझ नहीं पाता कि वो कैसे अल्लाह के वंदे हैं। जो आम इंसान को इस कदर मजबूर कर देते हैं कि वो अपना सब कुछ खत्म करने पर आमादा हो जाता है। जिंदगी है तो जहान है, नहीं है तो कुछ भी नहीं। यह छोटी सी बात हम लोगों को क्यों नहीं समझ में आती। अंधविश्वास की इस अंधी दौड़ में ग्रामीण-शहरी सभी शामिल हैं।
जरा सोचिए, किसी जमाने में मर्चेंट नेवी में इंजीनियर रह चुके मुहम्मद मुस्तफा शेख ने पूरी दुनिया देखी होगी। पर एक मौलवी साहब के बहकावे में आकर ख्वाजा की दरगाह पर 40 दिन भूखे-प्यासे रहने की ठान ली, वह भी सपरिवार। ख्वाजा की इबादत के चक्कर में उनके परिवार के भूख से बेहाल नौशाद (15), सलाम (12) और मेहशरजहां (22) ने दरगाह परिसर में जन्नती दरवाजे के सामने दम तोड़ दिया। भूखे रहकर ख्वाजा की इबादत करने चले मुहम्मद मुस्तफा शेख को जादू-टोने से मुक्ति तो नहीं मिलीं। उन्होंने अपने जिगर के तीन टुकड़ों को जरूर मार डाला। मित्रों, मैं किसी एक धर्म, सम्प्रदाय या पंथ में फैले अंधविश्वास या रूढिय़ों की बात नहीं कर रहा हूं। यह सभी में और हर जगह है। कहीं मस्जिद में अपनी ही औलाद का खूून निकालकर दिया रौशन किया जा रहा है। तो कहीं मंदिर में देवी-पूजन के नाम पर मासूमों की बलि दी जा रही है। यूं तो अपने देश में यत्र नारी पूज्यंते, रमंते तत्र देवता…की परंपरा रही है। फिर भी बीते दिनों उत्तर भारत के कई दूरस्थ गांवों में वृद्ध महिलाओं को डायन बताकर उनके अपने ही परिजनों और गांववालों ने पीट-पीटकर मार डाला। आज के आधुनिक और सभ्य समाज में मध्ययुगीन बर्बरता के लिए जिम्मेदार कौन है? ढोंगी-पाखंडी तांत्रिकों और मुल्ला मौलियों को बढ़ावा कौन दे रहा है? क्या यह देश की आम जनता से छिपा है? जी नहीं, बिलकुल नहीं। अगर हम पड़ताल करें तो यही कड़वा सच हमारे सामने होगा कि इन ढोंगी-पाखंडी तांत्रिकों और मुल्ला मौलियों को देश के बड़े उद्योगपतियों, कथित समाजसेवियों, राजनेताओं ने संरक्षण देकर पुष्पित-पल्लवित किया है। गांव की गलियों से लेकर राजधानी में सत्ता के गलियारों तक इनकी धमक का एहसास हम कर सकते हैं। इन पथभ्रष्टों के खिलाफ आवाज कौन उठायेगा? जब चौथा स्तंभ भी इनका महिमामंडन करने इनके धुआंधार प्रचार में जुटा है। टीवी चैनलों पर शायद ही ऐसा कोई टाइम हो जिस समय नजर रक्षा यंत्र, लक्ष्मी यंत्र, शनि यंत्र आदि कार्यक्रम न चल रहे हों। ऐसे में हम क्या करे? क्या हो हमारा रास्ता? क्या हम मजबूर हैं? क्या हम कुछ नहीं कर सकते? नहीं भाई साहब, इनके खिलाफ आवाज तो उठानी ही होगी। हर स्तर पर इनको बेनकाब करने का जतन करना होगा। यह प्रतिरोध जारी रहेगा….।

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